ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
अपने पांच दशक के करियर में वहीदा रहमान नील कमल, बीस साल बाद, खामोशी, प्यासा, साहिब बीबी और गुलाम, गाइड, सीआईडी और चौदहवीं का चांद जैसी कई हिट फिल्मों का हिस्सा रही हैं. हालांकि, दिग्गज अदाकारा ने हमेशा अपने मन की बात कही और अपने सामने रखी गई हर मांग को नहीं माना.
दरअसल, उस समय हिंदी सिनेमा में अपना नाम बदलना रिवाज माना जाता था, लेकिन दिग्गज अदाकारा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. हाल ही में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में बातचीत के दौरान उन्होंने खुलासा किया कि जब उन्होंने 1956की फिल्म सीआईडी से बॉलीवुड में डेब्यू किया था, तब वह एक जिद्दी न्यूकमर थीं.
वहीदा ने कहा, “जब मैं चेन्नई से मुंबई एक न्यूकमर के तौर पर आई थी, तो मुझे गुरु दत्त जी ने कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के लिए बुलाया था. मेरी मां भी मेरे साथ आई थीं. उन्होंने कहा कि हम आपका नाम बदलना चाहते हैं क्योंकि यह लंबा है और अच्छा नहीं है. जब उन्होंने कहा कि उन्हें यह पसंद नहीं है, तो मुझे बहुत बुरा लगा. यह बहुत असभ्य था! मेरे मम्मी-पापा ने मेरा नाम रखा, तुम कौन होते हो मुझे यह कहने वाले कि यह अच्छा नहीं है? मैंने इसे बदलने से इनकार कर दिया. स्क्रीन पर वहीदा रहमान दिखाई दे सकती है और काम करते समय तुम मुझे वहीदा कह सकते हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह लंबा है या नहीं.”
लेकिन, दत्त ने कहा कि नाम बदलना इंडस्ट्री का चलन है. “उन्होंने दिलीप कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी और कई अन्य लोगों के उदाहरण दिए. मुझे उस समय खुद पर बहुत गर्व था, मैं परिपक्वता के साथ नरम हो गई हूं. मैंने उन्हें साफ मना कर दिया, क्योंकि मेरे माता-पिता ने मुझे यह नाम दिया था और मुझे यह पसंद है.
उन्होंने कहा कि इस नाम में ग्लैमर और सेक्स अपील नहीं है. मैंने कहा कि आप जो भी कहें, मैं इसे नहीं बदलूंगी,” उन्होंने आगे कहा. सीआईडी के निर्देशक राज खोसला गुरु दत्त के करीबी दोस्त थे. उन्होंने कहा, “जब भी हम किसी नए कलाकार को साइन करते हैं, तो वह हमारी शर्तों के अनुसार काम करता है. आप एक नवोदित कलाकार हैं, आप हमारे सामने शर्तें क्यों रख रहे हैं?" इस पर दिग्गज अभिनेता ने जवाब दिया, "यह एक लेन-देन वाली बात होनी चाहिए.
मेरी माँ को मेरे अनुबंध पर हस्ताक्षर करने पड़े क्योंकि मैं केवल 16वर्ष का था. वे इतनी छोटी लड़की को यह कहते हुए देखकर चौंक गए कि, 'मैं यही करना चाहती हूँ', वह भी प्रभुत्व और अपनी शर्तों के साथ." उन्होंने तीन दिन बाद फोन किया और कहा कि वे मेरा नाम रखेंगे और इसे नहीं बदलेंगे.
'प्यासा', 'सीआईडी', 'गाइड', 'कागज के फूल' और 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय के लिए मशहूर मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान को इस साल के दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि सर्वोच्च सम्मान है. भारतीय सिनेमा.
85 वर्षीय स्क्रीन आइकन के कुछ लोकप्रिय गीतों पर एक नज़र:
1. 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' - 'सीआईडी' (1956) यह मधुर ट्रैक, रहमान के करियर के सबसे बेहतरीन गानों में से एक है, जो उनकी पहली हिंदी फ़िल्म का है. शमशाद बेगम के इस गाने में अभिनेता एक मैंडोलिन बजाते हुए नज़र आ रहे हैं. इसे ओपी नैयर ने कंपोज किया है और मजरूह सुल्तानपुरी और जान निसार अख्तर ने लिखा है.
