फैजान खान / आगरा
करीब तीन साल बाद मुहर्रम की 7 तारीख यानी शनिवार को जुलूस निकाला गया. बाजार में सजे-धजे स्टालों पर अखाड़े के कलाकारों ने ढोल-नगाड़ों की धुन पर करतब दिखाए. बाजार समिति ने प्रतिभागियों का स्वागत किया. शनिवार को मुहर्रम की 7 तारीख को आगरा के पाई चैकी स्थित इमाम बाड़े में ऐतिहासिक फूलों का ताजिया रखा गया.
इसके साथ ही शहर में अन्य जगहों पर मातम का सिलसिला शुरू हो गया है. यह अगले तीन दिनों तक जारी रहेगा. फूलों के ताजिया पर फातिहा पढ़ने करने के बाद इसके सामने दुआ मांगी गई.कटरा दबक्यान स्थित इमामबाड़े में 323 साल पुरानी फूलों का ताजिया रखा जाता है. इस दौरान मुहर्रम के मानने वाले यहां दुआ, दरूद पढ़ते हैं. चैधरी हाजी अजीजुद्दीन, शाहिद हुसैन, शरीफ खान, इमरान, मुहम्मद शान, अदनान शेख और अन्य ने फाहिाख्वानी की.
अब मुहर्रम की 10 तारीख तक दोपहर 12 बजे से शाम छह तक ताजिये पर फूल चढ़ाकर फातिहा पढ़ी जाएगी. अस्पताल रोड, पाई की चैकी, मिंटोला, पाकी समरॉय, सराय ख्वाजा आदि मुस्लिम इलाकों में फूल चढ़ाने के साथ ही इसके रस्म अदा की जाएगी.
तीन साल बाद मिंटोला में हुई रैली
करीब तीन साल बाद मुहर्रम के सातवें दिन जुलूस निकाला गया. बाजार में सजे-धजे स्टालों पर अखाड़े के कलाकारों ने ढोल-नगाड़ों की धुन पर करतब दिखाए. बाजार समिति ने प्रतिभागियों का स्वागत किया. इस मौके पर हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर प्रकाश डाला गया. शनिवार शाम को कुश्ती देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हुए. यहां मैदान में कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया.
इस मौके पर डॉ. सिराज कुरैशी ने कहा कि तीन साल बाद कर्बला के शहीदों की याद में बैठक का आयोजन किया जा रहा है. मार्केट कमेटी के अध्यक्ष अदनान कुरैशी ने शर्बत के शबील का उद्घाटन किया. इस दौरान मुहम्मद शरीफ काले, गयास कुरैशी, जियाउद्दीन, हाजी कादिर, हुमायूं कुरैशी, निजाम पहलवान, मुहम्मद मुकीम कुरैशी, दानिश मानशी आदि मौजूद थे.
23 साल से लगातार रखा जा रहा ताजिया
शहर में करीब दो हजार ताजिये रखे जाएंगे, लेकिन पुराने शहर के पाय चैकी, कटरा दबकैय्यान इमामबाड़े में रखे जाने वाला फूलों का ताजिया करीब 323 साल से रखा जा रहा है. एतिहासिक ताजिऐ को फूलों के ताजिए रखने वाले हाजी चैधरी सरफराज खां ने बताया कि मुगलकाल में इसकी परंपरा शुरू हुई.
आज हमारी दसवीं पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है. पूरे शहर में इसी ताजिए को जुलूस के लिए सबसे पहले उठाया जाता है. इस ताजिये के लिए फूलों को अजमेर शरीफ से लाया जाता है. ये परंपरा मुकलकाल से चली आ रही है.
मोहर्रम की सात से 10 तारीख तक ताजिए पर करीब 700 किलो तक फूल चढ़ाए जाते हैं. अजमेर के फूलों के अलावा जायरीन और अकीदतमंद मन्नत मांगते हुए फूल चढ़ाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता चैधरी सईद खां, इसके पहले चैधरी नस्सन खां ताजिए को रखते थे.
अजमेर से मंगाए जाते हैं फूल
भारतीय मुस्लिम विकास परिषद के अध्यक्ष समी आगाई ने बताया कि आखिरी मुगल बहादुर शाह जफर के वक्त से ही इस ताजिए को रखा जाता है. इसे एतिहासिक कहा जाता है.आगरा में सबसे पुराना ताजिया कहा जाता है. अजमेर से फूल इसलिए मंगाए जाते है. वहां के फूलों की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है. बड़ा फूल होता है.
दाल, घास और रुई से बने ताजिए भी
समाजसेवी सैयद इरफान सलीम ने बताया कि घास और रुई से बने ताजिया भी तैयार किए गए हैं. फूलों के ताजियों के अलावा इनमें दाल, रुई और घास से बनाया जाने वाले ताजिये पर भी अकीदतमंद बड़ी तादात में हाजिरी लगाने के लिए आते हैं. घास का ताजिया सिरकी मंडी में, रुई का मंटोला में तो दाल का ताजिया हास्पिटल रोड पर कंमू टोला में रखा जाता है
कारीगरों की भी कई पीढ़ियां बना रहीं फूलों का ताजिया
कारीगर नाजिश ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियों से इस ताजिए बनाया जा रहे हंै. इसे हर हाल में मुहर्रम की सात तारीख तक तैयार कर दिया जाता है. सात की शाम को इमामबाड़ा कटरा दबैकयान में रखा जाता है.