10वां कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल: मुस्लिम देशों की बढ़ती दिलचस्पी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 01-02-2024
10th Kolkata International Children's Film Festival: Increasing interest from Muslim countries
10th Kolkata International Children's Film Festival: Increasing interest from Muslim countries

 

जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता

बच्चों के संसार में किसे जाने का मन नहीं करता, 'इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल' ऐसी ही एक बेहतरीन जगह है. कोलकाता में 25 से 29 जनवरी, 2024 तक चले 10 वें कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल में शामिल देसी-विदेशी फिल्मों को देखकर ये कहा जा सकता है कि  मुस्लिम देशों से भी चिल्ड्रेन फिल्मों ने कोलकाता के दर्शकों (जिनमें स्कूली बच्चे ज्यादा थे) का सबसे ज्यादा ध्यान खींचा. ऐसे मुस्लिम देशों में ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई),  इंडोनेशिया, बांग्लादेश, तुर्की, कजाकिस्तान, किरगिजस्तान और तजाकिस्तान प्रमुख हैं.

वैसे तो इस चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल में एक से बढ़कर एक अच्छी फिल्में थीं, जो बच्चों की दुनिया में हमें सैर करा रही थीं. इसका आयोजन पश्चिम बंगाल सरकार की संस्था 'शिशु किशोर एकाडमी' ने किया था. यह इस इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का यह दसवां खंड था.
 

 

ईरान की थीं आठ फिल्में : कोलकाता के इस इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल में ईरान की आठ फिल्में थीं, जिनमें निर्देशक आफ़सीन हाशेमी की चिल्ड्रेन फिल्म 'सी ब्यॉज', मोहम्मद रेज़ा हाज़िघोलामी निर्देशित 'वॉलनट', हौसेन रिज़ी की 'हुक' और 'लिपार', मेहेदी हौसेनीवंद आलियापोर निर्देशित 'एस्टरॉयड' और निर्देशक मोख़तार अबेदोल्लाही की 'बिटविन द क्लिफ्स' प्रमुख थीं.‌

'मेहरान' और 'वुल्फ कब्स ऑफ एपल वैली' जैसी अनूठी चिल्ड्रेन फिल्म भी ईरान से थीं, जिन्हें देखने के लिए कोलकाता में बच्चों की लंबी कतार थीं. इनमें किशोर उम्र के भी कुछ थे, जो शो शुरू होने से पहले कतार में खड़े हो गए थे.

ईरानी फिल्म 'सी ब्यॉज' को देखने के लिए बच्चे टूट पड़े थे:

तेहरान के जाने-माने निर्देशक आफ़सीन हाशेमी की 95मिनट की पर्सियन ज़ुबान की चिल्ड्रेन फिल्म 'सी ब्यॉज' को देखने के लिए बच्चे टूट पड़े थे. 'सी ब्यॉज' ऐसे दो बच्चों की कहानी है, जो एक दूसरे के विपरीत दिशा में रहते हैं. एक का अब्बा नहीं है, तो दूसरे की अम्मा नहीं है.

दोनों अपने वजूद की लड़ाई लड़ते हैं और चाहते हैं एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए साथ-साथ रहकर ही विकल्प की खोज की जा सकती है. यही इस चिल्ड्रेन फिल्म की कहानी है. 12अक्तूबर, 1975को तेहरान में जन्मे आफ़सीन हाशेमी की इस चिल्ड्रेन फिल्म की सराहना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है. हाशेमी खुद भी एक काबिल एक्टर रहे हैं और अब तेहरान में रहकर बच्चों के लिए खूबसूरत फिल्में बना रहे हैं. आफ़सीन हाशेमी ने अब तक बच्चों के लिए तीन फिल्में बनाई हैं और सबकी सराहना खूब हुई है.

ईरान में बनी बच्चों की फिल्मों से कोलकाता के दर्शक अच्छी तरह वाकिफ है:

ईरान में बच्चों की दुनिया पर आधारित फिल्मों से कोलकाता के दर्शक अच्छी तरह वाकिफ है. 'द सांग ऑफ स्पैरो' (2008), 'चिल्ड्रेन ऑफ हीवेन' (1997), 'द ह्वाइट बैलून' (1995), 'सन चिल्ड्रेन' (2020) और 'टर्टल कैन फ्लाई' (2004) को कौन नहीं जानता !

