नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कथित लश्कर-ए-तैयबा कार्यकर्ता जफर अब्बास उर्फ जफर की अपील खारिज कर दी, जिसने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दर्ज एक आतंकी मामले में उसे जमानत देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी.
उसकी अपील को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, ‘‘ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है.’’ विस्तृत निर्णय अभी अपलोड किया जाना है.
जफर अब्बास ने पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा 2 अगस्त, 2024 को पारित आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी.
एनआईए ने उन पर आईपीसी की धारा 120बी, 121 और 121ए तथा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) की धारा 18, 38 और 39 के तहत आरोप लगाए हैं. उनकी पिछली दो जमानत याचिकाओं को भी ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था. एक चार्जशीट दाखिल होने से पहले दायर की गई थी, जबकि दूसरी चार्जशीट दाखिल होने के बाद दायर की गई थी. एनआईए के विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अधिवक्ता राहुल त्यागी ने अपील का विरोध किया. एनआईए ने 2021 में एफआईआर दर्ज की थी.
आरोप है कि कश्मीर के बारामुल्ला निवासी मुनीर अहमद अपने दो प्रमुख सहयोगियों अरशिद अहमद टोंच और जाफर के साथ मिलकर लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के गुर्गों का नेटवर्क चला रहे थे. उन्होंने कथित तौर पर पूरे भारत में अवैध कार्य करने के लिए लोगों की भर्ती की थी. आरोप है कि साजिश के तहत ये लोग अपने विदेश स्थित संचालकों के संपर्क में रहते हैं और उनके निर्देश पर भारत के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों, सुरक्षा बलों और सुरक्षा एजेंसियों के बारे में खुफिया जानकारी जुटाने के साथ-साथ आतंकवादी हमले करने के लिए लक्षित स्थानों की पहचान करने आदि में लगे रहते हैं और यह जानकारी इंटरनेट आधारित एन्क्रिप्टेड संचार प्लेटफार्मों के माध्यम से विदेशों में स्थित लश्कर-ए-तैयबा के नेतृत्व को दी जाती है.
आरोप है कि वे विदेश में मौजूद संचालकों से आतंकी फंडिंग प्राप्त करते हैं और कथित तौर पर आतंकवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए भारत स्थित गुर्गों के कई छद्म नाम वाले बैंक खातों का संचालन करते हैं.