नई दिल्ली. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने मुसलमानों को लेकर दिए गए बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है, जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वह अपने बयान पर कायम हैं. उनके बयान से किसी न्यायिक आचार संहिता का उल्लंघन नहीं हुआ. न्यायमूर्ति शेखर को विहिप के एक कार्यक्रम में मुसलमानों के बारे में दिए गए बयान के कारण मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम के समक्ष पेश होना पड़ा.
एक महीने बाद, अब उन्होंने पत्र लिखकर जवाब दिया है. न्यायमूर्ति शेखर यादव ने पत्र लिखकर कहा कि वह अपने बयान पर पूरी तरह कायम हैं. उनका बयान न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने दावा किया कि कुछ स्वार्थी लोगों ने उनके भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश किया. न्यायपालिका के सदस्य जो अपने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं कर सकते. उन्हें न्यायिक समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा संरक्षण दिया जाना चाहिए.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि जस्टिस शेखर ने पत्र में लिखा है कि उनका भाषण संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप एक सामाजिक मुद्दे पर विचारों की अभिव्यक्ति है. इसका उद्देश्य किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाना नहीं था. उन्होंने अपनी टिप्पणियों के लिए माफी नहीं मांगी और कहा कि वह अपने शब्दों पर कायम हैं. आपको बता दें कि यह घटना 8 दिसंबर की है. जब न्यायमूर्ति शेखर यादव को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था.
इस कार्यक्रम में उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये और मुसलमानों पर टिप्पणी की. समान नागरिक संहिता पर उन्होंने कहा कि इसे हिंदू बनाम मुस्लिम के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन हिंदुओं ने इसमें कई सुधार किए हैं जबकि मुसलमानों ने नहीं किए हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं कहना चाहता हूं कि चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू लॉ हो या आपकी कुरान हो... हमने अपने आचरण से बुराइयों को दूर कर दिया है. लेकिन आप (मुसलमान) उन्हें ख़त्म क्यों नहीं कर देते?’’
न्यायमूर्ति शेखर ने आगे कहा कि मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि भारत बहुमत के अनुसार चलेगा. कानून उनके अनुसार काम करता है. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि कट्टरपंथी देश के लिए खतरनाक हैं. उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ, जिसके बाद राजनीति भी होने लगी.