वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में दायर हस्तक्षेप आवेदन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-04-2025
Intervention application filed in Supreme Court in support of Wakf Amendment Act, 2025
Intervention application filed in Supreme Court in support of Wakf Amendment Act, 2025

 

नई दिल्ली

भारत के संविधान की मूल योजना के अनुरूप वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में आज हस्तक्षेप आवेदन दायर किए गए. यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को लेकर संसद द्वारा किए गए महत्वपूर्ण संशोधन को लेकर है, जिसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कार्यों को और अधिक पारदर्शी और सटीक बनाना है.

इस आवेदन में अखिल भारत हिंदू महासभा के सदस्य सतीश कुमार अग्रवाल और हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुरूप हैं और इससे किसी भी मुस्लिम समुदाय के सदस्य के अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का उद्देश्य और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि यह अधिनियम 1995 के वक्फ अधिनियम में सुधार लाने और उसे और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से पारित किया गया था. संशोधन के तहत वक्फ बोर्डों को वक्फ संपत्तियों के बारे में अधिक जानकारी और निगरानी का अधिकार दिया गया है, ताकि किसी भी प्रकार की भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को रोका जा सके.

धारा-40 के तहत, वक्फ बोर्ड को यह अधिकार दिया गया था कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है यदि उसे विश्वास हो कि वह संपत्ति वक्फ से संबंधित है. इसके तहत वक्फ बोर्ड ने कुछ मामलों में अन्य लोगों की ज़मीनों को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित कर दिया, जिसे कई बार विवादों का सामना करना पड़ा.

सांसदों और विधायकों ने इस कदम को सही ठहराया है, यह बताते हुए कि वक्फ संपत्तियों के संबंध में सरकारी हस्तक्षेप के चलते न्याय और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा.

हस्तक्षेप आवेदन में प्रमुख तर्क

आवेदकों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने आवेदन में कहा है कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन, खासकर वक्फ संपत्तियों के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करने और उनकी निगरानी की प्रक्रिया में बदलाव, भारत के संविधान की मूल योजना के अनुरूप हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी धर्म या धार्मिक प्रथा किसी की संपत्ति पर अप्रतिबंधित अधिकार नहीं देती है और इस संशोधन से किसी भी मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है.आवेदन में वक्फ अधिनियम, 1995 के अंतर्गत वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्ति का अधिग्रहण करने के अधिकार की भी आलोचना की गई थी.

आवेदकों ने यह तर्क दिया कि इस अधिकार का दुरुपयोग हो सकता था, और इसलिए इस प्रावधान में बदलाव लाना आवश्यक था.

विरोधी याचिकाओं का परिपेक्ष्य

वहीं दूसरी ओर, वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएँ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा चुकी हैं. इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण हैं और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, आप विधायक अमानतुल्लाह खान, आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद, और समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क ने भी इस अधिनियम के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की है.

इन याचिकाओं में यह तर्क दिया गया है कि संशोधन मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्त में अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति देता है और इससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने भी इस संशोधन को "मनमाना" और "भेदभावपूर्ण" बताते हुए इसकी आलोचना की है.

उनका कहना है कि इस अधिनियम के कारण मुस्लिम समुदाय की धार्मिक प्रथाओं पर अनावश्यक नियंत्रण लागू होगा, जो भारतीय संविधान में guaranteed धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है.

कैविएट आवेदन और केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कैविएट आवेदन भी दायर किया है, जिसमें उसने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि जब तक सरकार का पक्ष नहीं सुना जाता, तब तक किसी भी तरह का प्रतिकूल आदेश न दिया जाए. कैविएट आवेदन इस बात को सुनिश्चित करने के लिए दायर किया जाता है कि बिना सरकार का पक्ष सुने कोई प्रतिकूल आदेश न पारित किया जाए.

मुख्य न्यायाधीश की पीठ और आगामी सुनवाई

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 अप्रैल, 2025 को इस मामले की सुनवाई के लिए तारीख तय की है. पीठ में न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन भी शामिल हैं. इस सुनवाई के दौरान यह निर्धारित किया जाएगा कि क्या वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 संविधान के तहत है और क्या इसके प्रावधानों से किसी समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की पारित होने की प्रक्रिया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी थी, जिसके बाद यह अधिनियम कानून बन गया. इस विधेयक को पहले संसद के दोनों सदनों में बहस और विचार-विमर्श के बाद पास किया गया था. यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार के लिए लाया गया है और इससे वक्फ बोर्डों को अधिक पारदर्शिता और जिम्मेदारी दी गई है.

इस विधेयक को लेकर संसद में गरमागरम बहस हुई थी, और इसे कई विपक्षी दलों ने चुनौती दी थी, लेकिन सरकार ने इसे पारित करने में सफलता प्राप्त की. इस विधेयक के तहत वक्फ संपत्तियों की जांच, प्रबंधन और निगरानी की प्रक्रिया को और अधिक कड़ा किया गया है, ताकि इन संपत्तियों का गलत तरीके से उपयोग रोका जा सके.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अब देश के सबसे महत्वपूर्ण कानूनी मामलों में से एक बन चुकी है. इस अधिनियम की कानूनी वैधता को लेकर कई पक्षों के तर्क और प्रतिवाद सामने आए हैं, जो इस मामले को और अधिक जटिल बना रहे हैं. अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला करता है और क्या यह संशोधन भारतीय संविधान के तहत है या नहीं.