मोहम्मद अकरम/ नई दिल्ली
मर्सिया वह सिन्फ़ है जिसको दुनिया की बेहतरीन शायरी के मुकाबले में रखा जाता है, इसमें क्लासिक शायरी के सभी गुण मौजूद हैं. जिसमें हर शायर या मर्सिया गो का अपना मुनफरिद रंग व आहन व फिक्र व ख्याल शामिल हैं. फिराक गोरखपुरी ने कहा था कि मर्सिया उर्दू शायरी की सबसे क्लासिक कविता है (Marsiya is the most Classic form of Urdu poetry) हमें लगा कि इस सिन्फ ए सुखन में सब कुछ है जो आप चाहते हैं.
असल कर्बला तो है ही लेकिन जब वह उत्तर भारत पहुंचा तो हमने किस तरह उसको सजाया, ऐसे मैं सुना है कि इमाम हुसैन ने कहा था कि हमें हिन्द जाने दिया जाए अगर वह यहां आ जाते तो हम दशहरा में जिस तरह हम रावण का पुतला जला रहे हैं तो यजीद का पुतला भी जलाते. उक्त बातें दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल हाउस में जश्न ए बहार की तरफ से आयोजित “दास्तान ए मर्सिया कर्बला से काशी तक” के विषय पर बोलते हुए जश्न ए बहार के संस्थापक कामना प्रसाद ने कही.
जिसने मर्सिया नहीं लिखा वह मुकम्मल शायर नहीं
कामना प्रसाद ने आगे कहा कि एक जमाने में ये माना जाता और समझा जाता था कि जिसने मर्सिया नहीं लिखा वह मुकम्मल शायर नहीं है. कामना प्रसाद से सानहा ए कर्बला के हवाले से कहा कि शुरु शुरु में आशूर नामा, रोजतुल शोहदा और कर्बल कथा में पढ़ते और सुनते रहे है. अवध के कसबों में महिलाएं अपनी क्षेत्रीय भाषा में दोहे और पंजाब में कवध पढ़ते हैं. कश्मीर के कसीदागर भी काम के दौरान तेज आवाज में कर्बला की दास्तान गुनगुनाते हैं.
सेराजुल दौला की वफात पर राम नारायण मौजूं की मर्सिया
कामना प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा कि मर्सिया निगारी में मुसलमानों के साथ साथ बड़ी संख्या में गैर मुस्लिमों ने मर्सिया पेश की है. उन्होंने नबाब कहा कि सेराजुल दौला की वफात पर राम नारायण मौजूं ने कहा कि
ग़ज़ालाँ तुम तो वाक़िफ़ हो कहो मजनूँ के मरने की
दिवाना मर गया आख़िर तो वीराने पे क्या गुज़री
खिलाफत आंदोलन का जिक्र करते हुए कामना प्रसाद ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर की शायरी को याद करते हुए
दौर ए हयात आएगा क़ातिल कज़ा के बाद
है इब्तेदा हमारी तेरी इंतहा के बाद
अपने संबोधन के समापन पर कामना प्रसाद ने कहा कि दशहरा हो या यौम ए आशूरा, दोनों का पैगाम एक है सत्य की असत्य पर, मजलूम की जालिम पर जीत है और आज भी हम हुसैनी पैगाम को हिन्दुस्तानी मर्सिया पुर असर तरीके से हम सब तक पहुंचाने में कामयाब है.
बहुत करीब से देखा है मैंने सब्र ए ख़लील
मगर हुसैन तेरे सब्र का जवाब नहीं
जालिम जुल्म कर सकता है लेकिन वह जिंदा नहीं रह सकता
जम्मू व कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने जश्न ए बहार के कार्यक्रम की तारीफ करते हुए कहा कि जालिम जुल्म कर सकता है लेकिन वह जिंदा नहीं रह सकता है. मजलूम उठेगा और उस तख्त को दोबारा हासिल करेगा. इस तरह के प्रोग्राम की बहुत जरूरत है, नफरतों के माहौल को जितना है तो मुहब्बत से ही जीती जा सकती है.
मुज़फ्फर अली फिल्म मेकर ने अपने संबोधन में कहा कि कर्बला से काशी तक का ये प्रोग्राम अपने आप में बहुत अहमियत है, किसी भी फिल्म को जब मैं बनाता हूं तो उसमें कर्बला की पूरी तस्वीर को सामने रखता हूं, इससे फिल्म के अंदर जान आती है. कर्बला का वाकया इमाम हुसैन की याद में पूरी इंसानियत के लिए मार्गदर्शन है. जुल्म की कोई वजूद नहीं होती है.
“स्नान करके आया है संगम पर बे रहमन.....
एनब ख्रिर्जा, फिरोज खान और अनर्गल मिश्रा ने पढ़ी कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर का हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठा “स्नान करके आया है संगम पर बे रहमन, और खाक ए कर्बला का तिलक ला जवाब है” फिरोज खान ने इस सिलसिला को आगे बढ़ाते हुए पेश किया “भूमी राम और कृष्ण की कर्बल का संदेश, आंसू तुम रे सोख के गंगा जमुनी देश” जिसके बाद मर्सिया का जादू लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा.
हुसैन शाह भी हैं और बादशाह भी हैं, हुसैन दीन भी हैं दीन की पनाह भी हैं. न की यजीद की बयत कटा दिया सर को, इसी सबब से, ये बुनियाद ए ला इलाह भी हैं. दिल्ली की तारीख पर लिखे गए मशहूर मर्सिया को जब पेश किया गया तो कुछ देर के लिए हाल में सन्नाटा छा गया.
क्या बूद ओ बाश पूछो हो पूरब के साकिनो
हमको गरीब जान के हंस हंस पुकार के
दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतखाब
रहते थे मुन्तखिब ही जहाँ रोजगार के
उसको फलक ने लूट के वीरान कर दिया
हम रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्लाह समेत बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की. प्रोग्राम का समापन कामना प्रसाद के शब्दों से हुआ.