अरशद मदनी बोले- बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें बताएं आजादी में मौलवियों की कुर्बानियां

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 17-08-2022
अरशद मदनी
अरशद मदनी

 

एम मिश्रा /देवबंद
 
जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा किदिल्ली और आसपास के इलाकों में 1857 के बाद कम से कम 33,000 मौलवियों को फांसी दी गई थी. देवबंद के आसपास के गांवों को जला दिया गया था, क्योंकि आम लोगों ने उलेमा का समर्थन किया था. दुर्भाग्य से, मदरसों में भी स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिम मौलवियों की भूमिका नहीं दिखाई-पढ़ाई जा रही है. 

उन्होंने  मदरसों में आजादी में मौलवियों के योगदान की दर्शाने की व्यवस्था की अपील करते हुए तंज किया, अगर हमने राष्ट्र निर्माण में अपने पूर्वजों के योगदान भुला दिया है, तो हमें कम से कम अपने बच्चों को उनके बलिदान के बारे में बताना चाहिए. यह उनके भविष्य को आकार देने में मदद साबित होगा.
 
एक बार फिर सार्वजनिक मंच से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मौलवियों एवं अपने परिवार के योगदान को याद करते हुए मौलाना अरशद मदनी कहा,स्वतंत्रता में मौलानाओं की भूमिका को नजरअंदाज किया जाना अच्छी बात नहीं. उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.
 
उन्होंने देवबंद में इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम के छात्रों को संबोधित करते हुए  दावा किया, देवबंद के मौलवियों ने 200 साल तक ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए लड़ाई लड़ी.
 
उन्होंने  अफसोस जताया कि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है. उन्होंने कहा, असली देशद्रोही वे हैं जो देश में नफरत का माहौल बनाकर दिलों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं.
 
मौलाना ने याद दिलाया कि पहले इस्लामी विद्वान और मौलवी शाह अब्दुल अजीज देहलवी थे, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी किया था. मदनी ने कहा कि उन्होंने  ही मुसलमानों और हिंदुओं से विदेशी शासन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक साथ आने की अपील की थी.
 
जमीयत उलेमा ए हिंद प्रमुख ने शेख उल हिंद महमूद हसन देवबंदी के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रेशम पत्र आंदोलन शुरू किया, असहयोग आंदोलन का समर्थन किया, जामिया मिलिया इस्लामिया की सह-स्थापना की और माल्टा में कई साल जेल में बिताए..
 
द हिंदू ने मदनी के हवाले से कहा, “दिल्ली और आसपास के इलाकों में 1857 के बाद कम से कम 33,000 मौलवियों को फांसी दी गई थी. देवबंद के आसपास के गांवों को जला दिया गया था, क्योंकि आम लोगों ने उलेमा का समर्थन किया था.
 
दुर्भाग्य से, मदरसों में भी स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिम मौलवियों की भूमिका नहीं सिखाई जा रही है. अगर किसी को राष्ट्र निर्माण में हमारे पूर्वजों के योगदान को याद नहीं है, तो हमें कम से कम अपने बच्चों को उनके बलिदान के बारे में बताना चाहिए. यह उनके भविष्य को आकार देने में मदद करेगा.