स्वप्ना दास
हर वर्ष हाजो उर्स मेला असम के गरुड़चल पहाड़ियों पर धार्मिक सद्भाव और भाईचारे का अद्वितीय संदेश देता है. इस वर्ष भी उर्स मेला ने पूरे राज्य को एकता और शांति की प्रेरणा दी है. हाजो, जिसे असम का 'पंचतीर्थ' कहा जाता है, हिंदू, इस्लाम और बौद्ध धर्म के संगम का प्रतीक है. यहाँ हर साल पोवामक्का दरगाह पर आयोजित होने वाला उर्स मेला न केवल धार्मिक विविधताओं का सम्मान करता है, बल्कि समाज में सद्भाव और सौहार्द को बढ़ावा भी देता है.
उर्स मेला: एक धार्मिक परंपरा
हाजो में उर्स मेला विशेष रूप से माघ माह में आयोजित होता है, जो हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लिए एक पवित्र और शुभ समय होता है. हिंदू धर्म में माघ माह को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, वहीं मुस्लिम समुदाय के लिए भी यह समय बहुत महत्वपूर्ण होता है. उर्स मेला माघ के पहले दिन से शुरू होता है और माघी पूर्णिमा के दिन अपने चरम पर पहुँचता है. इस अवसर पर, हजारों की संख्या में लोग, जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों होते हैं, पोवामक्का दरगाह पर आते हैं और यहाँ अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हैं.
हाजो उरुस मेला: एकता का संदेश
उर्स मेला की सबसे खास बात यह है कि यह जाति, धर्म, भाषा और नस्ल की परवाह किए बिना हर किसी को एक साथ लाता है. हाजो में इस समय एकता और भाईचारे का माहौल होता है. यहाँ पर फकीर, साधक, तीर्थयात्री, और भक्तगण देशभर से आते हैं. इस मेले का उद्देश्य न केवल धार्मिक प्रार्थना करना होता है, बल्कि यह सभी धर्मों के बीच सद्भाव और एकता का प्रतीक भी बनता है.
मेले के दौरान, विशेष रूप से माघी पूर्णिमा की रात को, लोग पैगंबर मुहम्मद के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को याद करते हैं और इस दौरान विभिन्न धर्मों के लोग मिलकर मिलाद-ए-महफ़िल में भाग लेते हैं. इससे यह साबित होता है कि हाजो उर्स मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन चुका है.
पोवामक्का दरगाह: इतिहास और महत्व
पोवामक्का दरगाह हाजो में स्थित एक ऐतिहासिक और पवित्र धार्मिक स्थल है. यह दरगाह गरुड़चल पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है और यहाँ हिंदू धर्म के पवित्र स्थान होयग्रीव माधव मंदिर के पास ही स्थित है. पोवामक्का दरगाह का इतिहास कई किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है. एक किंवदंती के अनुसार, इस दरगाह के संस्थापक गयासुद्दीन औलिया मक्का के काबा शरीफ से एक विशेष टुकड़ा लाए थे, जिसे उन्होंने हाजो की गरुड़चल पहाड़ियों की नींव में स्थापित किया.
इसके अलावा, एक अन्य किंवदंती के अनुसार गयासुद्दीन औलिया को यहाँ एक मस्जिद की स्थापना के दौरान 90 मूर्तियाँ मिलीं, जो मक्का में पाई गई मूर्तियों की संख्या का एक-चौथाई थीं. यह लोककथाएँ और किंवदंतियाँ पोवामक्का दरगाह को एक पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं. यहाँ अल्लाह से प्रार्थना करने और आशीर्वाद लेने के लिए हजारों लोग आते हैं.
हाजो में विविधता और सद्भाव की मिसाल
हाजो असम में उन स्थानों में से एक है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सद्भाव के साथ रहते हैं. यहाँ पोवामक्का दरगाह, होयग्रीव माधव मंदिर, और अन्य तीर्थस्थल एक साथ स्थित हैं. हाजो में हर वर्ष विभिन्न धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, और इनमें से उर्स मेला एक ऐसा महोत्सव है जो न केवल धार्मिक आस्थाओं को सम्मानित करता है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता का संदेश भी देता है.
हाजो उर्स मेला और समाज में सामूहिक एकता
उर्स मेला, जो 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक सद्भाव की आवश्यकता को महसूस कर आयोजित किया गया था, अब एक परंपरा बन चुकी है. यह मेला समाज में धार्मिक एकता और सामूहिक सौहार्द को बढ़ावा देता है. यहाँ एकजुटता का यह संदेश साफ तौर पर होता है कि विभिन्न धर्मों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और हम सबको एक साथ शांति और सद्भाव के साथ रहना चाहिए.
हाजो उर्स मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सद्भाव और एकता का प्रतीक बन चुका है. यहाँ पर विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ मिलकर अपने विश्वासों का पालन करते हैं और एकता, शांति और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं. हाजो उर्स मेला समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और यह हमें यह सिखाता है कि विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ मिलकर अपने देश की सामाजिक और धार्मिक विविधताओं का सम्मान कर सकते हैं.
(स्वप्ना दास एक स्वतंत्र लेखिका हैं)