असम सरकार मुस्लिम विवाह क़ानून करेगी रद्द, AIUDF के रफीकुल इस्लाम बोले इसकी क्या जरूरत, लोगों को परेशान मत करो

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 19-07-2024
Rafiqul Islam
Rafiqul Islam

 

गुवाहाटी. असम सरकार द्वारा मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त करने के फैसले पर सवाल उठाते हुए एआईयूडीएफ के महासचिव रफीकुल इस्लाम ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर निशाना साधा. सरमा ने कहा था कि इस निर्णय से विवाह और तलाक पंजीकरण में समानता सुनिश्चित होगी. इस पर इस्लाम ने बताया, "यह अधिनियम 1935 से लागू है... इसका असम के संविधान से कोई टकराव नहीं था और इससे कोई समस्या नहीं थी. इसे अचानक निरस्त करने की क्या जरूरत थी?" उन्होंने कहा कि सरकार का यह निर्णय लोगों के लिए परेशानी पैदा करने के उद्देश्य से लिया गया है.

इस्लाम ने जोड़ा, "भारतीय संविधान मुसलमानों को विवाह और तलाक के मामलों में व्यक्तिगत कानूनों के तहत देखने की अनुमति देता है... वह अस्पष्ट कारण दे रहे हैं कि इस अधिनियम में बाल विवाह के प्रावधान थे, जिसके कारण सरकार इसे निरस्त कर रही है... अब वे चाहते हैं कि मुसलमान अपने विवाह और तलाक को सरकार के साथ पंजीकृत करें. वे सिर्फ लोगों को परेशान करना चाहते हैं...." 

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने गुरुवार को बाल विवाह को रोकने और विवाह और तलाक पंजीकरण में समानता सुनिश्चित करने के लिए असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त करने का निर्णय लिया.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर मुख्यमंत्री ने लिखा, "हमने अपनी बेटियों और बहनों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए बाल विवाह के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करने का एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. आज की #असमकैबिनेट बैठक में हमने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम 1935 को असम निरसन विधेयक 2024 के माध्यम से निरस्त करने का निर्णय लिया है."

निर्णय के पीछे के उद्देश्य को बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, "विवाह और तलाक के पंजीकरण में समानता लाने के लिए राज्य कैबिनेट ने असम निरसन विधेयक 2024 को मंजूरी दी है. इस पर  इस्लाम ने कहा, "भारतीय संविधान मुसलमानों को उनके व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह और तलाक के मामलों को देखने की अनुमति देता है... मुख्यमंत्री अनिर्दिष्ट कारण दे रहे हैं कि इस अधिनियम में बाल विवाह के प्रावधान थे, जिसके कारण सरकार इसे निरस्त कर रही है... अब वे चाहते हैं कि मुसलमान अपनी शादियों और तलाकों को सरकार के साथ पंजीकृत करें. वे सिर्फ लोगों को परेशान करना चाहते हैं..." 

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने गुरुवार को बाल विवाह को रोकने और विवाह और तलाक पंजीकरण में समानता सुनिश्चित करने के लिए असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त करने का निर्णय लिया.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर मुख्यमंत्री ने लिखा, "हमने अपनी बेटियों और बहनों के लिए बाल विवाह के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. आज असम कैबिनेट की बैठक में हमने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम 1935 को निरस्त करने का निर्णय लिया."

निर्णय के पीछे के उद्देश्य को बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, "विवाह और तलाक के पंजीकरण में समानता लाने के लिए, राज्य कैबिनेट ने असम निरसन विधेयक 2024 को मंजूरी दी है, जो असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 और असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण नियम 1935 को निरस्त करने का प्रयास करता है. यह विधेयक विचार के लिए अगले मानसून सत्र में असम विधान सभा के सामने रखा जाएगा. राज्य कैबिनेट ने यह भी निर्देश दिया है कि असम में मुस्लिम विवाहों के पंजीकरण के लिए एक उपयुक्त कानून लाया जाए, जिसे विधानसभा के अगले सत्र में विचार किया जाएगा."

बुधवार को, मुख्यमंत्री सरमा ने "जनसांख्यिकी में परिवर्तन" के मुद्दे पर अपनी चिंताओं को दोहराते हुए कहा कि यह उनके लिए "जीवन और मृत्यु का मामला" है.

कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए, सरमा ने कहा कि 1951 में मुस्लिम आबादी 12 प्रतिशत थी और अब यह 40 प्रतिशत हो गई है.

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि 'अवैध प्रवासी' आदिवासी लड़कियों से बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए शादी कर रहे हैं. बीजेपी एक कानून बनाएगी ताकि किसी भी व्यक्ति का शोषण न हो यदि कोई आदिवासी बेटी किसी अवैध प्रवासी से शादी करती है.

 

ये भी पढ़ें :  मुहर्रम भारत में सौहार्द का प्रतीक , पाकिस्तान में सांप्रदायिक तनाव का केंद्र

ये भी पढ़ें :  उस्ताद गुलाम अली: सारंगी की आवाज़ में मुगल इतिहास की गूंज

ये भी पढ़ें : स्वामी विवेकानंदः सूफीवाद और इस्लाम