2. 'जाने क्या तूने कही' - 'प्यासा' (1957) गायिका गीता दत्त का यह गाना रहमान और गुरु दत्त पर फिल्माया गया है, जिन्होंने इस क्लासिक फ़िल्म का निर्देशन भी किया था. एसडी बर्मन द्वारा कंपोज किया गया और साहिर लुधियानवी द्वारा लिखा गया यह चंचल ट्रैक रहमान के आकर्षण के लिए याद किया जाता है.
3. 'वक्त ने किया' - 'कागज़ के फूल' (1959) गीता दत्त का एक और लोकप्रिय गीत, यह गीत दर्द और आंतरिक उथल-पुथल का उदाहरण है. कैमरे का काम गीत के दौरान रहमान द्वारा प्रदर्शित भावनाओं की विविधता को खूबसूरती से कैद करता है. इसे एसडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया है और कैफ़ी आज़मी और शैलेंद्र ने लिखा है.
4. 'रिमझिम के तराने' - 'काला बाज़ार' (1960) गीता दत्त और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया यह गीत रहमान और देव आनंद पर फ़िल्माया गया था, जब वे बारिश में गाते और नाचते हैं. शैलेंद्र ने इस गीत के बोल लिखे थे, जिसे एसडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था.
5. 'आज फिर जीने की तमन्ना है' - 'गाइड' (1965) क्लासिक फ़िल्म का यह गीत स्वतंत्रता, कायाकल्प और प्रेम में होने की भावना को सहजता से दर्शाता है. रहमान और सह-कलाकार देव आनंद पर फ़िल्माया गया यह गीत शैलेंद्र द्वारा लिखा गया है और एसडी बर्मन द्वारा संगीतबद्ध किया गया है.
6. 'पिया तोसे नैना लागे रे' - 'गाइड' (1965) फिल्म का एक और लोकप्रिय ट्रैक जिसमें रहमान लाइव ऑडियंस के सामने परफॉर्म करती नजर आती हैं. लता मंगेशकर का यह गाना प्यार और चाहत की मधुर अभिव्यक्ति है.
7. 'पान खाए सैयां हमारो' - 'तीसरी कसम' (1966) रहमान ने एक बार फिर आशा भोसले द्वारा गाए गए लोकगीत में अपने खूबसूरत डांस मूव्स दिखाए. इस गाने को शंकर-जयकिशन ने कंपोज किया है और शैलेंद्र ने लिखा है.
8. 'रंगीला रे तेरे रंग में' - प्रेम पुजारी (1970) इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया था. इसमें रहमान का किरदार देव आनंद द्वारा निभाए गए मुख्य किरदार के लिए अपने प्यार का इजहार करता हुआ नजर आता है. पूरे गाने में, अदाकारा अपने दर्द और उदासी को व्यक्त करते हुए नाचती नजर आती हैं. गीत नीरज के हैं और संगीत एसडी बर्मन का है.
9. 'लुका छुपी' - 'रंग दे बसंती' (2006) रहमान ने एक ऐसी मां के जीवन की झलक दिखाई है जो अपने इकलौते बेटे की मौत से जूझ रही है, जिसका किरदार फिल्म में आर माधवन ने निभाया है. एआर रहमान द्वारा रचित और प्रसून जोशी द्वारा लिखित इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया है.
10. 'गेंदा फूल' - 'दिल्ली-6' (2009) इस मजेदार लोकगीत में रहमान अभिषेक बच्चन के किरदार की दादी के रूप में नजर आती हैं. फिल्म की रिलीज के समय 70 साल की उम्र वाली अभिनेत्री ने गाने के इलेक्ट्रॉनिक फ्यूजन बीट्स पर अभिषेक के साथ डांस करते हुए बुढ़ापे की मासूमियत को दर्शाया है. इस गाने को रेखा भारद्वाज, श्रद्धा पंडित और सुजाता मजूमदार ने गाया है, जिसका संगीत एआर रहमान ने दिया है और बोल प्रसून जोशी ने लिखे हैं, जिन्होंने इस गाने के लिए छत्तीसगढ़ी लोकगीत को अपनाया है.
उनको एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और तीन फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं (Waheeda Rehman Awards). वहीदा को 1972 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उन्हें 2011 में पद्म भूषण मिला (Waheeda Rehman, Padma Shri and Padma Bhushan). वहीदा ने अपने अभिनय की शुरुआत तेलुगु फिल्म रोजुलु मरयी (1955) से की.