लखनऊ. इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम द्वारा चार छात्रों को उनकी दाढ़ी ‘दाढ़ी कटवाने और ट्रिम करने’ के लिए निष्कासित कर दिया गया है. इस बारे में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के सदस्य शहजादी सैयद ने कहा कि निष्कासित छात्रों को न्याय का अधिकार है और यदि वे शिकायत दर्ज करवाते हैं, तो यह पैनल उनकी मदद करेगा.
सैयद ने कहा, ‘‘आयोग निश्चित रूप से स्थानीय अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाएगा और अपनी अगली बैठक में यह भी निर्णय लेगा कि क्या निष्कासित छात्र इस संबंध में हमारे पास शिकायत दर्ज करवाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि लोकतंत्र में सभी को न्याय पाने का अधिकार है. अगर इन छात्रों को लगता है कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित होने के कारण उनकी दाढ़ी काटने या कटवाने के लिए उनके साथ अन्याय हो रहा है, तो एनसीएम उनकी सहायता के लिए है.’’ सैयद ने बुधवार को बागपत जिले में पत्रकारों से बात करते हुए यह बयान दिया, जहां उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन पर स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ एक बैठक में भाग लिया.
गौरतलब है कि 6 फरवरी को, देवबंद स्थित दारुल उलूम ने चार छात्रों को कथित तौर पर ‘‘दाढ़ी काटने और कटवाने’ के लिए दो सप्ताह के लिए निष्कासित कर दिया था. सोमवार को, मदरसा ने अपने रिसेप्शन पर एक नोटिस भी लगाया था, जिसमें कहा गया था कि अगर छात्रों को ‘अपनी दाढ़ी के साथ प्रयोग करते हुए पाया गया’, तो उन्हें निष्कासित कर दिया जाएगा और बिना दाढ़ी वाले फ्रेशर्स को प्रवेश के लिए विचार नहीं किया जाएगा.
दारुल उलूम के शिक्षा विभाग के प्रमुख मौलाना हुसैन अहमद ने कहा था, ‘‘इस्लाम में, पुरुषों को एक मुठ्ठी की लंबाई तक दाढ़ी रखनी होती है...इसे एक मुठ्ठी के नीचे काटना गैरकानूनी है और दाढ़ी बनाना हराम (निषिद्ध) और एक बड़ा पाप है.’’ अहमद की ओर से नोटिस जारी किया गया था. हालांकि चारों छात्रों ने दारुल उलूम के शासी निकाय को एक लिखित माफी मांगी थी और वादा किया था कि ‘भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं होगा’, लेकिनमदरसा ने उनकी माफी को खारिज कर दिया.
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