गैंगस्टर अबू सलेम ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-02-2025
  Abu Salem
Abu Salem

 

मुंबई. 1993 मुंबई सीरियल बम विस्फोट मामले में दोषी ठहराए गए गैंगस्टर अबू सलेम ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. अबू सलेम फिलहाल नासिक सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. उन्होंने सजा में रियायत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. सलेम ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह जेल अधिकारियों को निर्देश दे कि वे 31 दिसंबर, 2024 तक हिरासत में बिताए गए उसके कुल समय - 24 वर्ष, 9 महीने और 16 दिन - पर विचार करें और उसे रिहाई की तारीख निर्धारित करें.

न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम.मोदक की पीठ के समक्ष सलीम द्वारा अधिवक्ता फरहाना शाह के माध्यम से दायर याचिका में यह बात कही गई. हालाँकि, अदालत मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च को करेगी. यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2022 के आदेश के बाद दायर की गई थी. जिसमें भारत की प्रत्यर्पण संधि और पुर्तगाल को दिए गए संप्रभु आश्वासन के अनुसार, उनकी कारावास की अवधि 25 वर्ष तक सीमित कर दी गई थी.

11 नवम्बर 2005 को पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किये जाने के बाद सलेम पर मुकदमा चलाया गया और 1993 के बम विस्फोटों सहित दो मामलों में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. उनकी याचिका में कहा गया है कि विशेष सत्र न्यायालय ने सजा में छूट के लिए उनकी पूर्व याचिका को खारिज करके गलती की है, तथा उनकी लंबित हिरासत, दोषसिद्धि के बाद कारावास और अच्छे आचरण के आधार पर छूट को ध्यान में नहीं रखा है.

याचिका में तर्क दिया गया कि सलेम की सजा में उसकी हिरासत की पूरी अवधि, मुकदमे के बाद की अवधि, तथा उसे दी गई क्षमा भी शामिल है. सलेम के अनुसार, उसने नवंबर 2005 से सितंबर 2017 तक लगभग 11 वर्ष, 9 महीने और 26 दिन पूर्व-परीक्षण कैदी के रूप में हिरासत में बिताए.

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि सलेम ने कारावास के दौरान अच्छा आचरण बनाए रखा और जेल में रहने के दौरान उसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई. उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें 25 साल से अधिक समय तक सलाखों के पीछे रखना उनके प्रत्यर्पण के समय भारत सरकार द्वारा पुर्तगाल को दिए गए आश्वासनों का उल्लंघन होगा.

सलेम ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला दिया, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, और दावा किया कि अधिकारी उसे निर्धारित सजा से अधिक हिरासत में रखकर उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं. उनकी याचिका में अदालत ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उनकी रिहाई की सही तारीख की पुष्टि करें और यह सुनिश्चित करें कि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार 25 वर्ष की अवधि से अधिक समय तक हिरासत में न रखा जाए.