ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
वैष्णो देवी की तीर्थयात्रा दर्शाती है कि कैसे आस्था विभिन्न समुदायों को एक साथ लाती है और कुछ लोगों के लिए आजीविका का स्रोत है. कटरा हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है और यह पवित्र शहर पूरे देश में भाईचारे का एक मजबूत संदेश भेज रहा है. जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 99% मुस्लिम प्रवासी रहते हैं जिन्होनें तीर्थयात्रियों को माता वैष्णो के भवन तक पहुंचाने का बीड़ा लगभग 700 साल पहले से उठाया हुआ है.
मंसूर अहमद, पालकी चालक
जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू जिले के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर भारत का शीर्ष तीर्थस्थल है जो 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है.
कटरा में माता वैष्णों के भक्त पहाड़ों में बसी मां वैष्णों के दर्शन केवल घोड़ा, बग्गी, पालकी के द्वारा कर पाते हैं जोकी ज्यादातर मुसलमान ही चलाते हैं. ये सभी गुर्जर मुसलमान हैं. पसीनों में लथपथ होकर भी ये मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक हिन्दू तीर्थयात्रियों को पालकी में सवार कर अपने कन्धों पर उठाते हैं और यही उनकी कमाई का साधन है. जिससे उनके घरों में चूल्हा जलता है.
वैष्णो देवी के मुस्लिम पालकी वाहक
हिंदू तीर्थयात्री मुस्लिम पालकी ढोने वालों के कंधों पर ही वैष्णो देवी तक जाते हैं. मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक 'जय माता दी' कहकर आपका स्वागत करते हैं और 12 किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी चढ़ाई पर केवल तीन या चार बार सांस लेने के लिए रुकते हैं. मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक बाकायदा श्री माता वैष्णो देवी श्राइन से रजिस्टर हैं और उनका करैक्टर सर्टिफिकेट भी है.
मैने वहां टट्टू मालिकों और पालकी उठाने वालों से बात की जो भक्तों को पहाड़ तक ले जाते हैं. जो मुसलमान हैं वे यात्रा के दौरान जय माता दी' भी कहते हैं और काम के दौरान वक़्त मिलने पर नमाज़ भी अदा करते हैं. मैने इनकी तस्वीरें लीं, जिनमें ज्यादातर युवा कश्मीरी पुरुष थे.
अब्दुल लतीफ़
अब्दुल लतीफ़ की घोड़ी 'रोज़ी' कटरा में चढ़ती है माता की पोड़ी-पोड़ी
यहां मैने घोड़ा चालक अब्दुल लतीफ़ से बातचीत की जो भक्तोँ को माता वेष्णो की यात्रा कराते हैं, रियासी के रहने वाले लतीफ़ ने बताया कि यहाँ कोई फर्क नहीं है सब एक स्वर में जयकारा लगाते हैं. लतीफ़ पिछले दस वर्षों से कटरा में एकता की मिसाल पेश कर रहें हैं.
माता वेष्णो की यात्रा के दौरान ही लतीफ़ वक़्त निकालकर नमाज़ अदा करते हैं. अब्दुल लतीफ़ भक्तों को सवारी कराकर ही रोजी-रोटी कमाते हैं. उनका परिवार रियासी में रहता है और काम अच्छा होने पर वे महीने में 40 से 50 हज़ार कमा लेते हैं. लेकिन अब्दुल लतीफ़ यहां कटरा में किराए पर रहते हैं.
ये सभी श्राइन बोर्ड की देख रेख में चलते हैं. वे इन सेवाओं के लिए जिला प्रशासन, रियासी द्वारा निर्धारित टट्टू, पिट्ठू और पालकी की दरों के अनुसार ही शुल्क लेते हैं.
इन सभी का तकरीबन अकड़ा 2500 का है जिसमें 60 प्रतीशत मुसलमान हैं और सभी यहां घोडा, पालकी, पिठ्ठू चलाते हैं जो रियासी डिस्ट्रिक्ट से आकर यहां किराए पर रहते हैं और इनका परिवार रियासी में ही है. रियासी जिले में 60 प्रतीशत मुसलमान और 40 प्रतीशत हिन्दू साथ में बसे हुए हैं.
बता दें कि घोड़े वालों और श्राइन बोर्ड के बीच एक प्राइवेट कंपनी जी मेक्स की ठेकेदारी भी है और इसी कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर यात्री ऑनलाइन भी ponies, pithus and palanquins बुक करा सकते हैं. छोटे बच्चों के लिए यहां बेबी वॉकर भी यही लोग चलाते हैं.
