‘तीन तलाक’ पर बनने वाली फिल्म में शाहबानो का किरदार निभाएंगी यामी गौतम

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 17-01-2025
Yami Gautam will play the role of Shahbano in the film based on 'Triple Talaq'
Yami Gautam will play the role of Shahbano in the film based on 'Triple Talaq'

 

मुंबई. मां बनने के बाद यामी गौतम एक बार फिर बड़े पर्दे पर वापसी करने जा रही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभिनेत्री शाहबानो के जीवन पर आधारित फिल्म में मुख्य भूमिका में नजर आएंगी.  शाहबानो ने अपने पति से तलाक लेने के बाद भरण-पोषण भत्ते के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी.

शाहबानो का मामला 1985 में तीन तलाक, महिला अधिकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित था. शाहबानो के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरे देश में सामाजिक और कानूनी बहस का विषय बन गया.

शाहबानो ने ट्रिपल तलाक मामले में बहुत सहयोग किया है. यामी गौतम इस फिल्म के जरिए दर्शकों को इस केस का महत्व समझाएंगी. यामी गौतम शाहबानो की भूमिका निभाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. यह उनके करियर में एक महान भूमिका होगी. वे इस नई चुनौती को लेकर बहुत उत्साहित हैं.

शाहबानो के जीवन पर आधारित फिल्म का निर्देशन सुपर्ण वर्मा करेंगे, जिन्होंने इससे पहले द फैमिली मैन सीजन 2, राणा नायडू और द ट्रायल का निर्देशन किया है. फिल्म का निर्माण जंगल पिक्चर्स द्वारा विशाल गुरनानी और जूही पारख मेहता के सहयोग से किया जाएगा.

शाहबानो मध्य प्रदेश के इंदौर की निवासी थीं. 1978 में 62 वर्ष की आयु में उनके पति मुहम्मद अहमद ने उन्हें तलाक दे दिया और घर से बाहर निकाल दिया. शाहबानो के पांच बच्चे थे. 1981 में पति से भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पति ने कहा कि वह शाहबानो को भरण-पोषण भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है. 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 पर अपना फैसला सुनाया. यह धारा तलाक के मामले में भरण-पोषण भत्ते के निर्धारण से संबंधित है. सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो को रंगदारी देने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो के पक्ष में आए अदालती फैसले के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाया. देश के सभी मुस्लिम संगठनों ने कहा कि अदालत उनके पारिवारिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करके उनके अधिकारों का हनन कर रही है.

जब देश में इसका विरोध हुआ, तो तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में कानून बनाया. इस कानून को मुस्लिम महिला अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986 नाम दिया गया. इससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला कमजोर हो गया. कानून के तहत महिलाओं को केवल इद्दत (अलगाव अवधि) के दौरान ही भरण-पोषण प्राप्त करने की अनुमति थी. राजीव गांधी सरकार के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा दे दिया था.

उस समय भाजपा ने कहा था - अगर हम सत्ता में आए, तो पर्सनल लॉ में बदलाव करेंगे. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा था. पूर्ण बहुमत के साथ मोदी सरकार को लगा कि यह उसके दशकों पुराने एजेंडे को पूरा करने का सही अवसर है. 30 जुलाई 2019 को मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया.