जमीअत उलमा-ए-हिंद का वक्फ कानून के खिलाफ प्रस्ताव, बताया असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-04-2025
Jamiat Ulama-e-Hind's resolution against the Waqf law, called it unconstitutional and unjust
Jamiat Ulama-e-Hind's resolution against the Waqf law, called it unconstitutional and unjust

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने 13 अप्रैल को नई दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की, जिसमें वक्फ संशोधन अधिनियम 2025, उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ सरकारी कार्रवाई, समान नागरिक संहिता, और फिलिस्तीन में इजरायल की दमनात्मक कार्रवाइयों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई.​

सभा में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की आलोचना करते हुए इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए का उल्लंघन बताया गया. अधिनियम में 'वक्फ बाय यूजर' की समाप्ति, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर गंभीर आपत्तियां उठाई गईं. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस कानून को संविधान के खिलाफ और बहुसंख्यकों के वर्चस्व का प्रतीक करार दिया.​

उत्तराखंड में धार्मिक मदरसों को सील करने की राज्य सरकार की कार्रवाई को संविधान का गंभीर उल्लंघन मानते हुए जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इसकी कड़ी निंदा की. संगठन ने चेतावनी दी कि यदि सील किए गए मदरसों को बहाल नहीं किया गया, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी.​

संगठन ने समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करने को धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन बताया. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इसे लोकतंत्र और संवैधानिक गारंटियों के खिलाफ करार दिया।.

गाजा में इजरायल की दमनात्मक कार्रवाई और युद्ध अपराधों के बारे में गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भारत सरकार से मानवीय आधार पर हस्तक्षेप करने और युद्ध विराम सुनिश्चित करने की मांग की।.

जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने सदस्यता अभियान की तिथि को 31 जुलाई 2025 तक बढ़ा दिया है. स्थानीय और जिला चुनाव 1 अगस्त से 31 अगस्त तक, और प्रादेशिक चुनाव 1 सितंबर से 30 सितंबर तक आयोजित किए जाएंगे.​

इस बैठक में जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी ने पिछली कार्रवाई प्रस्तुत की, और सभा के अंत में दुआ का आयोजन किया गया.​

 बैठक में लिए गए निर्णयों और उठाए गए मुद्दों ने देशभर में धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक नई दिशा की ओर इशारा किया है.