नूरजहां का क्या था कलकत्ता से रिश्ता ?

Story by  जयनारायण प्रसाद | Published by  [email protected] | Date 22-09-2024
21 सितंबर के लिए: गायिका नूरजहां का था कलकत्ता से रिश्ता
21 सितंबर के लिए: गायिका नूरजहां का था कलकत्ता से रिश्ता

 

जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता

'मल्लिका-ए-तरन्नुम' कही जाने वाली गायिका/अभिनेत्री नूरजहां का रिश्ता कभी कलकत्ता से भी था.‌ नूरजहां का परिवार कलकत्ता में वर्ष 1930में आया, तब नूरजहां की उम्र थीं महज़ छह साल.चार दशकों से भी ज्यादा समय तक सिनेमा से जुड़ी रही नूरजहां की पैदाइश पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में कसुर नामक जगह पर हुई थीं.

तारीख़ थीं 21 सितंबर, 1926और उनकी मौत करांची में हुई 23 दिसंबर, 2000 को. जब गायिका नूरजहां की मौत हुई, तो उनकी उम्र 74साल की थीं.नूरजहां को करांची के गिज़री कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था.

नूरजहां छह साल की उम्र में आ गई थीं कलकत्ता

अपनी बेशकीमती आवाज़ के लिए मशहूर नूरजहां बचपन से ही काफी खूबसूरत थीं.1930का साल था.तब कलकत्ता में साइलेंट फिल्में खूब बनती थीं.इस तरह की फिल्मों के लिए बीएन सरकार द्वारा स्थापित 'न्यू थिएटर स्टुडियो' एक जानी-मानी जगह थीं.कलकत्ता के 'न्यू थिएटर स्टुडियो' के अलावा दूसरी जगह पाकिस्तान में लाहौर थीं, जहां लोग सिनेमा में काम करने का ख़्वाब देखा करते थे.इस तरह, अविभाजित हिंदुस्तान में उन दिनों लोग इधर से उधर आसानी से आया-जाया करते रहते थे.

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नूरजहां की पहली फिल्म को मिला था कलकत्ता से सेंसर सर्टिफिकेट

गायिका नूरजहां बुनियादी तौर पर पंजाबी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती थीं.वैसे तो नूरजहां को पंजाबी के अलावा उर्दू और सिंधी जुबान भी अच्छी तरह आती थीं.हिंदी जुबान में भी वह पारंगत हो गई थीं.अपने समूचे फिल्मी कैरियर में दस हजार से भी ज्यादा गाना गाने वाली नूरजहां की पहली पंजाबी फिल्म थीं 'पिंड दी कुड़ी' (1935).

 इस पंजाबी मूवी में नूरजहां बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट दिखाई पड़ी थीं.153मिनट वाली नूरजहां की 'पिंड दी कुड़ी' को कलकत्ता से सेंसर सर्टिफिकेट मिला था.लाहौर में इस पंजाबी मूवी का विशेष शो हुआ था.बाद में लाहौर के साथ कलकत्ता में भी नूरजहां की यह पहली फिल्म रिलीज हुई थीं.केडी मेहरा फिल्म 'पिंड दी कुड़ी' के निर्देशक थे.

नूरजहां को कलकत्ता में मिली थीं क्लासिकल सिंगिंग की ट्रेनिंग

नेशनल लाइब्रेरी में इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है गायिका नूरजहां को कलकत्ता में क्लासिकल सिंगिंग की खास ट्रेनिंग मिली थीं.उस्ताद गुलाम मोहम्मद और कज्जनबाई नूरजहां को शास्त्रीय संगीत की तालीम देते थे.तब बेबी नूरजहां की उम्र थीं ग्यारह साल.उस्ताद गुलाम मोहम्मद पटियाला घराने के थे और हिंदुस्तानी  क्लासिकल में उनकी अच्छी पकड़ थीं.

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ठुमरी, ध्रुपद और खयाल नूरजहां ने कलकत्ता में ही सीखा

बहुत कम लोगों को मालूम है गायिका नूरजहां ने ठुमरी, ध्रुपद और खयाल गायन कलकत्ता में ही सीखा.गज़ल, नात और लोक गायिकी में भी नूरजहां की पकड़ मजबूत हो गई थीं.उन दिनों एक पंजाबी संगीतकार हुआ करते थे कलकत्ता में, जिनका नाम था गुलाम अहमद चिश्ती.उन्होंने ही नूरजहां के अब्बा इमदाद अली को सलाह दी थी कि अपनी बेटी को लाहौर ले जाए.बाद में नूरजहां लाहौर गईं और वहां भी स्टेज शो किया.कहते हैं कि स्टेज शो के दौरान नूरजहां के गाने सुनने के लिए लोग टूट पड़ते थे.

