विश्व परिवार दिवसः रहमानी खानदान का योगदान नहीं भूलेगा हिंदुस्तान

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 15-05-2022
बिहारः अतुल्य है रहमानी खानदान का योगदान
बिहारः अतुल्य है रहमानी खानदान का योगदान

 

सेराज अनवर/ पटना

बिहार में परिवार तो बहुत हैं लेकिन, रहमानी परिवार बेमिसाल है. रहमानी मतलब मुंगेर का खानकाह रहमानी. बिहार के समाज निर्माण में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. सांस्कृतिक,धार्मिक,शैक्षणिक और राजनीतिक मूल्यों को आगे बढ़ाने में यह परिवार अव्वल है.

इस परिवार के सदस्यों ने मुंगेर खानकाह की स्थापना से लेकर इमारत ए शरिया, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बुलंदी में महती भूमिका निभाई है. तीन पीढ़ियों के बाद भी सामाजिक, धार्मिक संरचना को दिशा देने का सिलसिला जारी है.

अहमद अली मुंगेरी, मौलाना मिनतुल्लाह रहमानी, मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के गुज़र जाने के बावजूद मौजूदा पीढ़ी का रुतबा पहले ही जैसा है. इस परिवार के महत्वपूर्ण कड़ी अहमद फैसल रहमानी तीन राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा के मुसलमानों के प्रतिनिधि संगठन इमारत ए शरिया के अमीर ए शरीयत हैं तो छोटे भाई फ़हद रहमानी मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा के अग्रदूत बने हुए हैं.

वह एक बड़े शैक्षणिक संस्था रहमानी फ़ाउंडेशन के सर्वेसर्वा हैं और आनंद कुमार की सुपर-30 की तरह रहमानी-30 को परवान दे रहे हैं.

उनका दावा है कि रहमानी-30 की सफलता रेट सुपर-30 से बेहतर है. रहमानी-30 देश भर में मुस्लिम लड़के-लड़कियों को आइआइटी के साथ विभिन्न कोर्स की तैयारी कराता है. मुंगेर खानकाह से सामाजिक बदलाव की जो समां बंधी वह अभी भी क़ायम है.

रहमानी परिवार का दख़ल सत्ता में भी रहता है. कहते हैं कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक इस परिवार का दबदबा रहा है. परिवार कांग्रेसी रहा है. बावजूद इसके, इस परिवार ने नसबंदी का कड़ा विरोध किया था. यही वजह है कि खानकाह रहमानी में सब मत्था टेकने आते हैं.

मुहम्मद अली मुंगेरी

फिरंगियों का ज़माना था. देश में धार्मिक अस्मिता की सुरक्षा की चिंता सता रही थी. बिहार जंग ए आज़ादी का मरकज़ बना हुआ था. उलेमा कुरबानियां पेश कर रहे थे. उसी वक्त क़ौम में धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व के संचार के लिए 1901 में,मुहम्मद अली ने मुंगेर में खानकाह रहमानिया की स्थापना की.

मोहम्मद अली मुंगेरी,मौलाना मिनतुल्लाह रहमानी के पिता और मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के दादा थे. वह एक इस्लामिक  स्कॉलर थे,लखनऊ स्थित दारुल उलूम नदवतुल उलमा के संस्थापक भी थे.

भारत में देवबंद विचारधारा की सबसे बड़ी इस्लामिक संस्थान दारुल उलूम के वह पहले प्रबंधक भी थे. बताते हैं कि 1892 में मदरसा फैज़-ए-आम की वार्षिक सभा के दौरान मुस्लिम  उलेमा के एक समूह ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि उलेमा की एक स्थायी संस्था होनी चाहिए.

अहमद अली मुंगेरी ने ही संस्था का नाम नदवतुल उलमा सुझाया. हबीबुर रहमान खान शेरवानी के अनुसार,मुहम्मद अली पहले व्यक्ति थे जिन्होंने नदवा की संस्था की स्थापना के बारे में सोचा था.

मुहम्मद अली मुंगेरी का जन्म 28 जुला,ई 1846 को कानपुर में हुआ था. उन्होंने 1903 में नदवतुल उलमा से इस्तीफा दे दिया और मुंगेर चले आये. मुहम्मद अली मुंगेरी उन प्रमुख मुस्लिम विद्वानों में से थे जिन्होंने अहमदियों के साथ बहस की.

उन्होंने उनके खिलाफ सौ से अधिक पुस्तकें और लेख लिखे. 13 सितंबर 1927 को मुहम्मद अली का निधन हो गया. रहमानी परिवार की पहली पीढ़ी के अव्वल शख़्सियत अहमद अली मुंगेरी ने भारत में मुसलमानों की अपनी धार्मिक पहचान के बतौर नदवतुल उलेमा और खानकाह रहमानी का जो पौधारोपण किया,वह आज एक तनावर दरख़्त के रूप में मुस्लिम समाज को छांव देने का काम कर रहा है.

