पट्टन. कश्मीरी पंडितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए, मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व में बडगाम जिले के नागरिक समाज ने विस्थापित अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक सभा का आयोजन किया, जिन्हें 1990 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के विस्फोट के बाद अपने घरों को छोड़ना पड़ा था.
कश्मीरी पंडित 19 जनवरी को ‘होलोकॉस्ट रिमेंबरेंस डे’ के रूप में मनाते हैं, जो 1990 में घाटी से उनके सामूहिक पलायन को चिह्नित करता है, जब पाकिस्तान समर्थित कट्टरपंथियों ने अल्पसंख्यक समुदाय को धमकी दी थी, जिससे उन्हें भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
गांव के एक स्थानीय निवासी सैयद अब्बास कहते हैं, ‘‘35 साल पहले, आज ही के दिन, 19 जनवरी को, यहां अंधकार का दौर शुरू हुआ था. उस समय, हमारा हिंदू समुदाय जम्मू भाग गया था. मुझे नहीं पता कि वे किन परिस्थितियों में यहां से भागे थे.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘लेकिन हम बेताब हैं कि वे यहां वापस आएं. यह हमारी दिल से इच्छा है. और यह उनकी भी इच्छा है. हम पूरे दिल से उनका ख्याल रखना चाहते हैं. और हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि कृपया उनके लिए कोई रास्ता निकालें ताकि वे फिर से यहां बस सकें.’’
‘नलमौत- शाश्वत और दिव्य आलिंगन’ नामक इस सभा में कुछ विस्थापित कश्मीरी पंडित भी शामिल हुए. सभा के दौरान, पंडितों ने प्रार्थना करने के लिए एक मंदिर का भी दौरा किया. एएनआई से बात करते हुए एक कश्मीरी पंडित अनीता पंडिता ने कहा, ‘‘मैं यहां के लोगों को दोष नहीं दे रही हूं, मैं उन लोगों को दोष दे रही हूं जिन्होंने हमें जाने के लिए मजबूर किया. हमें कब तक यह दिन मनाना पड़ेगा?’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं यहां के नागरिक समाज का बहुत आभारी हूं. आप देख सकते हैं कि आज कितने लोग हमारे साथ जुड़े हैं, और वे लोग भी जो चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित घाटी में वापस आएं और अपने घरों में रहें. ऐसा लगता है कि 1990 के दशक से पहले जो माहौल था, जो जीवन शैली थी, वह वापस आ गई है. लेकिन कश्मीर में उनकी वापसी के लिए प्रशासन और सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. तभी यहां शांति होगी और तभी हम अपने घरों में वापस जा पाएंगे.’’
इस अवसर पर बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता जाविद बेग ने कहा, ‘‘इस दिन हम उन पीड़ितों, उन शहीदों को याद करते हैं जो आतंकवाद का निशाना बने. उन्हें अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा और अपने घरों से भागना पड़ा. हम इस दिन को कश्मीरी हिंदू जबरन पलायन दिवस कहते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘‘इस दिन हम, कश्मीरी हिंदू और कश्मीरी मुस्लिम समुदाय, उन ताकतों को एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं जो हमारे समाज को नष्ट करना चाहते थे. कश्मीर एक है. कश्मीर में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं. वे प्रेम, एकता और भाईचारे के साथ रहते हैं.’’
उन्होंने आगे कहा कि कश्मीरी समाज आतंकवादी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है और यही इस दिन का संदेश होगा. हमारे कश्मीर में मुस्लिम, हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई और विभिन्न जातीय समूह एक साथ रहते हैं. और हमारे समाज में आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘हम आतंकवाद की निंदा करते हैं... उन तत्वों की जिन्होंने हमारे कश्मीरी पंडित समुदाय को मार डाला और उन्हें उनके घरों से निकाल दिया.’’