गणपती बाप्पा की मूर्तियों को सजाते है नासिक के असलम सय्यद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-09-2023
Aslam Sayyad of Nashik decorates the idols of Ganpati Bappa
Aslam Sayyad of Nashik decorates the idols of Ganpati Bappa

 

आवाज द वॉयस/ नासिक

हालाँकि महाराष्ट्र में बीते कुछ महीने से धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली घटनाएं हुई है, लेकिन एक-दूसरे के धर्म का सम्मान और प्यार करने वालों की तादाद समाज में हमेशा से ही ज्यादा रही है. समाज में ऐसे कई लोग होते है जो अपने काम से धार्मिक सद्भाव की मिसाल पेश करते रहते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण गणेशोत्सव के दौरान नासिक शहर में देखने मिला.

नासिक में रहने वाले  असलम सय्यद शादी समारोह, राजनीतिक, सामाजिक और सरकारी आयोजनों में मान्यवरों को साफ़ा पहनानेका काम करते हैं. उनके चार भाइ और पिता भी पिछले कई वर्षों से यही काम करते आ रहे हैं. उनके परिवार की जीविका इसी व्यवसाय से चलती है.
 
तीन साल पहले की बात है. असलम के एक दोस्त गणेशोत्सव के दौरान बप्पा की मूर्ति अपने घर स्थापित करना चाहते थे. उन्होंने नासिक ही के डोंगरी मैदान से एक मूर्ति खरीदी. तब उन्होंने अपने दोस्त अस्लम से बाप्पा की मूर्ति को साफ़ा बांधने की गुज़ारिश की. 
 
असलम ने भी अपने दोस्त की बात को हसी ख़ुशी कुबूल किया और कुछ ही मिनटों में बाप्पा को आकर्षक साफ़ा पहनाया. इस से मूर्ति को चार चांद लग गए. आसपास के मूर्ति विक्रेता अस्लम की यह कला देखकर दंग रह गए.
 
तब से हर साल नासिक के डोंगरी मैदान, हिरावाडी, ठक्कर डोम जैसे विभिन्न इलाको के स्टॉलवाले बाप्पा की मूर्तियोको साफ़ा बांधने के लिए अस्लम को बुलाते हैं. असलम मूर्तियों को पेशवाई, जिरे, कोल्हापुरी, महाराष्ट्रीयन, राजस्थानी और पगड़ी जैसी अलग-अलग तरह के साफ़े पहनाते है. इस साल भी अस्लमने डोंगरी मैदान में सिर्फ एक दिन में 300 से ज्यादा मूर्तियों को साफ़ा बांधा. पिछले तीन साल से यह काम अस्लम बड़े उत्साहसे और खुशिसे कर रहा हैं.
 
असलम कहते हैं, ''मैंने साफ़ा पहनाई हुई बाप्पा की मूर्तियां शहर के अलग-अलग हिस्सों में घर-घर में स्थापित की जाती हैं. इससे मुझे बेहद खुशी  मिलती है. आस्था और खुशी का कोई धर्म नहीं होता. अपने साथ-साथ दूसरों की खुशी ही सब कुछ है. इसी मकसद से मैं बाप्पा की मूर्ति को साफ़ा बांधने का काम करता हूं.“
 
इलाके के बप्पा की मूर्तियों को अस्लम ने बनाए हुए साफों से सजाया जाता है. जिससे मूर्तियां और भी आकर्षक दिखती हैं. असलम की इस कला की हिंदू और मुस्लिम समुदायों द्वारा तारीफ की जाती है. अपनी कला और हुनर के ज़रिये अस्लमने सभी के लिए धार्मिक सौहार्द की एक मिसाल पेश की है.उनकी सोच और काम सभी के लिए प्रेरणादायी है.