आतंक से नहीं डरी SSM College की उपाध्यक्ष दिलाफ्रोस क़ाज़ी
Story by ओनिका माहेश्वरी | Published by onikamaheshwari | Date 03-08-2023
SSM College की Vice Chairperson Dilafrose Qazi
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
"शिक्षा, शांति, सौहार्द मेरे जीवन जीने के तीन मूल्य हैं. जिनके दम पर मैने आज भी एसएसएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की नीव को हिलने नहीं दिया और आतंक के आगे झुकी नहीं": SSM College की उपाध्यक्ष दिलाफ्रोस क़ाज़ी
श्रीनगर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में इल्म का नूर फैलाने वाली दिलाफ्रोस क़ाज़ीने शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित किया है. SSM College के छात्र पूरी दुनिया में परचम लहरा रहे है.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने आवाज द वॉयस को बताया कि एसएसएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (SSM College) की शुरुवात 1988 में की थी जिस दौरान कश्मीर में आतंक का कहर शुरू हुआ और उनके परिवार से उनके पिता, भाई और उनके पति को आतंकवादियों ने किडनैप किया और फिरौती की भारी रकम मांगी.
वो बहुत बुरा वक़्त था जब दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने आतंकवादियों से रहम की मांग की, लेकिन उनके परिजनों को छुड़ाने के लिए उनको आतंकवादियों को अपनी खून पसीने महनत की कमाई देनी ही पड़ी, जिसके बाद भी आतंकवादियों का पेट नहीं भरा.
उन्होनें 5000 रुपए के बाद सीधा 50,000 रुपए की मांग की फिर तो आतंक थमने का नाम ही नहीं ले रहा था ऐसे बुरे हालातों में वे अपने परिवार सहित राजबाग से प्रयास पर गांव में जा बसी लेकिन यहां भी उनका पीछा आतंक से नहीं छूटा.
यहां किसी राजनेता ने उनका जीना दुशवार कर दिया उनकी कॉलेज की जमीन को वो हड़पना चाहता था जिसमें पुलिस भी दिलाफ्रोस क़ाज़ी की कोई मदद नहीं कर पा रही थी ऐसे में उनके परिवार पर निशाना साधा गया उन पर भी फायरिंग कराई गई.
उनके कॉलेज को भी तबाह करने की पूरी कोशिश की गई ऐसे में उनके शुभचिंतकों ने उन्हें वहां से जाने की सलाह दी. मगर प्रयास पर गांव के लोगों ने उनका साथ दिया. उनका सहयोग किया जिनके लिए दिलाफ्रोज़ ने प्राइमरी स्कूल खुलवाए थे .
फिर एक बार दिलाफ्रोस क़ाज़ी डट कर कड़ी रही और अपने कॉलेज को बचाने का हर सम्भव प्रयास किया. इस बीच उनके कॉलेज में आर्मी के जवानों ने भी दस्तक दी जिनका कहना था कि उनके कॉलेज में कुछ आतंकवादी छात्रों के इनपुट्स मिले हैं.
जबकि दिलाफ्रोज़ ने साफ शब्दों में वहां के ब्रिगेडियर को बताया कि यहां हमारे कॉलेज में तो सारे एडमिशन सरकार की रजामंदी से ही होते हैं. जिसके बाद वे काफी शर्मिंदा हुए.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने आवाज द वॉयस के साथ एक और किस्सा शेयर किया जिसमें उनके कॉलेज में वार्षिक कार्यक्रम के लिए वो गुलाम नबी आज़ाद को निमंत्रण देने गई थी और वे उन्हें देखकर हैरान हो गए थे कि वो जाबाज महिला दिलाफ्रोज़ क़ाज़ी ही थी जिन्होनें किसी राजनेता या आतंकवादी के सामने घुटने नहीं टेके और लगातार शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को पढ़ाने और बढाने के लिए प्रयासरत हैं.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने बताया कि एक बार एसएसएम कॉलेज को बेन करने की कवायद भी हुई और अख़बारों में उनके कॉलेज को बेन करने की मांग उठाई गई जिसका हवाला ये दिया गया कि उनके कॉलेज में लड़के लड़कियां वार्षिक उत्सव में साथ में डांस करते हैं.
