उस्ताद गुलाम अली: सारंगी की आवाज़ में मुगल इतिहास की गूंज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-07-2024
Ustad Ghulam Ali
Ustad Ghulam Ali

 

सुमना मुखर्जी / नई दिल्ली

अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर अपने महल की दीवारों से गूंजती सारंगी की धुन में खो जाते थे. दरबारी संगीतकार उस्ताद हैदर बख्श और उस्ताद बादल खान ने बादशाह के पसंदीदा वाद्य पर मधुर धुनें तब भी बजाईं, जब साम्राज्य अपनी चमक और पकड़ खो रहा था.

आज के प्रसिद्ध सारंगी वादक और गायक उस्ताद गुलाम अली अपने दो महान गुरुओं को याद करते हैं, जिन्होंने सारंगी बजाकर इस अंतिम मुगल बादशाह की बेचैन नसों को शांत किया था.

सोनीपत-पानीपत घराने के उत्तराधिकारी गुलाम अली ने आवाज-द वॉयस से कहा, ‘‘अकेले बादशाह बहादुर शाह जफर सारंगी की मधुर धुनों में सुकून पाते थे. उन्होंने इसे बजाना भी सीखा था. बहादुर शाह जफर सारंगी की मधुर धुनों के दीवाने थे और मुगल साम्राज्य के सबसे बुरे दौर में यह उनके लिए जीवन रेखा थी.’’

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अपने गुरु उस्ताद फयाज खान द्वारा अपने गुरुओं (जो बहादुर शाह जफर के दरबार में थे) के बारे में उन्हें बताई गई कहानियों को सुनाते हुए उस्ताद गुलाम अली ने कहा कि मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर सारंगी से प्यार करते थे. उन्होंने कहा, ‘‘यह 300 से अधिक वर्षों के मुगल साम्राज्य का सबसे बुरा दौर था और अंतिम शक्तिशाली शासक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ने की पूरी कोशिश कर रहा था. मुगल दरबार पर अंग्रेजों का कब्जा होने वाला था. गिरते साम्राज्य के बीच, सम्राट के लिए एकमात्र सांत्वना संगीत था.’’

उस्ताद गुलाम अली ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘‘यह केवल राजघरानों की सारंगी के संबंध के बारे में नहीं है, बल्कि मानव आत्माओं के साथ भी है. यही कारण है कि हम सारंगी की तुलना मानव आवाज से करते हैं और शायद यही कारण है कि यह वाद्य किसी का साथी बन सकता है. मैं मुगल बादशाह की वास्तविक जीवन की कहानी से बहुत प्रभावित हूं, जिन्होंने सारंगी को अपना साथी माना था. जब मैं उस युग के बारे में सोचता हूं, तो मुझे बहुत रोमांच होता है और मैं चाहता हूं कि मैं मुगल दरबार के उन संगीतकारों में से एक हो पाता.”

उस्ताद गुलाम अली ने 3 साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था. उन्होंने एक साक्षात्कार में आवाज-द वॉयस को बताया, “मेरे पिता और दिल्ली घराने के एक प्रसिद्ध सूफी गायक उस्ताद ताजुद्दीन खान, मेरे पहले गुरु और मेरी प्रेरणा थे.”

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अली बताते हैं, “मैं सारंगी के 500 साल पुराने सोनीपत-पानीपत घराने का उत्तराधिकारी हूं, जिसका नाम बदलकर ब्रिटिश काल के दौरान सारंगी के पुराने स्कूल के रूप में रखा गया था. सौरंगी सारंगी का पुराना नाम था और पंजाब इसका जन्मस्थान था. आप इसे एक जादुई वाद्य यंत्र कह सकते हैं, जो हर तरह के गायन के साथ उपयुक्त है.”

उन्होंने अपने दादा उस्ताद नियाज अहमद खान की कहानी सुनाई, जो चाहते थे कि वे एक महान संगीतकार बनें जो विरासत को आगे बढ़ा सके. उन्होंने कहा, “एक बार एक प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद वजीर हुसैन खान एक स्टाफ सारंगी कलाकार के रूप में आकाशवाणी दिल्ली में शामिल हुए.

मेरे दादा खान साहब भी गायक थे और वहीं उनकी मुलाकात उनसे हुई. उन्होंने उस्ताद वजीर हुसैन खान से मुझे सारंगी सिखाने का अनुरोध किया और ‘गंडा बंधन’ (शिक्षक और छात्र के बीच संबंध) की शुरुआत की. यह उनकी एकमात्र रुचि के कारण ही था कि मैं सारंगी सीख सका.”

उस्ताद गुलाम अली पिछले 5 दशक से एकल संगीतकार के रूप में सारंगी बजा रहे हैं और उनके परिवार की 17वीं पीढ़ी असीम दक्षता के साथ सारंगी बजा रही है, जिसकी तुलना देश के किसी अन्य घराने से नहीं की जा सकती. सारंगी के इस पुराने घराने की क्या खासियत है?

उस्ताद गुलाम अली ने कहा, ‘‘हमारे पुराने घराने में चार अंगुलियों का इस्तेमाल होता था, सारंगी की गहरी धुन सबसे आकर्षक चीज है और ढाई तान और फिरत की तान दोनों ही प्रख्यात संगीतकारों के बीच बहुत मशहूर हैं.’’

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संगीतकार के तौर पर अपने जीवन के सबसे सुखद पल के बारे में पूछे जाने पर उस्ताद गुलाम अली ने कहा, ‘‘जब मैं एक नवोदित कलाकार था, तो मैं बेगम अख्तर के शो के दौरान नौशाद जी से मिलने में भाग्यशाली रहा. उन्होंने मेरे काम की सराहना की और मुझ पर अपनी कृपा बरसाई. मैं ईश्वर का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे जीवन भर के लिए एक पल दिया.’’

उन्होंने ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ और ‘दंगल’ जैसी फिल्मों के लिए बैकग्राउंड म्यूजिशियन के तौर पर भी काम किया और सारंगी के विशेष एपिसोड के लिए सा रे गा मा, इंडियन आइडल, राइजिंग स्टार, द वॉयस ऑफ इंडिया जैसे रियलिटी म्यूजिक शो में सारंगी वादक के तौर पर भी हिस्सा लिया.

उस्ताद अली ने आवाज-द वॉयस को बताया कि उन्हें दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में से फ्रांस सबसे खूबसूरत देश लगा. वे कहते हैं, ‘‘मुझे फ्रांस की शांति बहुत पसंद आई, खासकर लियोन और लूट्स जैसी जगहें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह स्थान बहुत शांत था और वहां की शांति उन्हें धरती पर स्वर्ग बनाती थी और कैथोलिक चर्च में जीसस की एक सुंदर मूर्ति थी, जो बेमिसाल थी. मेरा सबसे सुखद अनुभव एफिल टॉवर के सिथ फ्लोर पर सारंगी बजाना था. मैं वहां आमंत्रित एकमात्र सारंगी वादक था और वहां बजाने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दुनिया का राजा हूं.’’

उनके लिए संगीत एक महासागर की तरह है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपनी सारंगी की वास्तविक गहराई को समझने की कोशिश कर रहा हूं. इसलिए, यह एक कभी न खत्म होने वाली खोज है और मैं अंत तक इसे जारी रखूंगा.’’