राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
भारत ने अमेरिका की नवीनतम धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट की कड़ी आलोचना की है, इसे पक्षपातपूर्ण और अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया है. संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के विदेश विभाग द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जाने वाली इस रिपोर्ट में भारत सहित कई देशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर चिंताओं को उजागर किया गया है. विभिन्न प्रमुख धार्मिक नेताओं ने रिपोर्ट में किए गए दावों का खंडन किया है.
मंत्रालय के प्रवक्ता ने धार्मिक भेदभाव और हिंसा की घटनाओं के बारे में अमेरिकी रिपोर्ट में उठाई गई चिंताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम इस रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं, जो सीमित समझ और चुनिंदा सूचनाओं पर आधारित है.’’
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात दरगाह आला हजरत, बरेली के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने रिपोर्ट के निष्कर्षों पर कड़ी आपत्ति जताई. मौलाना रजवी ने कहा, ‘‘हर देश की अपनी समस्याएं और मुद्दे होते हैं. लेकिन हमारे पास एक समृद्ध सभ्यता है और हमारी गंगा-जमुनी तहजीब पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का एक उदाहरण है. किसी भी देश को हमारे सामाजिक ताने-बाने को समझे बिना हमारे मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.’’
रजवी ने कहा, ‘‘मैं इस बात से स्तब्ध हूं कि अमेरिका हमारे धार्मिक पारिस्थितिकी तंत्र को किस तरह देखता है. मैं उनसे आग्रह करता हूं कि वे इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष नजरिए से देखें और फिर वे एक स्वस्थ और विविधतापूर्ण राष्ट्र देखेंगे.’’
मौलाना रजवी दरगाह आला हजरत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सुन्नी इस्लाम में बरेलवी आंदोलन के एक प्रमुख इस्लामी विद्वान और आध्यात्मिक नेता इमाम अहमद रजा खान की दरगाह है. उन्हें उनके विद्वत्तापूर्ण योगदान, धार्मिक लेखन और सूफी प्रथाओं की वकालत के लिए सम्मानित किया जाता है.
भारतीय अधिकारियों ने निष्कर्षों को ‘निराधार’ बताते हुए खारिज कर दिया और अमेरिका पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए देश की मजबूत संवैधानिक सुरक्षा की अनदेखी करने का आरोप लगाया.
एक बयान में, विदेश मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि भारत धार्मिक सद्भाव के लिए प्रतिबद्ध है और अमेरिकी रिपोर्ट पर जमीनी स्थिति की ‘विकृत’ तस्वीर पेश करने का आरोप लगाया.
बरेलवी मुसलमानों के एक संगठन और देश में एक प्रमुख सुन्नी संगठन, ऑल इंडिया तंजीम उलेमा ए इस्लाम, दिल्ली के अध्यक्ष मुफ्ती अशफाक हुसैन कादरी ने भी इन विचारों का समर्थन किया.
मुफ्ती कादरी ने कहा, ‘‘हम रिपोर्ट के निष्कर्षों का समर्थन नहीं करते हैं, खासकर जब वे अमेरिका जैसे देश से आते हैं, जो मुस्लिम देशों के खिलाफ अपने कभी न खत्म होने वाले अत्याचारों के लिए बदनाम है. अफगानिस्तान, इराक और फिलिस्तीन जैसे देशों में मुसलमानों के खिलाफ उनकी हिंसा हमें धार्मिक स्वतंत्रता पर उपदेश नहीं दे सकती. हां, हमारे अपने मुद्दे हो सकते हैं. और हम मतभेदों को सुलझाने और एक समावेशी माहौल बनाने की दिशा में काम करने के लिए अपनी सरकारों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लगातार बातचीत करते हैं. फिर भी,किसी अन्य देश की भागीदारी और इस तरह की बदनामी बर्दाश्त नहीं की जा सकती.’’
खानकाह ए गुलजारिया अमेठी के नायब सज्जादा नशीन अबू अशरफ जीशान ने कहा, ‘‘जो भी हो, अगर हो सकता है, हमारा आंतरिक मामला है और हम हजारों सालों से इस देश में रह रहे अपनी विविधता का जश्न मनाते हैं. हम परिस्थितियों पर जीत हासिल करने और अपने बीच किसी भी मतभेद को सुलझाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.’’
रिपोर्ट को कथित दोहरे मानदंडों की भी आलोचना की जा रही है कि अमेरिकी रिपोर्ट अपनी सीमाओं या सहयोगी देशों में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों को नजरअंदाज करती है. संयुक्त राज्य अमेरिका, जिसे अक्सर संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण माना जाता है, धार्मिक विविधता और नस्लीय तनावों से जुड़े जटिल मुद्दों से जूझता रहता है. ऐतिहासिक विरासतों से लेकर समकालीन चुनौतियों तक, अमेरिकी समाज में धर्म और नस्ल का प्रतिच्छेदन एक सूक्ष्म और विकसित परिदृश्य प्रस्तुत करता है. धार्मिक बहुलवाद के साथ-साथ, राष्ट्र का इतिहास नस्लीय असमानता, गुलामी और अफ्रीकी अमेरिकियों, मूल अमेरिकियों और अन्य हाशिए के समूहों के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव से भी चिह्नित है.
नस्लीय समानता की दिशा में कदम उठाने के बावजूद, अमेरिकी जीवन के विभिन्न पहलुओं में असमानताएँ बनी हुई हैं. अफ्रीकी अमेरिकी और अन्य अल्पसंख्यक समूह गरीबी, कारावास और रोजगार और आवास में भेदभाव की उच्च दरों का सामना करना जारी रखते हैं. नस्लीय प्रोफाइलिंग, पुलिस हिंसा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के मुद्दे विवादास्पद विषय बने हुए हैं, जो ऐतिहासिक अन्याय में निहित गहरी असमानताओं को रेखांकित करते हैं.
वर्तमान कूटनीतिक दरार भारत और अमेरिका के बीच चल रही रणनीतिक वार्ता के बीच आई है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और साझा लोकतांत्रिक मूल्यों पर केंद्रित है. आलोचना के बावजूद, दोनों देश मतभेदों को दूर करने और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए कूटनीतिक वार्ता में लगे हुए हैं. अपनी प्रतिक्रिया की विवादास्पद प्रकृति के बावजूद, भारत रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य संबंधित पक्षों के साथ कूटनीतिक बातचीत में शामिल है. इस बातचीत में अक्सर स्पष्टीकरण, दृष्टिकोणों का आदान-प्रदान और रिपोर्ट के निष्कर्षों से उत्पन्न होने वाली किसी भी गलत धारणा या गलतफहमी को दूर करने के प्रयास शामिल होते हैं.
अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत की फटकार पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर इसी तरह के विवादों ने हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच संबंधों को समय-समय पर तनावपूर्ण बना दिया है.
ये भी पढ़ें : आज से बदल जाएंगे तीन बड़े आपराधिक कानून, माॅब लिंचिंग किया तो होगी फांसी या उम्र कैद
ये भी पढ़ें : एडवोकेट अफसर जहां: तेलंगाना में बाल एवं महिला अधिकारों की योद्धा
ये भी पढ़ें : आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के महासचिव डॉ सैयद अहमद खान को बचपन में नानी के घर जाना था पसंद