नई दिल्ली
दिल्ली दंगों से जुड़े बड़े षड्यंत्र मामले में गुलफिशा फातिमा, अब्दुल खालिद सैफी और कई अन्य आरोपियों ने समानता और हिरासत में लंबे समय तक रहने के आधार पर जमानत मांगी है. उनकी जमानत याचिकाएं दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं.
न्यायमूर्ति नवीन चावला और शालिंदर कौर की खंडपीठ ने गुलफिशा फातिमा, अब्दुल खालिद सैफी, शिफा उर रहमान और अन्य के बचाव पक्ष के वकीलों की आंशिक दलीलें सुनीं. वकीलों ने समानता और लंबी हिरासत के आधार पर अपनी दलीलें केंद्रित कीं.
उनकी याचिकाओं को 6 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. शरजील इमाम की याचिका को सुनवाई के लिए 12 दिसंबर को सूचीबद्ध किया गया है. दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व एएसजी एसवी राजू और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने किया.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल गुलफिशा फातिमा की ओर से पेश हुए. उन्होंने तर्क दिया कि फातिमा को नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के साथ समानता के आधार पर जमानत दी जानी चाहिए, दोनों को समान परिस्थितियों में जमानत दी गई थी.
सिब्बल ने कहा, "दंगों में वास्तविक संलिप्तता के बारे में रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है." वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि समानता की दलील बहुत संकीर्ण है और व्यापक दलील यह है कि गुलफिशा फातिमा 4.5 साल से जेल में है.
अब्दुल खालिद सैफी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन पेश हुईं. उन्होंने कहा कि 700 से अधिक मामले हैं. बड़ी साजिश का यह मामला अलग है. प्रत्येक व्यक्ति के खिलाफ अलग-अलग मामले हैं. रेबेका जॉन ने बताया कि सैफी को 2020 में दंगों के एक पिछले मामले में बरी कर दिया गया था, और उस बरी करने को कोई चुनौती नहीं दी गई थी.
उनके खिलाफ दो और मामले लंबित हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता जॉन ने कहा कि दिल्ली पुलिस की वजह से देरी हुई. इसने एक चार्जशीट और चार पूरक चार्जशीट दाखिल की. हर चार्जशीट के साथ, उन्होंने नए आरोपियों को जोड़ा और प्रत्येक आरोपी को प्रतियां दी गईं.
इस बड़े षड्यंत्र मामले में अभियोजन पक्ष के 897 गवाह हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता ने आगे कहा कि अब्दुल सैफी की तुलना आरोपी नताशा, देवांगना और आसिफ इकबाल तन्हा से की जा सकती है. उन्होंने कहा, "यह कहा गया कि अब्दुल सैफी ने खुरेजी विरोध स्थल का आयोजन किया था. खुरेजी विरोध स्थल हिंसा का स्थल नहीं था."