गिलगित, पीओजीबी. पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान की शिक्षा प्रणाली गंभीर संकट का सामना कर रही है, जिसमें विफलता की दर चिंताजनक रूप से उच्च है, जो क्षेत्र के प्रशासन में गहरी जड़ें जमाए बैठी समस्याओं को उजागर करती है. नागरिक समाज के प्रतिनिधि फहीम अख्तर ने शिक्षा विभाग की बार-बार विफलताओं पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘यह पहली बार नहीं है कि शिक्षा विभाग की विफलताएं उजागर हुई हैं. इससे पहले, इंटरमीडिएट परीक्षाओं के दौरान बड़ी संख्या में छात्र पास नहीं हो पाए थे. इसी तरह, इस साल पांचवीं और आठवीं कक्षा में लगभग 60 से 70 प्रतिशत छात्र फेल हो गए हैं.’’
गिलगित-बाल्टिस्तान में शिक्षा को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक अनुभवी शिक्षकों का प्रशासनिक भूमिकाओं में बार-बार स्थानांतरण है. अख्तर ने कहा, ‘‘जैसे ही कोई व्यक्ति थोड़ी भी शिक्षण क्षमता हासिल करता है, वह प्रशासनिक भूमिकाओं में चला जाता है. अधिकांश सक्षम शिक्षक निदेशक और अन्य प्रशासनिक पदों पर चले गए हैं, जिससे शिक्षा प्रणाली बाधित हुई है. इन भूमिकाओं में अतिरिक्त लाभ तो हैं, लेकिन योग्य शिक्षकों को कक्षाओं से दूर कर दिया जाता है, जिससे छात्रों को उचित निर्देश नहीं मिल पाते. क्षेत्र में शिक्षा के लिए बजट आवंटन अपर्याप्त है.’’
अख्तर ने बताया, ‘‘अन्य प्रांतों की तुलना में गिलगित-बाल्टिस्तान में शिक्षा के लिए आवंटन सबसे कम है.’’ उन्होंने कहा कि गैर-विकास बजट का एक बड़ा हिस्सा - 10 अरब रुपये से अधिक - शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च किया जाता है, लेकिन संसाधनों के उपयोग के बारे में बहुत कम जवाबदेही है. इस बीच, कई क्षेत्रों में छात्रों को उचित स्कूल बुनियादी ढांचे की कमी के कारण चरम मौसम की स्थिति में बाहर अध्ययन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. क्षेत्र में परीक्षा प्रणाली भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है.
अख्तर ने कहा, ‘‘यदि केवल 28 प्रतिशत छात्र पास होते हैं, तो इसका मतलब है कि पूरा विभाग विफल हो गया है. यदि 40 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले किसी व्यक्तिगत छात्र को असफल माना जाता है, तो जब कुल पास दर 28 प्रतिशत से कम हो, तो विभाग को ही जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. स्पष्ट नीतियों और पाठ्यक्रम नियोजन की कमी समस्या को और बढ़ाती है.’’
अख्तर ने कहा कि नागरिक समाज ने पाठ्यक्रम में स्थानीय भाषाओं को शामिल करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन रूपरेखा विकसित करने के बावजूद, कोई कार्यान्वयन नहीं हुआ. उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा केवल भाषा के बारे में नहीं बल्कि समझ के बारे में है. फिर भी, हमारे पास एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो वैचारिक समझ के बजाय रटने पर निर्भर करती है.’’
उन्होंने इस प्रणाली में पाखंड की ओर भी इशारा किया, जहां सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं जबकि सरकारी स्कूलों में गिरावट जारी है. उन्होंने कहा, ‘‘वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में छोड़ देते हैं और फिर सरकारी स्कूलों में काम करने चले जाते हैं, उम्मीद करते हैं कि दूसरे वहां पढ़ाएंगे. दूरदराज के इलाकों में स्थिति और भी खराब है, जहां शिक्षा तक सीमित पहुंच छात्रों के समग्र सीखने के परिणामों को प्रभावित करती है. उचित बुनियादी ढांचे की कमी, व्यावसायिक प्रशिक्षण और उच्च शिक्षा के अवसरों की अनुपस्थिति के साथ मिलकर, क्षेत्र के विकास में और बाधा डालती है.’’
अख्तर ने जोर देकर कहा, ‘‘शिक्षा एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसके लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके बजाय, हम अल्पकालिक परियोजनाएं देखते हैं जिनका कोई स्थायी प्रभाव नहीं होता है. तत्काल हस्तक्षेप के बिना, गिलगित-बाल्टिस्तान में युवाओं के भविष्य की संभावनाएं प्रभावित होती रहेंगी, जिससे यह क्षेत्र विकास में और पीछे रह जाएगा.’’