नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को 2017 के जम्मू और कश्मीर आतंकी फंडिंग मामले में बारामुल्ला के सांसद इंजीनियर राशिद द्वारा दायर जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को नोटिस जारी किया.
अपनी याचिका में, उन्होंने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि वह ट्रायल कोर्ट को उनके लंबित नियमित जमानत आवेदन पर निर्णय लेने में तेजी लाने का निर्देश दे. वैकल्पिक रूप से, राशिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय से मामले का सीधे निपटारा करने का अनुरोध किया है. न्यायमूर्ति विकास महाजन की पीठ ने नोटिस जारी करने के बाद मामले की सुनवाई 30 जनवरी, 2025 के लिए तय की.
राशिद का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन ने तर्क दिया कि एक सांसद के रूप में, उनके मुवक्किल को संसद के आगामी बजट सत्र में भाग लेने की आवश्यकता है. उन्होंने आगे जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट में लंबित निर्णय में तेजी लाई जानी चाहिए.
हाल ही में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में सांसद राशिद इंजीनियर की नियमित जमानत याचिका पर फैसला लेने की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी. ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर उसे केवल विविध आवेदनों पर विचार करने का अधिकार है, न कि नियमित जमानत याचिका पर फैसला सुनाने का.
इससे पहले, जिला न्यायाधीश ने राशिद इंजीनियर के सांसद होने के कारण मामले को सांसदों के लिए नामित अदालत में स्थानांतरित करने के एएसजे के अनुरोध के बाद मामले को एएसजे कोर्ट को वापस कर दिया था. यह स्थानांतरण अनुरोध अभियुक्त और अभियोजन एजेंसी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) दोनों की सहमति से किया गया था. जिला न्यायाधीश का निर्णय यह देखते हुए आया कि न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का मुद्दा अभी भी दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. जब तक उच्च न्यायालय अधिकार क्षेत्र पर फैसला नहीं सुनाता, तब तक एएसजे कोर्ट मामले की सुनवाई जारी रखेगा. राशिद के वकील और एनआईए दोनों ने मामले को मौजूदा अदालत में रखने पर सहमति जताई थी.
एनआईए के मामले के अलावा, विशेष न्यायाधीश ने संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले और राशिद की नियमित जमानत याचिका को सांसदों के लिए नामित अदालत में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था.
जम्मू-कश्मीर के बारामुल्ला से निर्दलीय लोकसभा सांसद इंजीनियर राशिद ने हाल ही में अपनी अंतरिम जमानत समाप्त होने के बाद तिहाड़ जेल में आत्मसमर्पण कर दिया है. यह जम्मू-कश्मीर आतंकी फंडिंग मामले से संबंधित है, जिसकी वर्तमान में एनआईए द्वारा जांच की जा रही है.
अगस्त 2019 में, राशिद को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था. अपनी कैद के दौरान, उन्होंने जेल से 2024 के संसदीय चुनावों के लिए अपना नामांकन दाखिल किया और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हराकर 204,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की.
2022 में, पटियाला हाउस कोर्ट की एनआईए अदालत ने राशिद इंजीनियर और हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन, यासीन मलिक, शब्बीर शाह, मसरत आलम, जहूर अहमद वटाली, बिट्टा कराटे, आफताब अहमद शाह, अवतार अहमद शाह, नईम खान और बशीर अहमद बट (जिन्हें पीर सैफुल्लाह के नाम से भी जाना जाता है) सहित कई अन्य प्रमुख हस्तियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया.
ये आरोप जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग की चल रही जाँच का हिस्सा हैं, जहाँ राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) का आरोप है कि लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और जेकेएलएफ जैसे विभिन्न आतंकवादी संगठनों ने क्षेत्र में नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमलों की योजना बनाने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर काम किया.
एनआईए की जाँच में दावा किया गया है कि 1993 में, हवाला और अन्य गुप्त तरीकों से फंडिंग के साथ अलगाववादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) का गठन किया गया था. हाफिज सईद पर हुर्रियत नेताओं के साथ मिलकर इन अवैध निधियों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाने, सुरक्षा बलों को निशाना बनाने, हिंसा भड़काने, स्कूलों को जलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के लिए करने का आरोप है. एजेंसी का कहना है कि ये ऑपरेशन क्षेत्र को अस्थिर करने और राजनीतिक प्रतिरोध की आड़ में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किए गए थे.