अली अब्बास
'जब मैं मर जाऊं तो मेरी मिट्टी मेरे स्टूडियो में लाई जानी चाहिए. हो सकता है कि मैं कार्रवाई की आवाज़ सुनकर जाग जाऊं, इसकी रोशनी में कार्रवाई हो जाए.' ये शब्द 'आवारा' और 'जोकर' के हैं जिन्हें दुनिया बॉलीवुड के सबसे महान 'शोमैन' के नाम से जानती है. यह कहानी है राज कपूर की जिन्होंने अभिनय से लेकर फिल्म निर्माण तक हर क्षेत्र में बॉलीवुड पर राज किया.
हिंदी सिनेमा के इस महान कलाकार का जन्म आज से 100 साल पहले 14 दिसंबर 1924 को अविभाजित भारत के पेशावर के किसा खवानी बाजार की कपूर हवेली में हुआ था.
यह वर्ष राज कपूर का वर्ष है और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए भारत में आधिकारिक स्तर पर समारोह आयोजित किए जा रहे हैं, जबकि सीमा पार पाकिस्तान में उनके प्रशंसक अपने प्रिय कलाकार का जन्मदिन उत्साह के साथ मना रहे हैं
पेशावर में अभिनेता की पैतृक हवेली को ऐतिहासिक विरासत घोषित किया गया है जिसके संरक्षण के लिए विश्व बैंक धन मुहैया करा रहा है.
जब यह बताया जाता है कि राज कपूर पंजाब के लायलपुर (फैसलाबाद) जिले के सरांडी कस्बे के रहने वाले थे, तो कुछ लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं और कुछ चौंक जाते हैं.
यह सच है कि उनका जन्म पेशावर में हुआ था और उन्होंने अपने शुरुआती साल उसी शहर में बिताए थे और वह हिंदी भाषा में भी पारंगत थे, लेकिन पंजाब और समुद्र को अलग करके उनके जीवन का वर्णन करना असंभव है.
पंजाबी हिंदू खत्री परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस महान अभिनेता के पिता पृथ्वीराज कपूर का जन्म समुद्र में हुआ था.
दादा दीवान बशेश्वरनाथ कपूर भारतीय शाही सेवा में एक पुलिस अधिकारी थे. दीवान के परदादा केशुरमल कपूर और उनके पिता दीवान मुरली राम कपूर सारंडी में तहसीलदार के पद पर तैनात थे.
जब वह 17साल के थे, तब रणबीर राज कपूर या संक्षेप में राज कपूर के नाम से मशहूर श्रष्टिनाथ कपूर ने अपने पिता से पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में आने की इजाजत मांगी.
पृथ्वी, जिन्होंने खुद पारिवारिक परंपरा के खिलाफ विद्रोह किया था और एक अभिनेता के रूप में नाम कमाया था, ने अपने बड़े बेटे को इस शर्त पर फिल्मों में काम करने की अनुमति दी कि वह 10रुपये प्रति माह पर उनके सहायक के रूप में काम करेगा.
इससे पहले राज कपूर ने 10साल की उम्र में फिल्म 'इंकलाब' में बाल कलाकार के रूप में काम किया था, जिसके बाद वह कुछ फिल्मों में छोटी भूमिकाओं में नजर आए, लेकिन उनका करियर ज्यादातर कैमरे के पीछे ही रहा.
यह उन दिनों का संदर्भ है जब वह क्लैपर बॉय के रूप में काम कर रहे थे. एक क्लैपरबॉय का काम क्लैपरबोर्ड या बस स्लेट को चलाना है, यह शब्द पहली बार 1930के दशक में प्रत्येक दृश्य से पहले इस्तेमाल किया गया था.
युवा राज कपूर केदार शर्मा की प्रोडक्शन टीम में क्लैपर बॉय के रूप में काम कर रहे थे. फिल्म की शूटिंग के दौरान वह बार-बार अपने बालों को स्टाइल करते थे जिससे काम पर असर पड़ रहा था.
जब केदार शर्मा ने यह देखा तो उन्होंने अपना आपा खो दिया और युवा राज को थप्पड़ मार दिया. केदार शर्मा ने इस तमाचे की भरपाई अपनी आने वाली फिल्म 'नील कमल' में राज कपूर को मुख्य भूमिका में लेकर की.
