देशज पसमांदा विभूति पद्मश्री मोहम्मद रफी की 100वीं जयंती: पीएम मोदी की संगीत के जादूगर को सम्मानित करने की सराहनीय पहल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-03-2025
100th Birth Anniversary of Desi Pasmanda Vibhuti Padmashree Mohammad Rafi: PM Modi's commendable initiative to honour the magician of music
100th Birth Anniversary of Desi Pasmanda Vibhuti Padmashree Mohammad Rafi: PM Modi's commendable initiative to honour the magician of music

 

faziडॉ फैयाज अहमद फैजी

हाल ही में, भारत सरकार ने गायन के क्षेत्र में मोहम्मद रफी के योगदान को सम्मानित करते हुए उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर ₹100 का स्मारक सिक्का जारी करने की घोषणा की है. यह घोषणा संगीत और फिल्मी दुनिया के साथ-साथ देशज पसमांदा समाज के लिए एक गौरवपूर्ण और भावुक क्षण है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रफी जी को उनके 100वें जयंती पर संगीत का अद्भुत जादूगर कहकर श्रद्धांजलि दी थी. प्रधानमंत्री ने ग्रीक बच्ची और उसके परिवार द्वारा रफी जी के गीत "मधुबन में राधिका नाचे रे" का वीडियो साझा करके पूरे भारत को भाव-विभोर कर दिया था.

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यह भी स्मरणीय है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रफी जी को अपने घर बुलाकर उनसे "सुनो सुनो ए दुनिया वाले बापू की अमर कहानी" गवाया था और उन्हें सम्मानित किया. एक बार एक इवेंट में जब पंडित नेहरू भी मौजूद थे, रफी जी ने "चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे" गाया, तो नेहरू जी की आंखों में आंसू आ गए थे.

पद्मश्री रफी  की नाई की दुकान से स्वप्न नगरी मुंबई तक की अद्वितीय यात्रा एक प्रेरणादायी कहानी है. मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को पंजाब के अमृतसर जिले के गांव कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था. उन्हें घर में सब प्यार से "फिक्को" बुलाते थे.

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रफी  के गायन की शुरुआत एक फकीर से प्रेरित होकर हुई थी, जिसे वे बचपन में रोज सुनते थे. 7 या 9 साल की उम्र में रफी का परिवार लाहौर में रहने आया.

यहां रफी जी को उनके पिता ने अपने बड़े भाई के साथ नाई की दुकान में काम करने के लिए लगा दिया. वे दुकान में बाल काटते हुए गाने गाते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

एक दिन पंडित जीवनलाल ने रफी  की आवाज को सुना और उन्हें पंजाबी संगीत की ट्रेनिंग दी, जिससे उनका गायन कला में निखार आया.

रफी  ने 13 साल की उम्र में लाहौर में पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन किया. इस अवसर पर गायक के एल सहगल भी मौजूद थे, जिन्होंने रफी की आवाज को सुनकर भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का एक दिन बड़ा गायक बनेगा.

रफी  ने अपनी गायन यात्रा में रोमांटिक गाने, भजन, कव्वाली, हास्य गीत, ग़ज़ल, शास्त्रीय रचनाएं, देशभक्ति के गीत और नशे में डूबे नायक के गाने तक, हर शैली में अतुलनीय कलात्मकता और निपुणता का परिचय दिया. वे हिंदी समेत लगभग 13 भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी सहित सात विदेशी भाषाओं में गाते थे.

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रफी  का गाया हुआ गीत "मन तड़पत हरि दर्शन को आज" एक कालजयी रचना मानी जाती है, जिसमें शायर शकील बदायूनी और संगीतकार नौशाद भी पसमांदा समाज से आते थे.

रफी  अपनी परोपकारी कृतियों और दयालु व्यक्तित्व के लिए भी प्रसिद्ध थे.

वे हमेशा दूसरों की मदद करते थे, जैसे कि उन्होंने अपनी पड़ोसी विधवा महिला को मनीऑर्डर से पैसे भेजे थे.

हालाँकि, उन्हें अपने जीवन में कई बार ऊंच-नीच का सामना भी करना पड़ा.

एक बार पाकिस्तान में एक प्रसिद्ध गायक ने रफी  का अपमान किया था, लेकिन रफी  ने इसे अनदेखा कर दिया और फिर कभी पाकिस्तान नहीं गए.

इसी तरह, इंदौर में पुरानी पलासिया मस्जिद के निर्माण के लिए दिए गए ₹5000 के दान को मस्जिद प्रशासन ने वापस कर दिया था, क्योंकि उन्हें रफी की कमाई को "नापाक" माना गया था।.रफी  ने इस पर कहा था कि "अगर मेरी कमाई नापाक है, तो अल्लाह ही जानता है कि किसकी कमाई जायज है और किसकी नाजायज."

31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी  का निधन हो गया. उनका निधन भारत और दुनिया भर के संगीत प्रेमियों के लिए अपूरणीय क्षति थी. उनके अंतिम दर्शन और शवयात्रा में अपार जनसमूह उमड़ा था.

भारत सरकार ने उनके निधन पर दो दिनों का सार्वजनिक शोक घोषित किया था.

रफी की याद को हमेशा जीवित रखने के लिए ₹100 का स्मारक सिक्का जारी करना उनकी 100वीं जयंती पर एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

(लेखक पेशे से चिकित्सक और पसमांदा मामलों के जानकार हैं)