मिन्नतुल्लाह रहमानी

मौलाना मिनतुल्लाह रहमानी,अहमद अली के बेटे हैं जिन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पहले महासचिव के रूप में काम किया. वह धार्मिक के साथ सियासी भी थे.

मिन्नतुल्लाह रहमानी का जन्म 7 अप्रैल 1913 को मुंगेर में हुआ था. वह बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे. उन्होंने जमीयत उलमा बिहार के महासचिव के रूप में भी काम किया. मिनतुल्लाह रहमानी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मुंगेर में प्राप्त की और हैदराबाद चले गए. जहां उन्होंने मुफ्ती अब्द अल-लतीफ के साथ अरबी व्याकरण,वाक्य रचना और तर्क का अध्ययन किया.

उन्होंने दारुल उलूम नदवतुल उलमा में दाखिला लिया और वहां चार साल तक अध्ययन किया. उन्होंने हुसैन अहमद मदनी के साथ सही बुखारी का अध्ययन किया. 1935 में उन्हें जमीयत उलमा बिहार का महासचिव नियुक्त किया गया.

इमारत ए शरिया के संस्थापकों में से एक अबुल मुहसिन मुहम्मद सज्जाद ने 1935 में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी की स्थापना की. मिनतुल्लाह रहमानी इस पार्टी के अहम सदस्य थे.

1937 में जब चुनाव हुआ तो मिनतुल्लाह रहमानी इंडिपेंडेंट पार्टी से जीत कर बिहार विधानसभा पहुंचे. उन्हें खानकाह रहमानी मुंगेर का सज्जादानशीं बनाया गया. उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 28 दिसंबर 1972 को इसकी स्थापना बैठक में इसके पहले महासचिव नियुक्त किए गए.

आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ज़बरन नसबंदी देश में लागू की तो मौलाना मिनतुल्लाह रहमानी पहले व्यक्ति थे,जिन्होंने इस क़ानून की शरीयत मुख़ालिफ़ बता कर कड़ा विरोध किया था. बाद में सरकार को नसबंदी क़ानून वापस लेनी पड़ी थी.

20 मार्च 1991 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद परिवार और क़ौम की ज़िम्मेवारी उनके बेटे मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने बख़ूबी सम्भाल ली.

मौलाना मोहम्मद वली रहमानी

मौलाना मोहम्मद वली रहमानी इस्लामी विद्वान और शिक्षाविद थे, जिन्होंने इस्लामी शिक्षा के प्रसार-प्रचार के साथ मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा में भी मज़बूती के साथ खड़ा होने के लिए रहमानी-30 की स्थापना की.

वह 1974 से 1996 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे. उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव और मुंगेर में खानकाह रहमानी के सज्जादा नशीन के रूप में कार्य किया. वह पहले मौलाना थे जिनकी धार्मिक के साथ सियासी समझ भी गहरी थी.

मौलाना मोहम्मद वली रहमानी का जन्म इस्लामिक विद्वान मिनातुल्लाह रहमानी के घर हुआ था जो ख़ुद भी धार्मिक-सियासी सामंजस्य के व्यक्तित्व थे. वली रहमानी को उनके पिता की मृत्यु के बाद 1991 में मुंगेर के खानकाह रहमानी का सज्जादानशीं नियुक्त किया गया था.

पटना के गांधी मैदान में उन्होंने 15 अप्रैल 2018 को 'दीन बचाओ- देश बचाओ' रैली की थी. वली रहमानी की एक आवाज़ पर इस रैली में बिहार और देश के कोने-कोने से चिलचिलाती धूप में लाखों मुसलमान जुटे थे.

अपने एजेंडे पर मुसलमानों की इतनी बड़ी रैली कभी नहीं हुई थी. यह वली रहमानी के नेतृत्व का कमाल था. कहते हैं कि जेपी के बाद गांधी मैदान में यह दूसरी रैली थी जो सिर्फ़ मुसलमानों की थी.

वली रहमानी हिंदू-मुस्लिम एकता पर काम कर रहे थे. कोरोना में 3 अप्रैल 2021 को उनका निधन हो गया. तीन पीढ़ियों के योगदान के बाद अब उनके बेटे अहमद फैसल रहमानी और फ़हद रहमानी उस मुहिम को आयाम देने में लगे हैं.

अहमद फैसल रहमानी

रहमानी परिवार के शायद यह इकलौते वारिस हैं जिन्होंने यूएस में जाकर पढ़ाई की. इमारत ए शरीया के आठवें अमीर ए शरीयत अहमद फैसल रहमानी कैलिफोर्निया विवि से आईटी की पढ़ाई के बाद कई बड़ी कंपनियों में काम कर चुके हैं.