केदार शर्मा नरवाल के रहने वाले थे. वह कलात्मक थे क्योंकि उन्होंने राज कपूर सहित मधुबाला, गीता बाली, माला सिन्हा, भारत भूषण और तनुजा जैसे अभिनेताओं को बड़े पर्दे पर पेश किया.
फिल्म 'नील कमल' में राज कपूर के साथ बेगम पारा और मधु बाला नजर आईं. बेगम पारा झेलम के एक उच्च शिक्षित परिवार से थीं और उनके पिता मियां एहसानुल हक बीकानेर रियासत के मुख्य न्यायाधीश थे.
हालांकि फिल्म ने औसत कारोबार किया, लेकिन युवा राज कपूर को अभिनय में अपना भविष्य उज्ज्वल नजर आने लगा, जिसके बाद उन्होंने 'जेल यात्रा', 'चितूर विजय' और 'दिल की यात्रा' में काम किया, लेकिन अभिनेता की फिल्म 'आग' रिलीज हो गई. 1948में नई पहचान मिली.
इस फिल्म में उन्होंने न सिर्फ अभिनय किया बल्कि वह इस फिल्म के निर्देशक और निर्माता भी थे. उस समय राज कपूर केवल 24 वर्ष के थे.
भारतीय समाचार पत्र 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, अभिनेता जल्द ही एक फिल्म निर्माता बन गए और 1924 में, 24साल की उम्र में, उन्होंने अपना खुद का आरके स्टूडियो स्थापित किया, और अपने युग के सबसे कम उम्र के फिल्म निर्माता बन गए.
फिल्म ने औसत कारोबार किया लेकिन राज कपूर निश्चित रूप से एक अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे, जबकि इस फिल्म ने राज कपूर और नरगिस की सदाबहार जोड़ी को भी जन्म दिया जो आने वाले कई वर्षों तक एक साथ दिखाई दी बड़ा परदा.
वर्ष 1949अभिनेता के कलात्मक करियर के लिए निर्णायक साबित हुआ. साल की शुरुआत दिलीप कुमार और राज कपूर अभिनीत निर्देशक मेहबूब खान की 'अंदाज़' से हुई, जिसके बाद दोनों कलाकार अपने लंबे करियर में कभी बड़े पर्दे पर एक साथ नज़र नहीं आए. यह फिल्म सुपरहिट रही और राज कपूर उस दौर के सबसे सफल अभिनेताओं में से एक बन गए.
उसी साल बतौर निर्माता और निर्देशक राज कपूर की दूसरी फिल्म 'बरसात' रिलीज हुई, जिसमें एक बार फिर उनके साथ नरगिस नजर आईं. फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई और राज कपूर खुद को एक सफल निर्माता और निर्देशक के रूप में स्थापित करने में सफल रहे, जबकि वह पहले ही खुद को एक अभिनेता के रूप में स्थापित कर चुके थे.
यह फिल्म एक ट्रेंड-सेटर भी साबित हुई क्योंकि इसने संगीतकार शंकर जय किशन और कवि शैलिंदर और हसरत जयपुरी की जोड़ी की शुरुआत की, जो बाद में राज कपूर की रचनात्मक टीम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए.
यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि आने वाले वर्षों में, लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास और गायक मुकेश भी राज कपूर की रचनात्मक टीम का एक अभिन्न अंग बन गए, गायक मुकेश को राज कपूर ने अपनी 'आवाज़' के रूप में संदर्भित किया.
यह फिल्म अपने सदाबहार गानों 'हवा में उड़ता जाए मीरा लाल दुपटा मलमल का', 'पतली कमर है, तारछी नजर है' और 'जिया बे करा है, छाई बिहार है' के लिए भी याद की जाएगी. सिर्फ इस फिल्म ही नहीं बल्कि राज कपूर अपनी हर फिल्म के संगीत पर खास ध्यान देते थे.
