डा. नशीमन अशरफ ने तोड़ा भ्रम, SERB-POWER में फेलोशिप हासिल करने वाली पहली कश्मीर महिला बनीं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 26-02-2022
डा. नशीमन अशरफ ने तोड़ा भ्रम, एसईआरबी-पावर में फेलोशिप हासिल करने वाली पहली कश्मीर महिला बनीं
डा. नशीमन अशरफ ने तोड़ा भ्रम, एसईआरबी-पावर में फेलोशिप हासिल करने वाली पहली कश्मीर महिला बनीं

 

शगुफ्ता नेमत नई दिल्ली / श्रीनगर
 
एक कश्मीरी महिला वैज्ञानिक ने जीवन विज्ञान में प्रतिष्ठित विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी-पावर) फेलोशिप अर्जित करके पुरुष-प्रधान एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्र के तमाम भ्रम तोड़ दिए है.

डॉ नशीमन अशरफ एसईआरबी-पावर फेलोशिप 2022 हासिल करने वाली कश्मीर की पहली महिला हैं. यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) में भारतीय महिला शोधकर्ताओं को सशक्त बनाने की एक महत्वपूर्ण पहल है.
 
इससे पहले उन्हें अमेरिका के केंटकी विश्वविद्यालय में विजिटिंग साइंटिस्ट के रूप में काम करने के लिए सीएसआईआर रमन रिसर्च फेलोशिप और स्पेन में काम करने के लिए ईएमबीओ शॉर्ट-टर्म फैलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है.
 
 
उन्होंने कहा, ‘‘ महिलाओं को खुद पर विश्वास करने और अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है. इसके बाद वो सब कुछ हासिल कर सकती हैं. ”
डॉ नशीमन वर्तमान में सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (सीएसआईआर-आईआईआईएम), शाखा, श्रीनगर के प्लांट बायोटेक्नोलॉजी डिवीजन में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं.

उनका शोध कार्य मुख्य रूप से घाटी की बेशकीमती नकदी फसल केसर के सुधार पर केंद्रित है. उन्होंने बताया, “हमारा उद्देश्य केसर की खेती और उत्पादन को बढ़ावा देकर अच्छी गुणवत्ता वाले केसर के समाधान की पेशकश करना है. इससे केसर उत्पादकों और किसान समुदाय को काफी हद तक फायदा होगा.‘‘
 
श्रीनगर के पुराने शहर में जन्मी और पली-बढ़ी डॉ. नशीमन ने बचपन से ही अलग-अलग चीजों को आजमाने की आदत विकसित कर ली थी.वह बताती हैं,‘‘मैंने जो भी ज्ञान हासिल किया है उसे दूसरों के साथ साझा करने की मैंने हमेशा कोशिश की है. इसके अलावा, विभिन्न चीजों को आजमाने की इस आत्मीयता ने मुझे अंततः विज्ञान और अनुसंधान की अवधारणाओं से परिचित कराया. ”
 
जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से जैव रसायन में स्नातकोत्तर करने के बाद, उन्होंने अपनी पीएच.डी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च, जेएनयू से 2010 से पूरा किया. उसके बाद वह अपनी वैज्ञानिक विशेषज्ञता के माध्यम से अपने समुदाय को वापस देने के सपने के साथ श्रीनगर लौर्ट आइं.
 
लेकिन विज्ञान में अच्छा करने की उनकी यात्रा आसान नहीं थी. यह इस तथ्य के कारण है कि घाटी में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की संख्या कम है. एसटीईएम में करियर चुनने वाली महिलाओं की संख्या तो ना के बराबर है.
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यह समस्या अचेतन पूर्वाग्रह और कार्यबल में महिलाओं की संख्या में सुधार के लिए संस्थानों द्वारा सक्रिय उपायों की कमी के कारण बढ़ जाती है. हालांकि, डॉ. नशीमन ने तमाम बाधाओं के बावजूद अपने सपने को जीना जारी रखा.
 
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद है जब मैं श्रीनगर आई तो मुझे बस एक खाली जगह दी गई थी. जबकि जरूरत पड़ने पर मेरे पास बहुत समर्थन था और मैं समर्थन के साथ पुरुष-प्रधान दुनिया को आईना दिखा सकती थी. मगर इसके लिए बार-बार यह साबित करने की आवश्यकता होती हैं. ”

उनका मानना है कि एक शोधकर्ता का जीवन तनावपूर्ण हो सकता है लेकिन सारा तनाव तब गायब हो जाता है जब अचानक आप प्रकृति के सत्य के एक कण को समझ जाते हैं, जिसे अभी तक कोई और नहीं समझ पाया है. ‘‘मानव जाति के ज्ञान के समुद्र में योगदान करने की यह भावना वास्तव में बहुत मजबूत है. ये ‘उत्साही‘ क्षण हैं जिनके इंतजार में सभी रहते हैं! यह वही है जो सभी शोधकर्ताओं को प्रेरित करता है. ”
 
यह पूछे जाने पर कि वह एसटीईएम में महिलाओं को क्या सलाह देंगी, उन्होंने कहा, ‘‘चीजें मुश्किल लग सकती हैं लेकिन यह असंभव नहीं है. बड़ी समस्याओं का डटकर मुकाबला करें. हर पहलू को अपने आप से या सहयोग से अच्छी तरह से तलाशें और हार न मानें.‘‘