पायल कपाड़िया की 'आल वी इमैजिन ऐज लाइट' ने बढ़ाया भारतीय सिनेमा का गौरव

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-12-2024
Payal Kapadia's 'All We Imagine As Light' gets two nominations in Golden Globe, Indian cinema gets more pride
Payal Kapadia's 'All We Imagine As Light' gets two nominations in Golden Globe, Indian cinema gets more pride

 

अजित राय

भारत की युवा फिल्मकार पायल कपाड़िया की पहली हीं फिल्म ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट ' ने वैश्विक स्तर पर इतिहास रच दिया.इस बार प्रतिष्ठित मुंबई फिल्म समारोह मामी की यह ओपनिंग फिल्म रही.हालांकि भारत के 55 वे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह गोवा में इसे विश्व सिनेमा खंड में दिखाया गया.

दुनिया भर के फिल्म समारोहों में भारी प्रशंसा बटोरने के बाद इसे नवंबर के आखिरी हफ्ते में भारतीय सिनेमा घरों में प्रदर्शित किया गया.भारत से आस्कर अवार्ड में भेजे जाने की प्रतियोगिता से बाहर होने के सदमे से अभी हम सब उबरे भी नहीं थे कि इस फिल्म को प्रतिष्ठित गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड में दो नामांकन मिल गया-विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की श्रेणी में.

पायल कपाड़िया गोल्डन ग्लोब अवार्ड में नामांकित होने वाली पहली महिला फिल्मकार बन गई.आस्कर अवार्ड में भारत की ओर से आधिकारिक प्रविष्टि भेजने वाली फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की जूरी के अध्यक्ष जाह्नू बरुआ का बयान छपा कि यह फिल्म तकनीकी रूप से कमजोर है.उनका यह बयान तब आया जब उनकी चुनी हुई किरण राव की फिल्म ' लापता लेडीज ' आस्कर अवार्ड की प्रतियोगिता से पहले ही दौर में बाहर हो गई.

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उनके बयान की प्रतिक्रिया में हंसल मेहता, सुधीर मिश्रा आदि फिल्मकारों के बयानों की बाढ़ आ गई.हालांकि यहां यह बात बता दें कि इस मामले से भारत सरकार का कुछ भी नहीं लेना देना है.इस बीच पायल कपाड़िया के लिए दो खुश खबरी आई.

पहली यह कि चूंकि उनकी फिल्म अमेरिका में प्रदर्शित हो गई है, लिहाजा वह स्वतंत्र रूप में 97 वे आस्कर अवार्ड के मुख्य प्रतियोगिता खंड की कई श्रेणियों में शामिल हो गई है.दूसरे, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जानेवाली पसंदीदा फिल्मों की सूची में ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट ' पहले नंबर पर है.

इस साल 77 वें कान फिल्म समारोह में पायल कपाड़िया की हिंदी मलयाली फिल्म ' आल वी इमैजिन ऐज लाइट ' ने न सिर्फ मुख्य प्रतियोगिता खंड में जगह बनाई वल्कि बेस्ट फिल्म का पाल्मा डोर के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार ग्रैंड प्रिक्स भी जीत कर इतिहास बना दिया.

तीस साल बाद किसी भारतीय फिल्म ने मुख्य प्रतियोगिता खंड में जगह बनाई थी.इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ' स्वाहम ' प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी.इसके बारे में काफी कुछ दुनिया भर में आज तक लिखा जा रहा है.

उस समय पश्चिम के कई मशहूर फिल्म समीक्षकों का मानना था कि यदि यह फिल्म भारत में आस्कर पुरस्कार के लिए भेजी जाती है तो इसके जीतने की काफी संभावना है.माना जा रहा था कि पायल कपाड़िया की फिल्म बेस्ट इंटरनेशनल फिल्म की श्रेणी में आस्कर पुरस्कार जीत सकती है.

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 ' डेट लाइन ' , ' वैरायटी ', ' बालीवुड रिपोर्टर ', स्क्रीन इंटरनेशनल ' आदि दुनिया की कई मशहूर फिल्म पत्रिकाओं में इस आशय के यहां लेख भी छपे थे.इसकी मुख्य वजह यह है कि इधर  कान फिल्म समारोह और आस्कर पुरस्कारों के बीच कुछ साझेदारी बढ़ रही है.

पिछले कई सालों से लगातार आस्कर पुरस्कारों में कान फिल्म समारोह की फिल्मों के करीब दो दर्जन से अधिक नामांकन हुए हैं.उसी तरह कान फिल्म समारोह में लगातार हालीवुड और अमेरिकी सिनेमा का वर्चस्व बढ़ा है.आस्कर अवार्ड की जूरी में वोट देने वाले करीब सात हजार वोटर पहले ही कान, बर्लिन, वेनिस जैसे फिल्म समारोहों में इन फिल्मों को देख चुके होते हैं इसलिए इन फिल्मों के अवार्ड जीतने की संभावना बढ़ जाती है.

 इसी साल टोकियो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में एक महत्वपूर्ण घटना घटी.। जापान के इस समय सबसे महत्वपूर्ण और कान में ' शाप लिफ्टर' फिल्म के लिए बेस्ट फिल्म का पाल्मा डोर जीत चुके फिल्मकार कोरेईडा हिरोकाजू ने मंच पर पायल कपाड़िया से संवाद किया.भारतीय सिनेमा के लिए यह गौरव का क्षण था.

