पीओके की असफल नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना में अरबों डॉलर बरबाद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-03-2025
Billions of dollars wasted in PoK's failed Neelum-Jhelum hydropower project
Billions of dollars wasted in PoK's failed Neelum-Jhelum hydropower project

 

मुजफ्फराबाद. पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) में, नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना, जिसे कभी ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में प्रचारित किया गया था, एक महंगी विफलता में बदल गई है.

राष्ट्रीय खजाने से अरबों डॉलर के निवेश के बावजूद, परियोजना अपने अपेक्षित ऊर्जा उत्पादन को पूरा करने में विफल रही है, जिससे स्थानीय समुदायों को वादा किए गए लाभों से वंचित रहना पड़ा है.

स्थानीय निवासी फैसल जमील ने बर्बाद हो रहे संसाधनों पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘पांच से छह अरब डॉलर खर्च किए जा चुके हैं और अगर हम मुद्रास्फीति पर विचार करें तो यह राशि काफी बढ़ जाएगी. फिर भी, बिजली पैदा नहीं हो रही है. इससे पूरे देश को नुकसान हो रहा है. क्या जांच की गई है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसा लगता है कि किसी को पता नहीं है. यह इतनी बड़ी परियोजना है कि पूरे देश को इसके बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि आखिरकार 1000 मेगावाट बिजली कहां जा रही है?’’

नीलम-झेलम परियोजना, जिसे ऊर्जा संकट को कम करने की उम्मीद के साथ शुरू किया गया था, ने इसके डिजाइन और कार्यान्वयन के बारे में सवाल उठाए हैं. विशेषज्ञों का तर्क है कि परियोजना के पैमाने और निष्पादन की योजना खराब तरीके से बनाई गई थी, जिससे यह अपेक्षित 1,000 मेगावाट बिजली पैदा करने में असमर्थ हो गई.

फैसल जमील ने कहा, ‘‘अधिकारियों को इस पूरे क्षेत्र में 1, 2 या 3 मेगावाट की छोटी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था. विदेश से निजी निवेशकों को लाया जा सकता था, और काम अधिक कुशलता से किया जा सकता था. नीलम, झेलम और पूरे क्षेत्र के आस-पास के इलाकों में नदियाँ और धाराएँ हैं, जिनका उपयोग छोटी परियोजनाओं के लिए किया जा सकता था. दुर्भाग्य से, इस दृष्टिकोण को अनदेखा कर दिया गया. स्थानीय स्तर पर, केवल 80 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है, और वह भी सर्दियों के मौसम में काम नहीं करती है.’’

नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना, जो नीलम नदी की क्षमता का दोहन करने के लिए एक आशाजनक पहल के रूप में शुरू हुई थी, अब कुप्रबंधन और संसाधनों की बर्बादी का प्रतीक बन गई है. निर्माण में वर्षों की देरी, मरम्मत और पुनर्रचना प्रयासों के बावजूद, परियोजना अभी भी अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रही है. स्थानीय लोग निराश हैं, सवाल करते हैं कि इतनी बड़ी योजना के परिणामस्वरूप केवल मामूली बिजली उत्पादन क्यों हुआ है.

परियोजना का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसकी प्रारंभिक समाप्ति तिथि 2016 निर्धारित की गई थी. हालांकि, भूवैज्ञानिक चुनौतियों, डिजाइन दोषों और लागत में वृद्धि के कारण लगातार देरी ने परियोजना की समयसीमा को काफी बढ़ा दिया. 2018 में जब यह आधिकारिक रूप से पूरा हुआ, तब तक परियोजना को परिचालन संबंधी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. आगे की मरम्मत की आवश्यकता थी, जिससे अपेक्षित बिजली उत्पादन और भी दूर हो गया. नीलम-झेलम परियोजना, अपने शुरुआती वादे के बावजूद, एक चेतावनी कहानी बन गई है कि कैसे अपर्याप्त योजना, खराब निष्पादन और जवाबदेही की कमी एक संपत्ति को बोझ में बदल सकती है.