राज कपूर के छोटे भाई और महान अभिनेता शशि कपूर ने एक डॉक्यूमेंट्री में कहा था कि वह एक अद्भुत संगीतकार थे. मुझे लगता है कि उनमें यह प्रतिभा जन्म से ही थी जो शायद उन्हें अपने पिता से नहीं बल्कि अपनी मां से मिली थी जो एक गायिका थीं. वह कोई भी वाद्ययंत्र बजा सकते थे चाहे वह अकॉर्डियन, तबला, पियानो, बांसुरी या टैम्बोरिन हो.'
साल 1950में राज कपूर 'सरगम', 'दास्तान' और 'भूरे नैन' जैसी हिट फिल्मों में नजर आए. 'दास्तान' के निर्देशक एआर कारदार थे जो भाटीगेट के प्रसिद्ध कारदार परिवार से थे और लाहौर में फिल्म उद्योग के संस्थापक थे. पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के पहले कप्तान अब्दुल हफीज कारदार भी इसी परिवार से थे.
वर्ष 1951में राज कपूर की यादगार फिल्म 'आवारा' प्रदर्शित हुई, जिसका निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने ही किया था. यह फिल्म न केवल भारत में बल्कि सोवियत संघ, पूर्वी एशिया, अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और मध्य पूर्व में भी समान रूप से लोकप्रिय थी.
अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' अपने एक लेख में लिखता है कि 'उनकी (राज कपूर) फ़िल्में विभाजन के बाद के भारत की वास्तविकताओं, आम आदमी के सपनों और ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच विरोधाभासों को कवर करती हैं. राज कपूर का सिनेमा भावना, विरोध और मानवतावाद का पर्याय बन गया. 'आवारा' में उनका प्रसिद्ध किरदार चार्ली चैपलिन से प्रेरित था, जिसे पूरी दुनिया और खासकर सोवियत संघ में पसंद किया गया था.'
मेरा नाम जोकर में उनके साथ काम कर चुके सैमी ग्रेवाल की एक डॉक्यूमेंट्री में बोलते हुए राज कपूर ने कहा, "यह स्क्रिप्ट मेरे पास उस समय आई थी जब भारत एक नई सामाजिक अवधारणा विकसित कर रहा था. यह एक ऐसी अवधारणा थी जो लाखों लोगों को स्वीकार्य थी और लाखों लोग, कोई विशिष्ट मुट्ठी भर नहीं.'
2012में टाइम्स मैगजीन ने 'आवारा' को सर्वकालिक 100महानतम फिल्मों में शामिल किया था. अगर इस फिल्म का गाना 'आवारा हूं' चीन के क्रांतिकारी नेता माओत्से तुंग का पसंदीदा गाना था तो उनके अन्य गाने 'घर आया मेरा परदेसी', 'दम भर जो उधर मन फेर', 'एक बे वफा से प्यार क्या' , 'अब रात बीतने वाली है' और 'जब से ब्लम घर आया है', दशकों बीत जाने के बावजूद वे आज भी दर्शकों में हैं. यही कारण था कि फिल्म का संगीत एल्बम 1950के दशक के सबसे अधिक बिकने वाले संगीत एल्बमों में से एक था.
राज कपूर के बेटे और अभिनेता रणधीर कपूर का कहना है कि 'राज कपूर सिर्फ एक फिल्म निर्माता नहीं थे बल्कि एक दूरदर्शी व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय सिनेमा का भावनात्मक परिदृश्य तैयार किया.'
फिल्म 'आवारा' के बाद बतौर निर्देशक राज कपूर की अगली फिल्म 1955 में रिलीज हुई 'श्री 420' थी. इस फिल्म में राज कपूर ने एक बार फिर चार्ली चैपलिन की शैली को अपनाया, जिसके कारण चार्ली चैपलिन की नकल करने के लिए उनकी आलोचना भी की जाती है.
यह धारणा कुछ हद तक सच है क्योंकि वह चार्ली चैपलिन से प्रभावित थे लेकिन उन्होंने उनकी इस तरह नकल की कि यह उनकी पहचान के लिए एक प्रमुख संदर्भ बिंदु बन गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने दर्द और खुशी की भावनाओं को एक साथ प्रस्तुत किया.
चार्ली चैपलिन पर्दे पर मजाकिया हुआ करते थे जबकि उनका जीवन दुखों से भरा था, इसलिए राज कपूर ने उन्हें अपनी शैली दी क्योंकि वह दुखद अभिनय करते थे.