कलकत्ता और नूरजहां का स्टेज शो

कलकत्ता में एक थे दीवान सरदारी लाल.यह 1930-31का दौर था.दीवान सरदारी लाल की अपनी एक थिएटर कंपनी थी कलकत्ता में, जहां साइलेंट फिल्में बनती थीं.दीवान सरदारी लाल लाहौर जाकर भी फिल्में बनाते थे.उनकी थिएटर कंपनी का नाम था 'दीवान पिक्चर्स'.‌ वे कलकत्ता में स्टेज शो भी करते थे.कहते हैं कि दीवान सरदारी लाल ने जब पाकिस्तान में पहली दफा नूरजहां को गाते हुए सुना, तो उनके अब्बा को बुलाकर समझाया - 'आप अपनी बेटी को लेकर फौरन कलकत्ता शिफ्ट कर जाए.'

इस तरह नूरजहां का पूरा परिवार कलकत्ता शिफ्ट हुआ

दीवान सरदारी लाल की सलाह पर नूरजहां के अब्बा इमदाद अली कलकत्ता आ गए अपने पूरे परिवार को लेकर.‌ इतिहास को खंगालने पर पता चलता है नूरजहां के अब्बा इमदाद अली, अम्मी फतेह बीवी, बेबी नूरजहां की दो बड़ी बहनें - इदन बाई और हैदर बांदी भी साथ आई थीं.तीनों बहनें कलकत्ता में स्टेज शो करने लगीं.तीनों ने स्टेज शो पर गाना गाकर खूब नाम कमाया.

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ड्रामानिगार आगा हश्र कश्मीरी की बीवी मुख्तार बेगम ने दी लाहौर जाने की सलाह

एक दफा कलकत्ता में नूरजहां को गाते हुए सुना गायिका मुख्तार बेगम ने.मुख्तार बेगम ड्रामानिगार आगा हश्र कश्मीरी की बीवी थीं और कलकत्ता की रहने वाली थीं.मुख्तार  बेगम पकिस्तान की मशहूर गायिका फरीदा खानम की बड़ी बहन भी थीं.नूरजहां को सुनने के बाद मुख्तार बेगम ने भी कहा, 'सुनो बेबी नूरजहां, तुम्हारी जगह लाहौर है.तुम लाहौर चली जाओ.' इस तरह नूरजहां बाद में लाहौर चली गई.

पति शौकत हुसैन रिजवी से कलकत्ता में हुआ था नूरजहां का परिचय

नूरजहां अपने माता-पिता की आठवीं संतान थीं.नूरजहां का परिवार कलकत्ता में 1930 से 1938 तक रहा.बाद में नूरजहां पाकिस्तान चली गई.कलकत्ता में रहने के दौरान नूरजहां का परिचय एक रोज़ शौकत हुसैन रिजवी से हुआ.शौकत हुसैन रिजवी कलकत्ता में 'मदान थिएटर' में प्रोजेक्टर सहायक की नौकरी करते थे.

इस थिएटर में नूरजहां भी काम की तलाश में आती-जाती थी.बाद में शौकत हुसैन रिजवी से नूरजहां का प्रेम हो गया.तब तक रिजवी 'मदान थिएटर' में डायरेक्टर बन गए थे.वर्ष 1941में शौकत हुसैन रिजवी लाहौर चले गए, साथ में नूरजहां भी लाहौर गईं। और दोनों ने लाहौर में शादी कर ली.

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आजमगढ़ से कलकत्ता नौकरी करने आए थे शौकत हुसैन रिजवी

लाहौर के बड़े फिल्मकारों में से एक शौकत हुसैन रिजवी मूलतः उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ के रहने वाले थे.काम की तलाश में कलकत्ता आए थे.सिनेमा की लाइन में रिजवी को काम क्या मिला, वह नूरजहां के होकर रह गए.शौकत हुसैन रिजवी ने सन् 1942में एक फिल्म बनाई थी 'खानदान', जिसमें प्राण और नूरजहां ने अभिनय किया था.वर्ष 1944में लाहौर में शौकत हुसैन रिजवी और नूरजहां ने शादी की.वर्ष 1953में दोनों में तलाक भी हो गया.

शौकत हुसैन रिजवी भी गए और साल 2000 में नूरजहां भी

शौकत हुसैन रिजवी की मौत 85 वर्ष की उम्र में 19 अगस्त, 1999 को लाहौर में हुई और 'आवाज़ दे कहां है'  गाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम'  नूरजहां भी 74 साल की उम्र में 23 दिसंबर, 2000 को करांची में चल बसीं.