आयतों के गलत तजुर्मे का इल्जाम, मौलाना साद से असम के उलेमा खफा, तबलीगी जमात का काम नहीं करेंगे

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-01-2025
Muhammad Saad Kandhalvi
Muhammad Saad Kandhalvi

 

नई दिल्ली. असम के कुछ मौलानाओं ने दावत व तबलीग के काम को लेकर फतवा जारी किया है. इस फतवा के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद कामरूप के सदर एडवोकेट जुनैद खालिद ने रिएक्शन दिया है.

असम के कुछ आलिम और उलेमा की तरफ से जारी किए गए फतवे में कहा गया है कि असम में अब से मुसलमान दावत-ए-तबलीग का काम नहीं करेंगे, क्योंकि दावत-ए-तब्लीग का मरकज दिल्ली निजामुद्दीन में है. इसके अमीर मौलाना साद साहब हैं. वह कुरान की गलत बयानी कर रहे हैं. वह खुद कुरान की कुछ आयतों के बारे में गलत बयान दे रहे हैं.

जीन्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौलानाओं ने कहा कि तब्लीगी जमात के आमीर मौलाना साद साहब कहते हैं कि हिदायत के मालिक अल्लाह नहीं हैं, जो सरासर गलत है. अल्लाह ही हिदायत देने वाले हैं. इसी को लेकर कुछ मौलानाओं ने असम में दावत व तबलीग के खिलाफ फतवा जारी किया है. इसी बात पर असम के कामरूप जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर और एडवोकेट जुनैद खालिद ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए फतवा को गलत ठहराया है. उनका कहना है कि असम के बहुत से जाने-माने उलेमा इस फतवा से नाराज हैं.

तबलीगी जमाद की बुनियाद साल 1926-27 में डाली गई. एक इस्लामी स्कॉलर मोहम्मद इलियास ने इसकी शुरूआत की. उन्होंने दिल्ली से सटे इलाके मेवात के लोगों को समझाने के लिए ये काम किया. इसके बाद ये सिलसिला आगे बढ़ा. यह सिलसिला आज भी जारी है. जमात की मीटिंग सबसे पहले साल 1941 में हुई. इस मीटिंग में 25 हजार लोग शामिल हुए. 1940 के बाद ये काम भारत के दूसरे हिस्सों में फैला. आज विदेशों में भी इसका काम है.

तबलीगी जमात के काम पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी होते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 140 देशों में इसके सेंटर हैं. इन सभी देशों में इसका मरकज है. तबलीगी जमात का मतलब होता है लोगों में आस्था और यकीन फैलाने वाला. इन लोगों का मकसद मुसलमानों तक पहुंचना और उन्हें इस्लाम की तरफ लाना है. उनमें विश्वास जगाना है.