मुंबई. विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर ने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों के बारे में बात की और कहा कि पाकिस्तान के साथ संबंध अपवाद बने हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देता है. उन्होंने श्रीलंका के प्रति भारत की मदद और म्यांमार और अफगानिस्तान के साथ देश के संबंधों पर भी प्रकाश डाला. विदेश मंत्री जयशंकर ने शनिवार को 19वें नानी ए पालखीवाला मेमोरियल लेक्चर के दौरान यह टिप्पणी की.
भारत के पड़ोस में चुनौतियों के बारे में बोलते हुए, जयशंकर ने कहा, ‘‘विभाजन के बाद भारत की चुनौती पड़ोस का पुनर्निर्माण करना रही है. यह अब उदार और गैर-पारस्परिक दृष्टिकोण, ऊर्जा, रेल और सड़क संपर्क को वित्तपोषित और समर्थन, व्यापार और निवेश का विस्तार और आदान-प्रदान और संपर्कों को तीव्र करने के माध्यम से ऐसा कर रहा है.’’
हाल के इतिहास के उदाहरणों का हवाला देते हुए, जयशंकर ने कहा, ‘‘संकट के समय में, चाहे वह महामारी हो या आर्थिक मंदी, भारत ने वास्तव में अपने छोटे पड़ोसियों के लिए एक बीमा के रूप में काम किया है. श्रीलंका ने 2023 में यह पाया जब भारत ने 4 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का पैकेज तैयार किया, जबकि बाकी दुनिया ने ऐसा नहीं किया. यह भी एक वास्तविकता है कि राजनीतिक घटनाक्रम जटिल परिस्थितियों को जन्म दे सकते हैं, जैसा कि हम वर्तमान में बांग्लादेश में देख रहे हैं. निकट सहयोग और संपर्कों का उद्देश्य वास्तव में दिन के अंत में ऐसी आकस्मिकताओं को संबोधित करना है. यह हितों की पारस्परिकता है जिस पर भरोसा किया जाना चाहिए.’’
पाकिस्तान के बारे में बोलते हुए, जयशंकर ने टिप्पणी की, ‘‘सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन के मद्देनजर पाकिस्तान हमारे पड़ोस में अपवाद बना हुआ है और यह कैंसर अब उसकी अपनी राजनीतिक संरचना को खा रहा है.’’
भारत के अन्य दो पड़ोसियों, म्यांमार और अफगानिस्तान के बारे में बोलते हुए, जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत में हमारे दोनों समाजों के साथ लंबे समय से लोगों के बीच संबंध हैं और हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग अधिक निकट हैं उनके हित दूर के अन्य लोगों से काफी अलग हैं.’’
इससे पहले, विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश नीति के दायरे में शामिल क्षेत्रों के व्यापक विस्तार के बारे में बात की और पिछले दशक में कूटनीति के प्रति भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित किया. ‘बाजार साधनों और वित्तीय संस्थानों के शस्त्रीकरण’ के कारण दुनिया के सामने आने वाली चुनौती पर प्रकाश डालते हुए, जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत के लिए चुनौती ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियों में अपना उत्थान करना है. ऐसा करने के लिए उसे अपने आंतरिक विकास और आधुनिकीकरण दोनों को तेज करना होगा और साथ ही अपने बाहरी जोखिम को कम करना होगा. घरेलू स्तर पर यह राजनीतिक स्थिरता, व्यापक-आधारित और समावेशी विकास और निरंतर सुधारों के माध्यम से सबसे अच्छा किया जा सकता है. इसका मतलब है विनिर्माण, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा पर अधिक ध्यान देना और साथ ही गहरी ताकत का निर्माण करना जो हमें अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा.’’
उन्होंने रणनीतिक स्वायत्तता का आह्वान किया और कहा कि भारत को महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास में पीछे नहीं रहना चाहिए. विदेश मंत्री ने टिप्पणी की, ‘‘भारत भले ही गैर-पश्चिम हो, लेकिन इसके रणनीतिक हित यह सुनिश्चित करते हैं कि यह पश्चिम विरोधी न हों.’’