छत्तीसगढ़ : एम्स रायपुर ने किया पहला सफल ‘स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट’

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-04-2025
Chhattisgarh: AIIMS Raipur did the first successful 'swap kidney transplant'
Chhattisgarh: AIIMS Raipur did the first successful 'swap kidney transplant'

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने अंग प्रतिरोपण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए पहला सफल ‘स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट’ किया है. एम्स के अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी.

अधिकारियों ने बताया कि इसके साथ ही एम्स रायपुर, नए एम्स संस्थानों के बीच और छत्तीसगढ़ का पहला सरकारी अस्पताल बन गया है, जिसने इस जटिल और जीवन रक्षक प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि किडनी पेयर्ड ट्रांसप्लांट (केपीटी) के नाम से भी जाने जाने वाले ‘स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट’ से प्रतिरोपण की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
 
‘स्वैप ट्रांसप्लांट” में किसी रोगी के लिए जीवित गुर्दा दाता तो उपलब्ध होता है लेकिन रक्त समूह या एचएलए एंटीबॉडी न मिलने के कारण प्रतिरोपण संभव नहीं हो पाता. ऐसे में वह ऐसी ही किसी दूसरी जोड़ी के साथ गुर्दे का आदान-प्रदान होने पर प्रतिरोपण करा सकता है. इस प्रक्रिया में दोनों जोड़े सफलतापूर्वक किडनी प्रतिरोपण करा सकते हैं.
 
मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि एम्स रायपुर में भर्ती बिलासपुर के 39 और 41 साल के दो पुरुष मरीज पिछले तीन साल से ‘डायलिसिस’ पर थे, दोनों को गुर्दा प्रतिरोपण कराने की सलाह दी गई थी और उनकी पत्नियां गुर्दा दान करने के लिए आगे आईं. हालांकि, रक्त समूह एक जैसा न होने के कारण पत्नी का गुर्दा प्रतिरोपित करना संभव नहीं हो पाया. फिर स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट किया गया.
 
अधिकारियों ने बताया कि यह स्वैप ट्रांसप्लांट इस वर्ष 15 मार्च को किया गया और दाता व प्राप्तकर्ता दोनों चिकित्सकीय निगरानी में हैं. एम्स रायपुर में गुर्दा रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर विनय राठौर ने बताया कि रक्त समूह या एचएलए एंटीबॉडी का मिलान न होने के कारण लगभग 40 से 50 प्रतिशत प्रतिशत प्रतिरोपण अस्वीकार कर दिए जाते हैं.
 
डॉक्टर राठौर ने कहा, ''स्वैप ट्रांसप्लांट उन रोगियों के लिए जीवन रक्षक विकल्प है जिनके पास गुर्दा दान करने वाले तो होते हैं, लेकिन दोनों का रक्त समूह और एंटीबॉडी मेल नहीं खाता. समय पर प्रतिरोपण कराना, डायलिसिस की तुलना में बेहतर होता है.'' उन्होंने बताया कि हाल ही में 16 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण संगठन (एनओटीटीओ) ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर स्वैप ट्रांसप्लांट की योजना को क्रियान्वित करने की सिफारिश की है, जिससे जैविक असंगति वाले रोगियों को भी प्रतिरोपण का लाभ मिल सके.