कटरा में घोडा, पालकी, पिठ्ठू (ponies, pithus and palanquins) की अपनी एक एसोसिएशन भी है जिसका प्रेजिडेंट भी सेलेक्ट किया जाता है जो इनके हितों की देख-रेख करता है.
वृद्ध और अधिक वजन वाले व्यक्ति टट्टुओं को किराये पर लेना पसंद करते हैं. पिट्ठू का उपयोग बैग और शिशुओं को ले जाने के लिए किया जाता है. जबकि पालकी का उपयोग अधिक उम्र वाले तीर्थयात्रियों द्वारा किया जाता है. घोड़े, पिट्ठू और पालकी की दरें श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड कटरा द्वारा तय की जाती हैं.
यहां कटरा बाज़ार में भी मुस्लिम लोगों की व्यापार में भागीदारी है. कटरा बाजार में हजारों स्थानीय मुस्लिम और हिंदू पवित्र शहर कटरा में एक साथ काम कर रहे हैं और पूरे देश में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का एक मजबूत संदेश भेज रहे हैं. "यह एकता कटरा को हिंदी-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक बनाती है."
यहां ट्रेड के काम में ज्यादातर कश्मीरी हैं जो विशेषकर मेवा और शॉल्स में डील करते हैं. वहीँ यहां केरीएज का कार्य मुस्लिम करते हैं. जो घोड़े, खाचरों और अपनी पीठ पर सामान लादकर ऊपर चढ़ाई तक पहुंचाते हैं.
इस साल नवरात्री पर मां वैष्णो देवी के दरबार को फुलों से सजाने के लिए करीब 10 देशों से गेंदा, चमेली, गुटा समेत कई तरह के फूल लाए गए. मार्गों पर भव्य प्रवेश द्वार बनाए गए हैं.
माता वैष्णो की लोकप्रियता
वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों सहित लगभग 1.27 करोड़ पर्यटकों ने 2022 में जम्मू-कश्मीर का दौरा किया, जिसने एक नया रिकॉर्ड बनाया. जम्मू-कश्मीर को उम्मीद है कि इस साल यह आंकड़ा 2.25 करोड़ को पार कर जाएगा. माता वैष्णो की लोकप्रियता का अंदाजा आप इन आंकड़ों से अंदाजा लगा सकते हैं.
इस साल जनवरी से अब तक 78 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने मंदिर में प्रार्थना की है. जून में सबसे अधिक 11.95 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों की संख्या दर्ज की गई, जबकि फरवरी में सबसे कम लगभग 4.14 लाख की संख्या देखी गई. कटरा में होने वाले नौ दिवसीय कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण - मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए आधार शिविर - में अखिल भारतीय भक्ति गीत प्रतियोगिता, भागवत कथा, प्रभात फेरी, शोभा यात्रा, 'माता' का वर्णन करने वाला लेजर शो शामिल है.
माता वैष्णों देवी की कहानी और मान्यता
उत्तर भारत मे माँ वैष्णो देवी सबसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ है. यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. मां वैष्णों देवी की महिमा अपार है, कहते हैं मां के दर से कोई खाली नहीं जाता है. इस धार्मिक स्थल की आराध्य देवी, वैष्णो देवी को माता रानी, वैष्णवी, दुर्गा तथा शेरावाली माता जैसे अनेक नामो से भी जाना जाता है.
यहा पर आदिशक्ति स्वरूप महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती पिंडी रूप मे त्रेता युग से एक गुफा मे विराजमान है और माता वैष्णो देवी स्वयं यहा पर अपने शाश्वत निराकार रूप मे विराजमान है.
वेद पुराणो के हिसाब से ये मंदिर 108 शक्ति पीठ मे भी शामिल है. यहा पर लोग 14 किमी की चढ़ाई करके भवन तक पहुँचते है. प्रतिवर्ष, लाखों तीर्थ यात्री, इस मंदिर का दर्शन करते हैं. मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है.
जंबू वर्तमान जम्मू का प्राचीन नाम है. मान्यता है कि पवित्र गुफा में देवी के मूल उपासक पांडव थे. संभवतः पांडवों का प्रतिनिधित्व करने वाली पांच पत्थर की आकृतियाँ पास की पर्वत श्रृंखला में पाई गईं, जो वैष्णो देवी मंदिर से पांडवों के संबंध को कुछ हद तक विश्वसनीयता प्रदान करती हैं.