ईरान की चिल्ड्रेन फिल्म 'द कलर ऑफ पैराडाइज' (1999) तो अब भी अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती है. कोलकाता के दर्शक इस चिल्ड्रेन फिल्म को अब भी अपने ज़ेहन में समेटे हुए हैं.

तीस देशों की थीं कुल 111 फिल्में

कोलकाता के आठ प्रेक्षागृहों में पांच दिनों तक चले इस 'कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल' में कुल 30देशों की 111फिल्में थीं. खुशी की बात यह थी कि बिना टिकट कटाए इन फिल्मों को बच्चे मुफ्त में देख सकते थे. साथ में बच्चों के अभिभावकों का आना जरूरी था.

बड़ी संख्या में बच्चे आए भी. मुख्य प्रेक्षागृह 'नंदन' में भारी भीड़ रही. रविवार को पांव रखने तक की जगह नहीं थी.रवींद्र सदन और शिशिर मंच प्रेक्षागृह में पांचों दिन बच्चे और उनके अभिभावकों का हुजूम दिखा. बाकी प्रेक्षागृहों का भी यही हाल रहा.

रूस, मैक्सिको, जापान व रोमानिया की थीं लाजवाब फिल्में

तीस देशों में रूस, मैक्सिको, जापान और रोमानिया की लाजवाब चिल्ड्रेन फिल्में देखने को मिलीं. भारत की फिल्में भी सुंदर थीं, जिसके केंद्र में बच्चे थे. अन्य देशों की फिल्मों में चीन, जर्मनी, स्लोवाकिया, ग्रीस, बांग्लादेश, चेक गणराज्य, फिनलैंड, तुर्की,  वियतनाम, यूएई, इंडोनेशिया, बेल्जियम, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अमेरिका, स्पेन, फ्रांस और कनाडा प्रमुख रूप से भागीदार था.  कजाकिस्तान, पोलैंड, किरगिजस्तान, और तजाकिस्तान की फिल्मों ने भी बच्चों का ध्यान खींचा. नए सिरे से 'वर्ल्ड सिनेमा' को देखना एक नया अनुभव रहा.

'शताब्दी श्रद्धांजलि' खंड के तहत मृणाल सेन व तपन सिन्हा की फिल्में भी थीं'

शताब्दी श्रद्धांजलि' खंड  के तहत मशहूर फिल्मकार मृणाल सेन की बच्चों पर बनाई गई  चिल्ड्रेन फिल्म 'इच्छापूरण' (1966) और तपन सिन्हा की शिशु आधारित फिल्में 'काबुलीवाला' (1957), 'सबुज द्वीपेर राजा' (1979),  'अनोखा मोती' (2000) और 'आज का रोबिनहुड' (1987) को देखना मजेदार रहा. भारतीय सिनेमा के 'मास्टर' माने जाने वाले मृणाल सेन और तपन सिन्हा अपने दौर में भी बच्चों की दुनिया पर सिनेमा बना रहे थे, यह वर्तमान पीढ़ी के लिए एक सबक जैसा रहा.

सत्यजित राय की 'सोनार केल्ला'  विशेष तौर पर दिखाई गई

बच्चों पर बनाई गई सत्यजित राय की मशहूर फिल्म 'सोनार केल्ला' (1974) विशेष तौर पर इस अंतरराष्ट्रीय शिशु फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई. इस बांग्ला शिशु फिल्म को बने 50वर्ष पूरे हो रहे हैं. इसके अलावा सत्यजित राय की 'जय बाबा फेलुनाथ' (1979) भी दिखाई गई. यह एक जासूसी कथानक पर आधारित फिल्म है, जो आखिर तक बच्चों से बड़ों तक को बांधे रखती है.

उद्घाटन फिल्म थीं नेपाली भाषा की 'गुडास':

दसवें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय शिशु फिल्म महोत्सव की उद्घाटन फिल्म थीं 'गुडास' (2023).‌ 'गुडास' एक ऐसी बच्ची की कथा है, जिसका प्यारा-सा कुत्ता एक दिन खो जाता है. यह शिशु फिल्म उसी कुत्ते की तलाश की कथा कहता है. दार्जिलिंग की पहाड़ियों में‌ वह बच्ची अपने प्यारे कुत्ते को किस तरह तलाशती है, यह फिल्म उस बच्ची के संघर्ष और उसकी जिजीविषा की कहानी सुनाती है.‌

इस शिशु फिल्म 'गुडास' को चेक गणराज्य के 'कार्लोवी बेरी अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव' में जूरी का पुरस्कार मिल चुका है. सौरभ राय इस फिल्म 'गुडास' के निर्देशक हैं. सौरभ राय ‌ने कोलकाता के 'सत्यजित राय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान' से सिनेमा की पढ़ाई की है. सौरभ राय की इस फिल्म 'गुडास' को बुसान (दक्षिण कोरिया) और म्यूनिख (जर्मनी)  अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिल‌ चुका है.‌ यह बताता है सौरभ राय एक दक्ष फिल्म निर्देशक हैं.

