नई दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को भारतीय रुपये में गिरावट को लेकर आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि रुपये में केवल मजबूत होते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट आई है, लेकिन मजबूत मैक्रोइकॉनोमिक फंडामेंटल की वजह से यह अन्य सभी मुद्राओं के मुकाबले स्थिर बना हुआ है.
पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 3 प्रतिशत की गिरावट चिंता का विषय है, क्योंकि इससे आयात महंगा हो जाता है, लेकिन उन्होंने इस आलोचना को खारिज कर दिया कि स्थानीय मुद्रा में चौतरफा कमजोरी आई है.
उन्होंने कहा, “मैं चिंतित हूं, लेकिन मैं इस आलोचना को स्वीकार नहीं करूंगी कि ‘अरे रुपया कमजोर हो रहा है!’ हमारे मैक्रोइकॉनोमिक फंडामेंटल मजबूत हैं. अगर फंडामेंटल कमजोर होते, तो रुपया सभी मुद्राओं के मुकाबले स्थिर नहीं होता.”
पिछले कुछ महीनों में भारतीय रुपया दबाव में रहा है, लेकिन यह एशियाई और वैश्विक समकक्षों के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सबसे कम अस्थिर मुद्रा है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के लगभग हर दिन रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने के पीछे व्यापार घाटे में बढ़ोतरी से लेकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 2025 में कम ब्याज दरों में कटौती के संकेत दिए जाने के बाद डॉलर इंडेक्स में उछाल तक शामिल है.
रिपोर्ट के अनुसार, रिजर्व बैंक ने हाजिर बाजार में रुपये को तेजी से गिरने से बचाने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार से 77 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं, जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4 अक्टूबर, 2024 को 701.176 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 30 जनवरी, 2024 को 629.557 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है.
सीतारमण ने कहा, ‘‘डॉलर के मुकाबले रुपये में उतार-चढ़ाव है. रुपया किसी भी अन्य मुद्रा की तुलना में कहीं अधिक स्थिर तरीके से व्यवहार कर रहा है.’’
डॉलर के मजबूत होने के कारण रुपये में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई भी उन तरीकों पर विचार कर रहा है, जिनसे वह बाजार में हस्तक्षेप कर सके, ताकि भारी अस्थिरता आधारित कारणों से बचने की आवश्यकता को स्थिर किया जा सके. इसलिए हम सभी स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं.’’ उन्होंने रुपये में उतार-चढ़ाव और मूल्यह्रास की ओर इशारा करने वाले आलोचकों को ‘बहुत ही त्वरित तर्क’ बताया. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आज के डॉलर के मजबूत होने के माहौल और नए अमेरिकी प्रशासन में, रुपये को डॉलर के साथ उसके संबंधों (और) उसके परिणामस्वरूप आने वाले उतार-चढ़ाव को समझना होगा. आलोचनाएँ हो सकती हैं, लेकिन उन आलोचनाओं का जवाब भी थोड़े और अध्ययन के साथ देना होगा.’’