इसके बाद उच्च अधिकारियों के सामने दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने अपनी बात रखी और कहा कि बहुत से स्कूल भी वहां ऐसे हैं जिनमें बच्चें साथ डांस करते हैं उन्हें कोई कुछ क्यों नहीं बोल रहा जिसका उत्तर वहां कुर्सी पर बैठे लोगों के पास नहीं था.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी का मानना है की हर जंग केवल शिक्षा और ज्ञान के माध्यम से जीती जा सकती हैं उनके कॉलेज में तब भी कोई प्रोटेस्ट या मार्च नहीं हुआ.
जब पुरे कश्मीर में हालात खराब थे और लोग आंदोलनों में छात्र यूनिट को भी शामिल करना चाहते थे.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी राष्ट्रीयता में पूर्ण विश्वास रखतीं हैं वे खुद एक एनसीसी कैडेड थी उनकी रग- रग में भारत है और वे अपने छात्रों को भी यहीं शिक्षा देती हैं कि शांति, सौहार्द और ज्ञान से ही हर बुरी शक्ति को हराया जा सकता है.
दिलाफ्रोज़ क़ाज़ी ने केवल महिलाओं के पॉलिटेक्निक कोर्सेस से अपने कॉलेज की शुरुवात की थी लेकिन आज के वक़्त में एसएसएम कॉलेज में कुल 10 कोर्सेस हैं जिसमें 5 इंजीनियरिंग और 3 नॉन इंजीनियरिंग एवं एम टेक शामिल है.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी खासकर महिलाओं को शिक्षित करने पर जोर देती हैं. वो कहतीं हैं कि मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 हटाकर बहुत अच्छा कदम उठाया मगर अब भी बाहर से आकर कोई छात्र श्रीनगर में कॉलेज में दाखिला नहीं ले सकता जब तक उसके पास यहां का डोमेसाइल न हो. इस रूल में वे बदलाव चाहतीं हैं.
प्रयास पर गांव के लोगों की वे छोटे छोटे लोन देकर सहायता भी करती हैं. दिलाफ्रोज़ क़ाज़ी के एसएसएम कॉलेज की चोटी पर पहले दिन से तिरंगा है जो आज भी लहरा रहा है और कॉलेज के छात्र बुलंद आवाज में प्रतीदिन राष्ट्रगान गाते हैं.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने हालिया हालात साझा करते हुए आवाज द वॉयस को बताया कि उनकी जंग अभी भी कुछ बुरी ताकतों से जारी है जिसका वे अकेले ही सामना कर रहीं हैं.
उनके कॉलेज की कुछ जमीन डेमोलिशन के अंदर सरकार की है वे चाहती हैं कि भले ही सरकार उस जमीन को अपने कब्जे में कर ले लेकिन उसे तोड़े नहीं इससे उनके कॉलेज को कोई आंच नहीं आएगी और उनके छात्र वैसे ही वहां ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं.
इस प्रस्ताव के समर्थन में बहुत से लोग उन्हें दूर दराज से फोन पर समर्थन देते हैं लेकिन दिलाफ्रोज़ क़ाज़ी ने बताया कि उन्हें किसी की मदद की कोई जरुरत नहीं और वे खुद ही इस समस्या का समाधान भी निकल लेंगी.
दिलाफ्रोस क़ाज़ी ने 25 वर्ष की आयु में एसएसएम कॉलेज की शुरुआत अपनी रोजी रोटी के लिए की थी जो अब उनकी जिंदगी बन गई है.
कॉलेज के छात्रों का भविष्य उज्व्वल बनाना ही उनके जीवन का लक्ष्य है जिसके लिए वे अब 60 वर्ष की आयु में भी कदम- कदम पर चुनौतियों का डट कर सामना करती हैं. दिलाफ्रोस क़ाज़ी एसएसएम कॉलेज के छात्रों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ा रहीं हैं.