नई दिल्ली. स्विट्जरलैंड में 1 जनवरी से लागू "बुर्का प्रतिबंध" पर गुरुवार को भारतीय राजनेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दीं. उन्होंने कहा, यह उस देश का अपना निर्णय है और इसको धार्मिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.
सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने पर रोक लगाने के आदेश ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है. नए स्विस कानून के अनुसार, जो लोग सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा अवैध रूप से ढकते हैं, उन पर 1,000 स्विस फ़्रैंक (1,144 डॉलर) तक का जुर्माना लगाया जाएगा. इसमें निजी या पवित्र स्थानों और विमानों या राजनयिक परिसरों में कुछ अपवादों के साथ नाक, मुंह और आंखें ढकना शामिल है.
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि प्रतिबंध लागू करने के लिए स्विट्जरलैंड के अपने कारण हो सकते हैं.
नकवी ने आईएएनएस से कहा, "हर देश के अपने नियम और कानून होते हैं. उनके अपने सुरक्षा इंतजाम होते हैं और उनके अनुसार वे नियम बनाते हैं. मुझे नहीं लगता कि इस मामले को धार्मिक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है."
इसी तरह, एनसीपी-एसपी नेता मजीद मेमन ने टिप्पणी की कि कानून को मुस्लिम बहुल देशों से समर्थन नहीं मिल सकता है, लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं होगा.
मेमन ने कहा, "स्विट्जरलैंड एक छोटा देश है और इसकी जनसंख्या भारत की तुलना में कुछ भी नहीं है. वहां मुस्लिम आबादी बहुत कम है. उनकी सरकार ने अपने देश की परिस्थितियों को देखते हुए ये कदम उठाए होंगे."
तुलना करते हुए मेमन ने कहा, "भारत की मुस्लिम आबादी स्विट्जरलैंड की कुल जनसंख्या से अधिक है, जहां 20 करोड़ से अधिक मुस्लिम रहते हैं. जो भी हो, इसका भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह उनका मामला है और मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है."
उन्होंने कहा, "कई मुस्लिम बहुल देश इस विचार की आलोचना कर सकते हैं. हालांकि, भारत में, जहां सभी धर्मों के लोग सौहार्दपूर्वक रहते हैं, मुझे नहीं लगता कि इसका कोई प्रभाव पड़ेगा."
यह प्रतिबंध दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी (एसवीपी) द्वारा "स्टॉप एक्सट्रीमिज्म" के बैनर तले प्रस्तावित किया गया था. इसका उद्देश्य हिंसक प्रदर्शनकारियों को नकाब पहनने से रोकना भी था. 2021 में, स्विस लोगों ने प्रतिबंध को मंजूरी दे दी, इसमें 51.2 प्रतिशत लोगों ने इसके पक्ष में और 48.8 प्रतिशत ने इसके खिलाफ मतदान किया. हालांकि, स्विस सरकार ने इस उपाय का विरोध किया था, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य की भूमिका नहीं है कि वह यह तय करे कि व्यक्ति कैसे कपड़े पहने.