नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को तस्लीम अहमद की जमानत याचिका को सुनवाई के लिए रोस्टर बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया. इससे पहले, एक विशेष पीठ 2020 में दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश के मामले में अन्य आरोपियों की याचिकाओं के साथ जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
न्यायमूर्ति नवीन चावला और रेणु भटनागर की खंडपीठ ने 25 मार्च को सुनवाई के लिए रोस्टर बेंच के समक्ष जमानत याचिका सूचीबद्ध की. आरोपी तस्लीम अहमद के वकील महमूद प्राचा ने अदालत से मामले को रोस्टर बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने का आग्रह किया.
यह प्रस्तुत किया गया कि उनका मामला अन्य सह-आरोपियों से अलग है. इस मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, ताहिर हुसैन और अन्य आरोपी हैं.
आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) सहित कानून की कई कठोर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. इससे पहले 22 फरवरी 2024 को निचली अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी. उन्होंने 2020 के दिल्ली दंगों की एक बड़ी साजिश में नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा जैसे तीन सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर नियमित जमानत मांगी थी. देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ उनकी अपील स्वीकार करने के बाद 15 जून 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियमित जमानत दे दी थी.
विशेष न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने कहा था कि आरोपी तसलीम अहमद की पिछली जमानत याचिका को पूर्ववर्ती अदालत ने 16 मार्च 2022 को खारिज कर दिया था, जिसमें अदालत ने आरोपी के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टया सही माना था. इसलिए यूए(पी)ए की धारा 43डी द्वारा बनाया गया प्रतिबंध आरोपी को जमानत देने के लिए लागू होता है और धारा 437 सीआरपीसी में निहित प्रतिबंध भी लागू होता है, अदालत ने माना था.
वकील ने पहले तर्क दिया था कि आवेदक, केवल योग्यता के आधार पर जमानत के हकदार होने के अलावा अब समानता के आधार पर भी मुक्त होने का हकदार है. दूसरी ओर, विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) ने आवेदन का विरोध किया. उन्होंने उल्लेख किया कि पहले की जमानत याचिका में भी आवेदक ने समानता के आधार उठाए थे और इस अदालत ने उक्त दलील से निपटने में प्रसन्नता व्यक्त की थी और आवेदक को कोई पक्षपात नहीं किया गया था.