इमारत ए शरिया की तारीख़ में अहमद फैसल रहमानी पहले अमीर ए शरीयत हैं जो बजाब्ता वोटिंग के ज़रिया चुने गए. वह इस वक़्त खानकाह रहमानी मुंगेर के सज्जादानशीं भी हैं. इन्हें अरबी,अंग्रेजी के साथ दीनी और दुनियावी तालीम दोनों में योग्यता है. फैसल रहमानी अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से आईटी करने के साथ इसी यूनिवर्सिटी में लेक्चरर भी बने.

ऑपरेशन मैनेजमेंट के ओहदे पर रहते हुए दर्जनों आर्गेनाइजेशन में अहम भूमिका भी निभा चुके हैं. अहमद वली फैसल रहमानी एक प्रतिष्ठित अमेरिकी संस्थान के डायरेक्टर ऑफ स्ट्रेटजिक प्रोजेक्ट भी रह चुके हैं.

इसके अलावा उन्होंने ओरेकल, एडोबी, पैसिफिक गैस एंड इलेक्ट्रिक, ब्रिटिश पेट्रोलियम और डिजनी जैसी कंपनियों में विभिन्न जिम्मेदारियां निभाई हैं. इन्होंने इस्लामिक और अरबी की गहरी पकड़ मिस्र के कई इदारों से हासिल की है.

फैसल लम्बे वक्त तक अमेरिका की सरजमीं पर खिदमत करने के बाद, मुंगेर अपने पिता की विरासत और रियासत के उत्तराधिकारी तय हुए हैं. फैसल रहमानी की पहले खानकाह रहमानी के पांचवें सज्जादानशीं के तौर पर ताजपोशी हुई और फिर अमीर ए शरीयत चुने गये.

उनके नेतृत्व में इमारत ए शरिया में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है. इनके छोटे भाई फ़हद रहमानी भी परिवार का नाम रौशन करने में पीछे नहीं हैं.

फ़हद रहमानी

रहमानी परिवार का सबसे अहम मिशन यदि कहा जाये तो रहमानी मिशन है. जो संगठित शिक्षा,स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के माध्यम से मानवता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक,अल्पकालिक और अस्थायी प्रयास के रूप स्थापित किया गया.

रहमानी मिशन लोगों की शिक्षा को अपने प्राथमिक लक्ष्यों में से एक के रूप में लेता है. एक ओर जहां यह आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा को अनिवार्य करता है, जिसकी अभिव्यक्ति रहमानी 30 है, दूसरी ओर जामिया रहमानी है जो मानव जाति के लिए जीवन के प्रकट तरीके की समझ को आगे बढ़ाने का प्रयास करती है.

समाज के लिए शैक्षणिक और बौद्धिक आधार विकसित करने के लिए इस दीर्घकालिक चार्टर के अलावा, यह युवाओं के बीच कौशल विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहा है.

रहमानी मिशन एक ऐसा वातावरण बनाना चाहता है जो सामाजिक रूप से न्यायसंगत हो ताकि सभी समुदाय शांति और सद्भाव से रह सकें. रहमानी मिशनों में से एक मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और रखरखाव है.

 इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए रहमानी फाउंडेशन विभिन्न स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाती है जैसे कि नशा और धूम्रपान के खिलाफ अभियान,सामान्य सर्दी, फ्लू और वायरल संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिए जागरूकता. फाउंडेशन पोलियो और अन्य टीकाकरण अभियान भी चलाता है.

रहमानी फाउंडेशन का एक मुख्य मिशन विभिन्न धर्मों के बीच सांस्कृतिक विभाजन को पाटना है. ऐसा करने के लिए नियमित संवाद, सम्मेलन, सेमिनार, मुशायरे सहित विभिन्न सांस्कृतिक जागरूकता अभियान नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं.

फ़ाउंडेशन के तहत ही रहमानी-30 है.जिसका सीईओ फ़हद रहमानी हैं.वली रहमानी ने अपनी ज़िंदगी में ही फ़हद रहमानी की रहमानी-30 की ज़िम्मेवारी सौंप दी थी. 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी अभयानंद रहमानी-30 से जुड़े हैं.

रहमानी-30 ने सैंकड़ों आइआइटीएन पैदा किया है. रहमानी-30 गरीब मुस्लिम छात्रों के लिए उम्मीद की रौशनी है और यह रौशनी रहमानी परिवार के दम से है. फ़हद रहमानी ख़ुद एक इंजीनियर हैं. शिक्षा के मामले में इनका विज़न स्पष्ट है.

चुनौती रहमानी मिशन को बुलंदी पर ले जाने की है. सुपर-30 को रहमानी 30 ने ही चुनौती दे रखा है. दावा है कि सुपर 30 शोर अधिक है मगर सफलता रेट रहमानी-30 का बेहतर है. इसी लिए रहमानी परिवार बिहार में अव्वल मक़ाम पर है.