माता वैष्णवी और भैरवनाथ की कथा
माता वैष्णोदेवी के एक भक्त, श्रीधर ने एक भंडारा (सामुदायिक भोजन) का आयोजन किया जिसमें देवी की इच्छा के अनुसार ग्रामीणों और महायोगी गुरु गोरक्षनाथजी और उनके सभी अनुयायियों, जिनमें भैरवनाथ भी शामिल थे, को निमंत्रण भेजा गया. गुरु गोरक्षनाथ, भैरवनाथ सहित अपने 300 शिष्यों के साथ भंडारे में पधारे .
देवी वैष्णो ने अपनी शक्तियों से भैरवनाथ को आश्चर्यचकित कर दिया. और फिर वह उसकी शक्तियों का परीक्षण करना चाहता था. इसके लिए उन्होंने शिव अवतार गुरु गोरखनाथ की अनुमति ली. हालाँकि, गुरु गोरखनाथ ने इसकी अनुशंसा नहीं की लेकिन उन्होंने भैरवनाथ को अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़ने दिया.
गुरु गोरखनाथ और उनके सभी शिष्यों ने शुद्ध वैष्णव भोजन का आनंद लिया और चले गये. लेकिन भैरवनाथ उसकी शक्तियों का परीक्षण करने के लिए वहीं रुक गया. फिर उसने माता वैष्णोदेवी को पकड़ने का प्रयास किया और उन्होंने उसे डराने की पूरी कोशिश की.
ऐसा करने में असफल होने पर, माता वैष्णो ने अपनी तपस्या को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए पहाड़ों में भाग जाने का फैसला किया. लेकिन भैरवनाथ ने उसका उसके गंतव्य तक पीछा किया.
वैष्णो देवी चरण पादुका , बाणगंगा और अर्धकुवारी में रुकीं , लेकिन भैरवनाथ हर जगह उनका पीछा करते थे. अंत में, उसने अपना धैर्य खो दिया और पवित्र गुफा के बाहर उसका सिर काट दिया. भैरो नाथ का सिर 1.5 किमी दूर जाकर गिरा और वह स्थान आज भैरो नाथ मंदिर के रूप में लोकप्रिय हो गया.
उनकी आत्मा को इस घटना पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने देवी से क्षमा मांगी . देवी ने उसे माफ कर दिया और उसे वरदान दिया कि भक्तों को उसकी तीर्थयात्रा पूरी करने के लिए भैरव नाथ के मंदिर के दर्शन करने होंगे.
मान्यताएं कहती हैं कि तब देवी ने अपना मानव रूप त्याग दिया और निर्बाध ध्यान जारी रखने के लिए एक चट्टान का रूप धारण कर लिया.
श्रीधर पंडित और माता वैष्णो देवी की पौराणिक कथा
यह गुफा लगभग 700 साल पहले तक अज्ञात थी. त्रिकुटा पर्वत के पास हंसाली नामक गाँव में श्रीधर नाम का एक ब्राह्मण पंडित रहता था. वह देवी शक्ति के अनन्य भक्त थे. देवी शक्ति उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उन्हें कन्या के रूप में दर्शन दिये .
तब उनके अनुरोध पर, श्रीधर ने सभी ग्रामीणों को भंडारे के लिए अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया. लेकिन भंडारे में भीड़ बढ़ती देख श्रीधर को डर लग रहा था कि क्या वह उन सभी को अपनी कुटिया के अंदर बिठा पाएगा. साथ ही, उन्हें अपने सभी मेहमानों के लिए भोजन की उपलब्धता की भी चिंता थी.
चमत्कारिक रूप से, जिस लड़की ने उन्हें दर्शन दिया था वह प्रकट हुई और सभी की भूख को संतुष्ट करने के लिए प्रचुर भोजन और स्थान बनाया. भंडारे के बाद श्रीधर उस लड़की को धन्यवाद देना चाहते थे लेकिन वह गायब हो गई.
इसलिए, उन्होंने कई रातें बिना सोये बिताईं. अंततः, देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर उस गुफा की ओर जाने का निर्देश दिया जो उनका निवास स्थान था.
उसने सपने में मिले निर्देशों का पालन किया और अंततः गुफा की खोज की. मान्यताओं के अनुसार वहां उन्हें तीनों देवियों, महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती ने दर्शन दिये.