नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने बकरीद से पहले गायों और अन्य जानवरों की अवैध हत्या के खिलाफ जारी आप सरकार की सलाह का सख्ती से पालन करने की मांग वाली याचिका पर तत्काल आदेश देने से बुधवार को इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति सी हरि शंकर और न्यायमूर्ति मनोज जैन की अवकाश पीठ ने अजय गौतम के तत्काल आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा, “अब हम जून में छुट्टियों के आखिरी सप्ताह में हैं. हम इसका मनोरंजन नहीं करने जा रहे हैं. यह तय करना हमारा विवेक है कि यह अत्यावश्यक है या नहीं.”
गौतम ने वर्तमान आवेदन दायर किया है, जो अब 3 जुलाई के लिए नियमित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है. इसमें गोहत्या के खिलाफ अपनी पहले से लंबित याचिका में दिल्ली सरकार के सचिव-सह-आयुक्त (विकास) की सलाह का सख्ती से पालन करने की मांग की है.
ये भी पढ़ें : Eid al-Adha and sacrifice के फलसफा पर जरा गौर तो करें!
एडवाइजरी में कहा गया था कि ऐसी आशंका है कि बकरीद की पूर्व संध्या पर शहर के विभिन्न हिस्सों में बिना लाइसेंस वाले पशु बाजार और अवैध वध हो सकता है. इसलिए यह अनुरोध किया जाता है कि अधिकारी कल्याण से संबंधित कानूनों को लागू करने के लिए उचित एहतियाती कदम उठा सकते हैं. त्योहार के दौरान जानवरों की अवैध हत्या पर रोक लगाने के लिए.
कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहते हुए, सरकार की सलाह में पशु क्रूरता निवारण (वधगृह) नियम, 2001 के नियम 3 का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति बूचड़खाने को छोड़कर नगर निगम क्षेत्र के भीतर किसी भी जानवर का वध नहीं करेगा. संबंधित प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त या लाइसेंस प्राप्त.
इसमें खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम, 2011 के नियम 2.5.1 (ए) का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रावधान है कि भोजन के उद्देश्य से ऊंटों का वध नहीं किया जा सकता है. इसमें यह भी कहा गया कि दिल्ली कृषि पशु संरक्षण अधिनियम, 1994 सख्ती से प्रतिबंधित करता है
ये भी पढ़ें : कुर्बानी, लेकिन समझदारी से !
दिल्ली के डिप्टी मेयर आले मोहम्मद ने आपत्ति जताई है. इकबाल के ट्वीट, जिसमें कहा गया था कि घरों में गायों या जानवरों की बलि के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, गौतम ने अदालत से अधिकारियों को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की.
यह दावा करते हुए कि उत्सव के दौरान लगभग 5 लाख गायों की बलि दी जा सकती है, गौतम ने अपने आवेदन की तात्कालिकता पर प्रकाश डाला था. हालाँकि, अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें रोस्टर बेंच के समक्ष नियमित सुनवाई के लिए अदालत के दोबारा खुलने का दो दिन और इंतजार नहीं किया जा सकता.
अदालत ने कहा, ‘‘इन परिस्थितियों में, हमारी राय में, यह उचित होगा कि मामले की सुनवाई छुट्टी के आखिरी सप्ताह के बजाय 3 जुलाई को रोस्टर बेंच द्वारा की जाए.’’
ये भी पढ़ें : इस्लाम में क़ुर्बानी को लेकर बाल और नाख़ून के बारे में क्या है हुक्म
गौतम ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली नियमित पीठ ने उन्हें किसी भी तात्कालिकता के मद्देनजर अवकाश पीठ से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी थी. न्यायमूर्ति शंकर ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘मौखिक टिप्पणियों का कोई मतलब नहीं है. क्या यह आदेश में परिलक्षित होता है? यह नहीं है. हम छुट्टियों में इसका मनोरंजन नहीं कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि हम आपके अनुरोध को समझ नहीं पाये. मामला खंडपीठ के समक्ष लंबित है. इसे नियमित बेंच में जाने दें. हम इसे पहले कार्य दिवस पर सूचीबद्ध कर रहे हैं. हम इससे बेहतर कुछ नहीं कर सकते.’’
गौतम ने फिर भी इस बात पर जोर दिया कि मामले को विस्तार से सुना जाए और यजुर्वेद के एक मंत्र का हवाला दिया, न्यायमूर्ति शंकर ने कहा, “अपने स्वागत में अति न करें. आप नये नहीं हैं. हम आपको पिछले पांच साल से देख रहे हैं. आप न्यायालय की मर्यादा और अनुशासन को जानते हैं. आपने हमें समझाने की पूरी कोशिश की.”