श्रीनगर. श्रीनगर के शहर खास इलाके के निवासी सैयदना इस्माइल हुसैन बांदे ने आज भी कबूतर उड़ाने का शौक अपनाया हुआ है. चार दशक बाद, अब जब वह स्नातक हो गए हैं और एक इंजीनियर बन गए हैं, तब भी इस पारंपरिक शौक के प्रति उलका प्यार अभी भी जीवित है. आज वह कबूतरों के पेशेवर प्रशंसक बन गए हैं और उनके पास 4400 से अधिक कबूतर हैं. बांदे कहते हैं, ‘‘इस पक्षी के सोहबत ने मुझे धैर्य और अनुशासन सिखाया और ये अब मेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं.’’
कबूतरों को रखने की सदियों पुरानी परंपरा श्रीनगर के पुराने इलाकों में अब भी है, जहां छतों पर, मस्जिदों और दरगाहों के प्रांगणों में और बाजारों के आसपास कबूतरों के झुंड एक आम दृश्य हैं. उनमें से कई पालतू पक्षी हैं, जिन्हें हजारों कबूतर प्रेमियों ने पाला है. प्रत्येक शुक्रवार और रविवार को खुले बाजार में घरेलू और जंगली कबूतरों की विभिन्न नस्लों को बेचा जाता है, जिसे स्थानीय रूप से कबूतर बाजार के रूप में जाना जाता है.
कबूतर संचालक अपने पक्षियों को अन्य कबूतरों के साथ घुलने-मिलने के लिए हवा में छोड़ देते हैं. उनकी वापसी अक्सर आवारा कबूतरों के साथ होती है. पश्चिमी देशों के विपरीत जहां रेसिंग कबूतरों की प्रधानता होती है. संचालकों का कहना है कि दक्षिण एशिया में ऊंची उड़ान वाले कबूतरों को प्राथमिकता दी जाती है.
बांदे की तरह, टैक्सी सेवा प्रदाता 33 वर्षीय इमरान अहमद बट ने कहा कि उन्हें कबूतर पालने का शौक है. कई युवा शौक और अंशकालिक व्यवसाय के रूप में कबूतरों को पालने और बेचने लगे. लेकिन कबूतर पालना कोई आसान काम नहीं है. मालिक कठोर सर्दियों का सामना करते हैं. वे बाड़े की सफाई करते हैं, छतों पर पक्षियों को दाना डालते हैं और साल भर कबूतरों की देखभाल करते हैं, उन्हें टीके और पोषक तत्व देते हैं.
बांदे ने बताया कि कबूतरों की कुछ किस्में काफी महंगी होती हैं. उनके पास दो ‘टेडी’ कबूतर हैं, जिसकी एक जोड़ी की कीमत 2,700 अमेरिकी डॉलर है. उन्होंने कहा, ‘‘एक आम आदमी के लिए, वे लगभग समान हैं. लेकिन कबूतरों की कुछ नस्लें बहुत संवेदनशील होती हैं और उन्हें सावधानीपूर्वक देखभाल की आवश्यकता होती है.’’