36 लघु व डाक्यूमेंट्री फिल्में भी थीं इस चिल्ड्रेन फिल्मोत्सव में : इस दसवें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय शिशु फिल्म फेस्टिवल में कुछ छोटी ‌और डाक्यूमेंट्री फिल्में भी दिखाई गईं, जिन्हें देखना सिनेमा की एक दूसरी दुनिया से ही गुजरने जैसा था. इसी क्रम में कुछ ऐसी शिशु फिल्में भी थीं, जिन्हें राष्ट्रपति का पुरस्कार मिल चुका है. ऐसी फिल्मों में 'गांधी एंड को., 'सूमी', 'लास्ट फिल्म शो', 'डीएचएच' प्रमुख थीं.

'मास्टर क्लास' भी हुआ

इस दसवें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'मास्टर क्लास' भी हुआ, जिसमें अमोल गुप्ते, रोमी मैतेई, मोहन अगाशे और प्रवीण कृपाकर  जैसे फिल्मकार दर्शकों से रूबरू हुए और सिनेमा पर अपना ज्ञानवर्धक व्याख्यान सुनाया.

समापन फिल्म थीं कर्नाटक की 'तालेडांडा'

इस शिशु  अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में समापन फिल्म थीं कर्नाटक की 'तालेडांडा'. प्रवीण कृपाकर निर्देशित 132मिनट की यह खूबसूरत फिल्म अपने मुख्य पात्र के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा की कहानी बताती है. प्रवीण कृपाकर की यह पहली फिल्म है, जिसे ढ़ेर सारा पुरस्कार मिल चुका है.

इसके अलावा मणिपुर  की फिल्म 'ऑवर होम' ने भी दर्शकों का‌ ध्यान खींचा. रोमी मैतेई निर्देशित 'ऑवर होम' को भी अब तक अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं. यह फिल्म भी पर्यावरण ‌और विस्थापित जिंदगी की कहानी सुनाती है एक बच्चे के माध्यम से.

रोमी मैतेई की यह फिल्म 'ऑवर होम' शहरी विकास का भी मजाक उड़ाती है और यह बताती है शहरी विकास एक 'नकली विकास' है, जो पर्यावरण को उजाड़ कर किया जा रहा है.

कुछ एनीमेशन और कुछ हॉलीवुड क्लासिक भी बच्चों ने देखा

इस दसवें कोलकाता शिशु अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में बच्चों ने कुछ बेहतरीन एनीमेशन और कुछ हॉलीवुड क्लासिक फिल्में भी देखीं. इन एनीमेशन फिल्मों में रूस की 'द एवर लास्टिंग स्टोरी', फ्रांस की 'लिटिल वैंम्पायर' और अमेरिका की 'एनकांटो' को देखना लाजवाब था. हॉलीवुड क्लासिक के तहत 'मेरी पॉपिंस', 'ईटी-एक्स्ट्रा-टेरेस्ट्रियल,, 'द गूंस', 'कैस्पर', 'बॉबे', 'लाइफ आफ पॉई' और 'वंडर' दिलचस्प रहा.

'सिनेमा ऑफ द वर्ल्ड' ने दर्शकों को लुभाया:

सिनेमा ऑफ द वर्ल्ड खंड के तहत भी कुछ अच्छी फिल्में थीं. निर्देशक बॉब मार्शल की 'द लिटिल मरमेड' (कनाडा/अमेरिका), 'ब्लाजम इन‌ द माउंटेन' (चीन), 'गॉड्स गिफ्ट' (किरगिजस्तान) और रूस की 'चिक्स चाइल्डहुड' बेहतरीन फिल्में थीं.

एनिमेशन फीचर में दक्षिण अफ्रीका की 'खुंबा', अमेरिका की 'इनसाइड आउट' और 'इनक्रैडिबल 2' दिलो-दिमाग को जैसे स्पर्श करके आगे बढ़ गई. यह दसवां कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल काफी दिलचस्प रहा.