उत्तराखंड में विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार के नियमों में बड़ा बदलाव, यूसीसी लागू,विपक्ष का विरोध

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-01-2025
Big change in the rules of marriage, divorce and succession in Uttarakhand, UCC implemented, opposition opposes
Big change in the rules of marriage, divorce and succession in Uttarakhand, UCC implemented, opposition opposes

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

उत्तराखंड, 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया.इस कानून के लागू होने के साथ ही राज्य में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, लिव-इन रिलेशनशिप और अन्य सामाजिक मुद्दों के लिए एक समान कानूनी ढांचा स्थापित किया जाएगा.यह कदम सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों को एक समान करने और सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है.

 

 

यूसीसी क्या है?

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) वह कानूनों का समूह है जिसका उद्देश्य विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच व्यक्तिगत कानूनों को मानकीकृत करना है.इसका मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों को समान अधिकार देना है, चाहे उनका धर्म या पृष्ठभूमि कुछ भी हो.यूसीसी के तहत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे मामलों को नियंत्रित और विनियमित किया जाएगा.इसके साथ ही, यह कानून विशेष रूप से महिलाओं और पुरुषों के समान अधिकार सुनिश्चित करेगा.

उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने का ऐतिहासिक निर्णय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिया गया है.उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान यूसीसी को लागू करने का वचन दिया था.उनके सत्ता में आने के बाद, एक समिति का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने की.इस समिति ने 2.3 लाख नागरिकों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर इस कानून का मसौदा तैयार किया, जिसे बाद में राज्य विधानसभा में पारित किया गया.

यूसीसी के प्रमुख पहलू

  1. विवाह और तलाक:
    • यूसीसी के तहत विवाह की कानूनी उम्र पुरुषों के लिए 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है.
    • यह सभी धर्मों में तलाक के आधार और प्रक्रिया को समान बनाता है.इसका मतलब है कि अब तलाक के लिए समान कारणों और नियमों का पालन किया जाएगा, जो पहले धर्म के आधार पर अलग-अलग थे.
    • यूसीसी बहुविवाह और 'हलाला' (एक विवादास्पद इस्लामी प्रथा जिसमें तलाकशुदा महिला को पुनः अपने पहले पति से शादी करने के लिए दूसरे पुरुष से विवाह करना पड़ता है) को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है.
  2. लिव-इन रिलेशनशिप:
    • यूसीसी के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य होगा.इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे रिश्तों में रहने वाले व्यक्तियों को भी कानूनी सुरक्षा प्राप्त हो.
  3. वसीयत और उत्तराधिकार:
    • यूसीसी उत्तराधिकार और वसीयत बनाने के लिए एक सरलीकृत ढांचा पेश करता है.इससे नागरिकों को वसीयत बनाने, उसे रद्द करने और संशोधित करने में आसानी होगी.साथ ही, वसीयत के तहत पूरक दस्तावेज़ भी बनाए जा सकेंगे, जिन्हें कोडिसिल कहा जाता है.
  4. विवाह का पंजीकरण:
    • सभी विवाहों को 60 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से पंजीकृत करना होगा.हालांकि, 26 मार्च 2010 से पहले या उत्तराखंड के बाहर संपन्न विवाहों को प्रभावी होने के 180 दिनों के भीतर पंजीकृत किया जा सकता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है.
  5. विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत:
    • यूसीसी में सैनिकों, अभियान या युद्ध में भाग लेने वाले वायु सेना के कर्मियों और नाविकों के लिए विशेष वसीयत बनाने का प्रावधान है, जिसमें नियमों को लचीला रखा गया है.

ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग

उत्तराखंड सरकार ने एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया है, जिसे 27 जनवरी 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा दोपहर 12:30 बजे राज्य सचिवालय से लॉन्च किया गया.इस पोर्टल के माध्यम से राज्य के नागरिक विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, लिव-इन रिलेशनशिप और इनकी समाप्ति को आसानी से पंजीकृत कर सकेंगे.यह प्रक्रिया पूरी तरह से डिजिटल होगी, और नागरिक घर बैठे अपने मोबाइल फोन से आवेदन की स्थिति को ट्रैक कर सकेंगे.

उत्तराखंड में यूसीसी का प्रभाव

यूसीसी का यह अधिनियम पूरे उत्तराखंड राज्य पर लागू होगा, और उत्तराखंड के बाहर रहने वाले राज्य के निवासियों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.हालांकि, अनुसूचित जनजातियों और संरक्षित प्राधिकरण-सशक्त व्यक्तियों और समुदायों को इस कानून से छूट दी गई है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी के लागू होने को राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया और कहा कि यह कदम राज्य को एक विकसित, संगठित, और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'यज्ञ' का हिस्सा है.

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना देश के लिए एक ऐतिहासिक कदम है.यह कानून न केवल विभिन्न धर्मों के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करेगा, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण पहल है.हालांकि, इसे लेकर कुछ विरोध और चिंता भी जताई जा रही है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यूसीसी के लागू होने से राज्य में एक समान और समग्र कानूनी ढांचा स्थापित होगा, जो सभी नागरिकों के लिए समान अवसर और सुरक्षा सुनिश्चित करेगा.

उत्तराखंड में यूसीसी,विपक्ष का विरोध

उत्तराखंड में आज से लागू होने वाली समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर विपक्षी दलों ने अपनी कड़ी आलोचना की है.उनका कहना है कि इस कानून में वास्तविक "एकरूपता" का अभाव है.कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (एसपी) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस कदम पर सवाल उठाए हैं और इसे एक विभाजनकारी कदम बताया है.

कांग्रेस ने इसे महज "पायलट प्रोजेक्ट" करार दिया.कहा कि उत्तराखंड में इसका क्रियान्वयन सिर्फ खबरों को जीवित रखने का एक प्रयास है.कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, "यह कोई स्थायी समाधान नहीं है, बस एक पायलट प्रोजेक्ट है." वहीं पार्टी नेता गुलाम अहमद मीर ने कहा कि "यह सिर्फ एक छोटे राज्य में लागू किया जा रहा है, जहां मुस्लिम बहुलता नहीं है, इसलिए कोई विरोध नहीं होगा."

वहीं, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह कानून राज्य को भेदभाव से मुक्त करेगा.यह राज्य को एक समान नागरिक अधिकारों की दिशा में ले जाएगा.उन्होंने यह भी बताया कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत लिया गया है.

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने यूसीसी का स्वागत भी किया, लेकिन साथ ही बेरोजगारी जैसे अन्य मुद्दों की ओर ध्यान दिलाया.उत्तराखंड कांग्रेस के नेता गणेश गोदियाल ने कहा, "यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन इससे पहले कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे बेरोजगारी."

 

दूसरी ओर, एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान ने यूसीसी की आलोचना करते हुए कहा, "यह सही मायने में एकरूपता नहीं है.हिंदू विवाह और उत्तराधिकार अधिनियम को स्वीकार करते हुए आदिवासियों पर यह लागू नहीं हो रहा, तो यह यूसीसी कैसे हो सकता है?"

समाजवादी पार्टी (एसपी) के नेता मोहिबुल्लाह नदवी ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि इसे संविधान के खिलाफ माना जाना चाहिए.उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है.