जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
हिंदुस्तानी सिनेमा के सबसे काबिल अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को सुनना सचमुच अच्छा लगता है.कोलकाता के 'नंदन' प्रेक्षागृह में हाल में नसीरुद्दीन शाह ने श्याम बेनेगल और उनकी सबसे कामयाब फिल्मों में से एक 'मंथन' (1976) की विशेष स्क्रीनिंग के मौके पर दिल खोलकर अपनी बातें रखीं.उन्होंने कहा - 'मंथन' फिल्म हमेशा ज़ेहन में रहेगी.इसे भूल पाना मुश्किल है.
उन्होंने आगे कहा - श्याम बेनेगल के प्रति मैं हमेशा ग्रेटफुल रहूंगा.उनकी 'मंथन' को कभी नहीं भूल सकता.जन-सहयोग (क्राउड फंडिंग) से बनीं 'मंथन' में श्याम बाबू ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थीं.गुजरात के खेड़ा जिले के आनंद गांव के पांच लाख किसानों ने दो-दो रुपए चंदा दिए, तब जाकर 'मंथन' पूरी हुई.यह सलाह भी श्याम बेनेगल को 'भारत के मिल्क मैन' कहे जाने वाले डॉ वर्गीज कुरियन ने दी थीं.
पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) दोनों से अभिनय का प्रशिक्षण लेकर निकले नसीरुद्दीन शाह कहते हैं - जब 'मंथन' की शूटिंग हो रही थीं, तो मैं एकदम युवा था.पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़कर निकला भी नहीं था कि श्याम बेनेगल ने अपनी इस महत्वाकांक्षी फिल्म के लिए मुझे चुन लिया.'
75 वर्षीय नसीरुद्दीन शाह ने कहा - यह श्याम बाबू के साथ मेरी दूसरी फिल्म थीं.इससे पहले वर्ष 1975में 'निशांत' किया था.वो कहते हैं - 'मंथन' फिल्म की शूटिंग के दिनों को भूल नहीं पाता.वो गुजराती पायजामा, वो कुर्ता और माथे पर पगड़ी सब कुछ याद है। गुजराती लहजा भी अभी तक ज़ेहन में है.हाथ में रखा वह डंडा भी याद है.
नसीरुद्दीन शाह कहते हैं - 'मंथन' को याद करता हूं, तो उस गुजराती गांव का चेहरा और 'मंथन' से जुड़े लोग याद आते हैं.उन्होंने कहा - हिंदुस्तान में सफेद क्रांति (ह्वाइट रिवोल्यूशन) के जनक डॉ वर्गीज कुरियन की प्रेरणा से 'मंथन' बनी थीं.श्याम बाबू और कुरियन ने मिलकर 'मंथन' की कहानी लिखी थीं.
बाद में कैफ़ी आज़मी ने इस फिल्म के संवाद लिखे। बजट था 'मंथन' का दस लाख। उस ज़माने में इतने रुपए बहुत होते थे.श्याम बाबू असमंजस में थे, तभी डॉ वर्गीज कुरियन ने 'क्राउड फंडिंग' की तरकीब सुझाई। और 'मंथन' का काम शुरू हो गया.
सहकारी संस्था 'गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड' के बैनर तले बनी यह फिल्म आर्थिक दृष्टि से भी बेहद कामयाब है.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट नसीरुद्दीन शाह कहते हैं - सही मायने में यह हिंदुस्तान की रियलिस्टिक फिल्म है.'मंथन' को बने लगभग 50साल होने को है.
जर्मनी, इटली, स्वीडन सब जगह 'मंथन' दिखाई और सराही गई.अब तो 'मंथन' का रिस्टोर वर्जन भी आ गया है.कॉन अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'मंथन' का प्रदर्शन हुआ.
उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले में 20जुलाई, 1950को जन्मे नसीरुद्दीन शाह ने कहा - यह उम्मीद करना कि सिनेमा से चेंज आता है गलत है.मैं इन सब बातों पर यकीन नहीं करता.सिनेमा से हमारा माइंडसेट भी नहीं बदलता.असल में सिनेमा हमारे भीतर उम्मीद जगाता है और समाज की सच्ची तस्वीर सामने लाती है.
बाराबंकी के नवाब खानदान से ताल्लुक रखने वाले अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा - शुरू में 'मंथन' डॉक्यूमेंट्री की शक्ल में थीं.गोविंद निहलानी ने इसका छायांकन किया और वनराज भाटिया ने संगीत दिया था.लेकिन जब 'मंथन' एडिटिंग टेबल पर आई, तो इस फिल्म का कायाकल्प हुआ.जिंगल गाने वाली प्रीति सागर को श्याम बेनेगल ने फिर से ढूंढ़ा.
प्रीति कभी श्याम बेनेगल के कामर्शियल फिल्मों के लिए अपनी आवाज़ देती थीं.फिर उसकी बहन नीति सागर ने 'मंथन' के लिए एक खूबसूरत गीत लिखा 'मेरो गाम काथा पारे।' संगीतकार वनराज भाटिया को फिर से बुलाया गया और गीत की रिकार्डिंग हुई.उसके बाद 'मंथन' ने दूसरा शेप लिया.
वर्ष 1977में 'मंथन' को दो-दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले.एक राष्ट्रपति पुरस्कार निर्देशक श्याम बेनेगल को मिला सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए और दूसरा राष्ट्रपति पुरस्कार विजय तेंदुलकर को मिला 'मंथन' में सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिए.इस फिल्म के लिए गायिका प्रीति सागर को भी फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.
सौ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुके नसीरुद्दीन शाह के साथ 'मंथन' में स्मिता पाटिल, गिरीश कर्नाड, अमरीश पुरी, कुलभूषण खरबंदा, साधु मेहर और सविता बजाज ने भी काम किया था.नसीरुद्दीन ने कहा - सभी का साथ यादगार रहा। उस वक्त गिरीश कर्नाड पुणे के फिल्म संस्थान में मेरे टीचर भी थे.
उन्होंने कहा - इन सभी को भुला पाना मुश्किल है.श्याम बेनेगल ने 'मंथन' में मुझे जो मौका दिया, वह तो भूल ही नहीं सकता। श्याम बाबू के लिए मैं हमेशा ग्रेटफुल रहूंगा.