इसका उदाहरण है फिल्म 'माई नेम इज जोकर' जो चार्ली चैपलिन के इन शब्दों की पुष्टि करती है कि 'मुझे हमेशा बारिश में चलना पसंद है क्योंकि कोई तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता.'
राज कपूर ने आम आदमी की जिंदगी के रंगों को जिस तरह से चित्रित किया, उस समय कोई और नहीं कर सका.
'श्री 420' से पहले राज कपूर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म 'बूट पॉलिश' रिलीज हुई थी जिसे राज कपूर ने बनाया था लेकिन इस फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका नहीं निभाई थी. इसकी थीम भी उनकी पिछली फिल्मों से अलग नहीं थी.
राज कपूर ने इस बारे में अखबार इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था कि 'मैंने 'आवारा' में यह साबित करने की कोशिश की है कि कोई भी इंसान घुमक्कड़ पैदा नहीं होता बल्कि हमारे आधुनिक शहरों की झुग्गियों में बेहद गरीबी और अभाव में पैदा होता है स्थितियाँ.
'बूट पॉलिश' अनाथों की समस्याओं, अस्तित्व के लिए उनके संघर्ष और संगठित भिक्षावृत्ति के खिलाफ उनके संघर्ष को दर्शाती है.'
साल 1964राज कपूर के करियर के लिए अहम पड़ाव साबित हुआ जब फिल्म 'संगम' रिलीज हुई. यह न केवल बॉलीवुड की पहली रंगीन फिल्म थी, बल्कि पूरी फिल्म की शूटिंग विदेश में की गई थी और इसने राज कपूर को जन्म दिया, जो बदलते रुझानों से अलग नहीं थे, जिससे फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही.
आने वाले वर्षों में उनकी फिल्में 'बॉबी', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'राम तेरी गंगा मेली' को अपने बोल्ड दृश्यों के कारण विवादों का सामना करना पड़ा, लेकिन अभिनेता की बेटी रितु नंदा ने 'राज कपूर स्पीक्स' किताब में अपने पिता के बयान को दोहराया. '. वह कहती हैं, 'नग्नता देखकर हम हैरान हो जाते हैं, हमें परिपक्व होने की जरूरत है.
'मैंने हमेशा महिलाओं का सम्मान किया है लेकिन मुझे नहीं पता कि मुझ पर महिलाओं के शोषण का आरोप क्यों लगाया जा रहा है. (फेडेरिको) फ़ेलिनी की महिलाओं को कला माना जाता है, लेकिन जब मैं महिलाओं की सुंदरता को स्क्रीन पर दिखाता हूं, तो इसे शोषण कहा जाता है.'
अपने करियर के शिखर पर राज कपूर ने 'मीरा नाम जोकर' बनाई जो उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था. यह सफल नहीं रही, लेकिन आने वाले वर्षों में इसे पंथ का दर्जा मिल गया. इस फिल्म की असफलता के बाद ऐसी आशंका होने लगी कि राज कपूर दोबारा अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाएंगे.
हालाँकि, उन्होंने इस धारणा को तीन साल बाद 1973में रिलीज़ हुई फिल्म 'बॉबी' से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर को लॉन्च किया. इस फिल्म के जरिए अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया ने भी अपनी कलात्मक यात्रा शुरू की थी.
फिल्म 'बॉबी' ने आरके फिल्म्स के सारे घाटे की भरपाई की और राज कपूर ने रोमांटिक फिल्मों को एक नई धुन दी. यह कहना गलत नहीं होगा कि राज कपूर ने एक बार फिर जोखिम लिया लेकिन वह हमेशा की तरह सफल हुए.
राज कपूर के पोते और अभिनेता रणबीर कपूर का कहना है कि उनमें नए कलाकारों के साथ फिल्म बनाने का साहस था, एक 50वर्षीय व्यक्ति युवाओं के लिए फिल्म बना रहा है.
'इसका मतलब यह है कि उन्होंने वास्तव में समय के साथ खुद को बदल लिया. वह दुनिया से अलग-थलग रहने वाले व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वह लगातार आम लोगों से जुड़े हुए थे.'
राज कपूर के जीवन का वर्णन हो और नरगिस का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं है. दोनों की लव स्टोरी काफी सुर्खियों में रही थी.
