आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर त्रिमिली शरीफ कंथोल में बाजी मियां गुलाम नबी नक्शबंदी के 50वें वार्षिक उर्स में विभिन्न धार्मिक समुदायों के हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया.
इस्लामिक विद्वान अब्दुल रशीद दाऊदी ने शनिवार को एएनआई को बताया, "मैं इस क्षेत्र में पहली बार आया हूं. उर्स हर साल सूफी संत के लिए होता है. लोगों को सूफी संत से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में भाईचारे और ज्ञान को बढ़ावा दिया. यह सब इसलिए किया जाता है ताकि लोग एक बेहतर इंसान बनने और न केवल अपने धर्म बल्कि मानवता का भी पालन करने की प्रेरणा लें."
कल कोटरंका उप-जिले में समारोह आयोजित किया गया, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई समुदायों के लोगों ने आध्यात्मिक भक्ति और एकता से भरे इस कार्यक्रम में भाग लिया. कार्यक्रम में प्रमुख कश्मीरी विद्वान राहीद दाऊदी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और कोटरंका विधायक इकबाल चौधरी ने भाग लिया.
कश्मीर के एक प्रतिष्ठित सूफी संत बाजी मियां कई साल पहले इस क्षेत्र में आए और त्रिमिली शरीफ में बस गए, जहाँ उनका निधन हो गया. त्रिमिली के मध्य में स्थित उनकी दरगाह आध्यात्मिक शांति और एकता का प्रतीक बन गई है.
ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी उनके पास सच्ची इच्छा या अनुरोध लेकर आता था, उसकी इच्छा पूरी होती थी, जिससे उन्हें सभी क्षेत्रों के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ. यह दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव का स्थान है, जहाँ सभी धर्मों के लोग एक साथ आते हैं और भाईचारे की अभिव्यक्ति के रूप में एक ही 'लंगर' में भोजन करते हैं.
हालाँकि, इसके आध्यात्मिक महत्व के बावजूद, यह क्षेत्र दूरस्थ और अविकसित है. राजौरी जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित, त्रिमिली शरीफ और कोटरंका पहाड़ी और सीमित कनेक्टिविटी के साथ पहुँचने में कठिन हैं. क्षेत्र की संवेदनशील प्रकृति के कारण, कार्यक्रम के दौरान व्यापक सुरक्षा उपाय किए गए थे, जिसमें सभी उपस्थित लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय बलों और स्थानीय पुलिस अधिकारियों की तैनाती शामिल थी. 50वां उर्स न केवल आस्था का उत्सव था, बल्कि बाजी मियां गुलाम नबी नक्शबंदी की स्थायी विरासत का भी मार्मिक स्मरण कराता है, जिनकी शिक्षाएं धार्मिक विभाजनों के पार एकता और शांति को प्रेरित करती रहती हैं.