नई दिल्ली
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) के उप महानिदेशक डॉ. उदय भानु दास ने शुक्रवार को कहा कि भारत अब एड्स के बोझ से निपटने के लिए विदेशी सहायता या वित्त पोषण पर निर्भर नहीं है. गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित भारतीय एड्स सोसायटी के 16वें राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए दास ने कहा कि देश में विभिन्न एड्स कार्यक्रमों के लिए वित्त पोषण का एक बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा दिया जाता है. दास ने कहा, "वर्तमान में भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स और एसटीआई नियंत्रण कार्यक्रम को सरकार से 94 प्रतिशत वित्त पोषण मिलता है, जिसमें से केवल 6 प्रतिशत वैश्विक कोष से आता है - लेकिन यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि भारत सरकार वैश्विक कोष के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ में भी वित्तीय योगदान देती है. हम अब विदेशी सहायता या वित्त पोषण पर निर्भर नहीं हैं." राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के चरण-V का लक्ष्य देश में 2010 के आधार रेखा मूल्य से 2025-26 तक वार्षिक नए एचआईवी संक्रमण और एड्स से संबंधित मृत्यु दर को 80 प्रतिशत तक कम करना है.
एक अन्य प्रमुख उद्देश्य 2025 तक 95-95-95 लक्ष्य को प्राप्त करना है. इसका मतलब है कि एचआईवी से पीड़ित सभी लोगों में से 95 प्रतिशत को अपनी स्थिति पता होनी चाहिए, जो लोग अपनी स्थिति जानते हैं उनमें से 95 प्रतिशत को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी मिलनी चाहिए और उपचार पर रहने वाले 95 प्रतिशत लोगों को वायरल रूप से दबा दिया जाना चाहिए.
दास ने कहा, "2024-2025 में, भारत में एचआईवी से पीड़ित अनुमानित 84 प्रतिशत लोग अपनी स्थिति के बारे में जानते थे, उनमें से 86 प्रतिशत जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर थे और उनमें से 94 प्रतिशत वायरल रूप से दबा दिए गए थे." वैश्विक स्तर पर, एचआईवी से पीड़ित 86 प्रतिशत लोग अपनी स्थिति जानते थे, 89 प्रतिशत एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर थे, और एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर 93 प्रतिशत लोग वायरल रूप से दबे हुए थे.
एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) के अध्यक्ष एमेरिटस डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा, "अगर हमें एड्स को खत्म करना है, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी से पीड़ित सभी लोग अपनी स्थिति जानते हों, उनमें से 100 प्रतिशत जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर हों, और उनमें से 100 प्रतिशत वायरल रूप से दबे हुए हों. इससे यह सुनिश्चित होगा कि एचआईवी से पीड़ित सभी लोग स्वस्थ रहें और संक्रमण का आगे प्रसार भी रुक जाए." नाको के अनुसार, 2010 की तुलना में, 2023 तक भारत में एचआईवी की दर लगभग आधी हो जाएगी (44.23 प्रतिशत की गिरावट, जो इसी अवधि में वैश्विक गिरावट 39 प्रतिशत से अधिक है) और 2023 तक भारत में एड्स से संबंधित मौतों में 79.26 प्रतिशत की कमी आएगी (जो इसी अवधि में वैश्विक गिरावट 51 प्रतिशत से अधिक है).