ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के दिलो-दिमाग पर डालता है असर, व्यवहार भी बदल जाता है: विशेषज्ञ

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 10-10-2024
Excessive screen time affects the mind and heart of children, their behaviour also changes: Experts
Excessive screen time affects the mind and heart of children, their behaviour also changes: Experts

 

नई दिल्ली. बच्चों के लिए बढ़ता स्क्रीन टाइम आफत का सबब हो सकता है. इससे दिमाग पर ही असर नहीं पड़ता बल्कि बच्चों के बर्ताव पर भी गलत प्रभाव पड़ता है. विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों ने अपनी राय आईएएनएस से साझा की.

आक्रामकता, क्रोध, अवसाद और चिंता विकारों जैसी व्यवहार संबंधी समस्याओं में हाल के दिनों में काफी वृद्धि हुई है.

लीलावती अस्पताल मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ. शोरुक मोटवानी ने आईएएनएस को बताया, "अत्यधिक स्क्रीन टाइम, ट्रॉमा और हिंसा बच्चों में व्यवहार संबंधी बदलाव ला सकते हैं. वे नखरे दिखाएंगे, आक्रामक हो जाएंगे, चिंतित हो जाएंगे, सो नहीं पाएंगे और उदास हो जाएंगे."

पीडियाट्रिशियन और नियोनेटोलॉजिस्ट कंसल्टेंट, डॉ. समीरा एस राव कहती हैं, "हाल के वर्षों में, बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, जो अक्सर तनाव, अत्यधिक स्क्रीन टाइम और दिनचर्या में बदलाव जैसे कारकों से जुड़ी होती है."

आम व्यवहार संबंधी समस्याओं में अचानक मूड स्विंग शामिल है, बच्चों के इमोशनस में अत्यधिक परिवर्तन दिखने लगता है. आक्रामकता बढ़ती है तो बेवजह चिड़चिड़ापन और गुस्सा दिखने लगता है.

ऐसे बच्चों में मूड स्विंग, सिरदर्द या शरीर में दर्द, खुद को नुकसान पहुंचाना, आवेग, अति सक्रियता और असावधानी का अनुभव होने की आशंका होती है. वहीं तो प्रत्यक्ष लक्षण है उसमें खराब शैक्षणिक प्रदर्शन शामिल है.

विशेषज्ञों ने माता-पिता से व्यवहार में होने वाले बदलावों के शुरुआती संकेतों को पहचानने का आग्रह किया, जो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का संकेत हो सकते हैं, क्योंकि प्रभावी प्रबंधन के लिए शुरुआती पहचान और समय पर हस्तक्षेप जरूरी होता है.

राव ने कहा कि खाने या सोने के पैटर्न में बदलाव, जैसे कि भूख में महत्वपूर्ण बदलाव या नींद में खलल, अंतर्निहित समस्याओं का संकेत भी हो सकता है.

स्कूल जाने या गतिविधियों में भाग लेने में अनिच्छा यह संकेत दे सकती है कि कुछ गड़बड़ है.

इसके अलावा, कुछ बच्चे रिग्रेसिव व्यवहार भी दिखा सकते हैं जैसे बिस्तर गीला करना या अंगूठा चूसना आदि. ये संकट का संकेत हो सकता है.

इसके अलावा, बच्चे बाध्यकारी व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं, जैसे कि दोहराए जाने वाले कार्य या अनुष्ठान, जो चिंता या ओसीडी का संकेत हो सकते हैं.

ऐसा हो तो माता पिता कैसे निपटें इस सवाल पर मोटवानी की सलाह है कि माता-पिता से धैर्य रखने और चिल्लाने, मारने या अपमानजनक तरीके से बात करने से बचना चाहिए. उनसे बातचीत में ये जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है.

विशेषज्ञों की राय है कि यदि लक्षण बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो बाल रोग विशेषज्ञ या बाल मनोवैज्ञानिक से परामर्श करना आवश्यक है. 

 

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