नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अमित शर्मा ने गुरुवार को छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम सहित 2020 के सांप्रदायिक दंगों के पीछे कथित बड़ी साजिश से जुड़े यूएपीए मामले में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.
ऐसे मामलों से निपटने वाले न्यायाधीशों के रोस्टर में बदलाव के बाद मामले न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किए गए थे. न्यायमूर्ति सिंह ने आदेश दिया, ‘‘इन मामलों को 24 जुलाई को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के आदेशों के अधीन, एक अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसके हममें से एक न्यायमूर्ति शर्मा सदस्य नहीं हैं.’’
मामले में अन्य आरोपी व्यक्तियों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के युवा विंग के नेता और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र मीरान हैदर और जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष शिफा-उर-रहमान शामिल हैं.
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक खालिद सैफी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद सहित कई अन्य लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों के कथित तौर पर ‘मास्टरमाइंड’ होने का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे.
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. 11 अप्रैल, 2022 को ट्रायल कोर्ट ने इमाम को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसे 25 अगस्त, 2020 को मामले में गिरफ्तार किया गया था.
दिल्ली पुलिस ने मार्च में न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इमाम की जमानत याचिका का इस आधार पर विरोध किया कि उसने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को संगठित किया और “चक्का जाम” को व्यवधान के तौर पर “प्रचारित” किया, जिसमें “शांतिपूर्ण विरोध के लिए कोई रास्ता नहीं था”.
पुलिस ने दावा किया है कि विरोध प्रदर्शन तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के समय हिंसा भड़काने की साजिश का हिस्सा थे और इमाम ने अपने सार्वजनिक संबोधनों में सरकार को पंगु बनाने की कार्ययोजना के रूप में “चक्का जाम” के विचार का प्रचार किया था.
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