'राम तेरी गंगा मेली' की सफलता पर भारत के राज्य प्रसारक प्रसार भारती द्वारा बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री में, अभिनेता ने नरगिस के साथ अपने संबंधों के बारे में विस्तार से बात की, जिनके साथ उन्होंने 18फिल्मों में काम किया.
इस डॉक्यूमेंट्री में राज कपूर ने खुलासा किया कि जब उनकी मुलाकात नरगिस से हुई तो वह पहले से शादीशुदा और बच्चों के पिता थे और उस वक्त नरगिस 16साल की थीं.
राज कपूर ने हमेशा कुछ सीमाएँ तय की थीं जैसे उनकी पत्नी अभिनेत्री नहीं होगी और उनकी अभिनेत्री उनकी पत्नी नहीं होगी.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, 'अहिल्या से उनका मतलब 'बच्चों की मां' था, लेकिन नरगिस की सुनील दत्त से शादी को लेकर वह जरूर आकर्षित रहे होंगे और कुछ समय के लिए उन्होंने इसकी व्याख्या 'बेवफाई' के तौर पर की थी. .
लेखक माधव जैन ने अपनी किताब 'द कपूर्स: द फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडियन सिनेमा' में इस कहानी को विस्तार से बताया है और खुलासा किया है कि नरगिस की शादी की खबरों पर उन्होंने बार-बार खुद को सिगरेट से जलाया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह शादीशुदा हैं.
राज कपूर ने परिवार की पसंद से कृष्णा मल्होत्रा से शादी की थी, जो बाद में कृष्णा राज कपूर के नाम से मशहूर हुईं. वह एक्टिंग से दूर रहीं.
लेखिका और पत्रकार बानी रूबेन से बात करते हुए, उन्होंने उन दिनों को याद किया जब नरगिस की शादी हुई थी, उन्होंने कहा कि वह (राज कपूर) हर रात नशे में घर आते थे और अक्सर नहाते समय टब में गिर जाते थे और रोने लगते थे.
हालाँकि राज कपूर ने कभी भी नरगिस की खुलकर आलोचना नहीं की, लेकिन वे अपने रिश्ते में दरार के लिए अभिनेत्री के भाइयों को दोषी मानते थे और निजी समारोहों में उन्हें बेवफा कहते थे.
राज कपूर और विजनाथमाला के अफेयर की खबरें भी खूब सुर्खियों में रही थीं. दोनों ने फिल्म 'संगम' में साथ काम किया था. हालाँकि, विजयनाथिमाला ने अपनी आत्मकथा में इसे आरके स्टूडियोज़ का पीआर स्टंट बताया है.
हालांकि, ऋषि कपूर अपनी आत्मकथा 'खुल्लम खेला' में लिखते हैं कि 'जब मेरे पिता का नरगिस जी के साथ अफेयर था तब मैं बहुत छोटा था. मुझे घर पर कोई समस्या याद नहीं है.'
उन्होंने कहा, "मुझे याद है कि जब मेरे पिता का विजनाथिमाला के साथ अफेयर चल रहा था तो मैं अपनी मां के साथ मरीन ड्राइव पर नटराज होटल चला गया था."
राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर, रणधीर कपूर और राजीव कपूर भी अभिनय में नजर आए, जबकि उनके पोते रणबीर कपूर और पोतियां करिश्मा कपूर और करीना कपूर भी सफल अभिनेत्री मानी जाती हैं.
2मई 1988की बात है, जब राज कपूर हिंदी सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली में थे, तभी अस्थमा के गंभीर दौरे के कारण वह सभागार में गिर पड़े. उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनका एक महीने तक इलाज चला और 2जून को उनकी मृत्यु हो गई.
राज कपूर एक महान निर्देशक, अभिनेता या निर्माता थे? इस प्रश्न का सरल उत्तर यह है कि उन्होंने अपनी प्रत्येक भूमिका के साथ न्याय किया और चार दशक के करियर में साबित कर दिया कि वह वास्तव में बॉलीवुड के सबसे महान 'शोमैन' थे, जिसे हिंदी फिल्म परंपरा में शामिल करना तो दूर की बात है, यह संभव नहीं है.