 पायल कपाड़िया जब भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में पढ़ती थी तो 2017 में उनकी शार्ट फिल्म ' आफ्टरनून क्लाउड्स ' अकेली भारतीय फिल्म थी जिसे  70 वें कान फिल्म समारोह के सिनेफोंडेशन खंड में चुना गया था.

इसके बाद 2021 में उनकी डाक्यूमेंट्री ' अ नाइट आफ नोइंग नथिंग ' को कान फिल्म समारोह के' डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुना गया था और उसे बेस्ट डाक्यूमेंट्री का गोल्डन आई अवार्ड भी मिला था.  लेकिन इस साल  77 वें कान फिल्म समारोह में पायल कपाड़िया ने इतिहास रच दिया था क्योंकि वे यहां ' गाडफादर ' जैसी कल्ट फिल्म बनाने वाले फ्रांसिस फोर्ड कपोला, आस्कर विजेता पाउलो सोरेंतिनों, माइकल हाजाविसियस और जिया झंके, मोहम्मद रसूलौफ, अली अब्बासी, जैक ओदियार डेविड क्रोनेनबर्ग जैसे विश्व के दिग्गज फिल्मकारों के साथ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी.

कान के ग्रैंड थियेटर लूमिएर में इस फिल्म के स्वागत में काफी देर तक खड़े होकर दर्शकों ने ताली बजाई थी.पायल कपाड़िया के साथ छाया कदम, कनी कस्तूरी और दिव्य प्रभा पुरस्कार लेने मंच पर जब एक साथ भारत की पारंपरिक वेशभूषा रंगीन साड़ी में आईं तो ऐसा लगा जैसे कि भारत की स्त्री शक्ति का सम्मान हो रहा है.

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          आल वी इमैजिन ऐज लाइट

मुंबई में नर्स का काम करने वाली केरल की दो औरतों प्रभा और अनु की कहानी है जो एक रूम किचेन ( वन आर के)  साझा करती हैं.फिल्म में मुख्य भूमिकाएं तीन अभिनेत्रियों - कनी कुसरुती, दिव्य प्रभा और छाया कदम -  ने निभाई है.

रणबीर दास का छायांकन बहुत उम्दा है.अपने फोकस से कभी भटकता नहीं है.मुंबई की भीड़, आसमान, बादल बारिश हवा और समुद्र के साथ इस पास की आवाजें भी रणबीर दास के कैमरे से होकर जैसे फिल्म के असंख्य चरित्रों में बदल जाते हैं.

सुदूर केरल से नर्स की नौकरी करने मुंबई आई दो औरतों का बहनापा बेजोड़ है.एक छोटे से कमरे में दोनों की साझी गतिविधियां एक भरा पूरा संसार रचती है.बड़ी नर्स प्रभा जब तक कुछ समझ पाती, उसके घरवालों ने उसकी शादी कर दी.

शादी के तुरंत बाद ही उसका पति जर्मनी चला गया और उसने प्रभा की कभी खोज खबर नहीं ली.प्रभा को इंतज़ार है और उम्मीद भी कि एक दिन उसका पति वापस लौटेगा.उसके अस्पताल का एक मलयाली डाक्टर उसकी ओर आकर्षित होता है पर प्रभा इनकार कर देती हैं.

दोनों औरतें चौक जाती हैं जब एक दिन जर्मनी से एक पार्सल आता है.जाहिर है प्रभा के पति ने उसे सालों बाद कोई उपहार भेजा है.छोटी नर्स अनु केरल से मुंबई आए एक मुस्लिम लड़के शियाज से प्रेम में पड़ जाती है.वह इस भीड़ भरे शहर में उससे मिलने का एकांत खोजती रहती है.

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 एक दूसरी अधेड़ औरत को बिल्डर ने धोखा दे दिया है क्योंकि उसके पति के मरने के बाद उसके पास पैसे जमा कराने का कोई कागजी सबूत नहीं है.रणबीर दास का कैमरा मुंबई की भीड़ में अपने चरित्रों के इर्द-गिर्द ही फोकस रहता है.

सब्जी मंडी से शुरू करके लोकल रेलवे की आवा-जाही, रेलवे स्टेशन की भीड़ में आना जाना, भीड़ भरी सड़कों से गुजरना, छोटी सी रसोई में मछली तलना और बाथरूम में कपड़े धोना, बिस्तर पर सोते हुए शून्य को निहारना, यानि सब कुछ हम महसूस कर सकते हैं.

मुंबई में साथ रहते हुए भी अकेलापन कभी पीछा नहीं छोड़ता.पायल कपाड़िया ने फिल्म की गति को धीमा रखा है जिससे छवियां और दृश्य दर्शकों के दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ सकें.प्रकट हिंसा कहीं भी नहीं है पर जीवन में मैल की तरह जम चुके दुःख की चादर पूरे माहौल में फैली हुई है.

एक दृश्य में अनु घर की खिड़की से बादलों के जरिए अपने प्रेमी को चुंबन भेजती हैं.दूसरे दृश्य में वह अपने प्रेमी के घर जाने के लिए काला बुर्का खरीदती है.आधे रास्ते में उसके प्रेमी का मैसेज आता है कि घरवालों का शादी में जाने का प्रोग्राम कैंसल हो गया.अनु की निराशा समझी जा सकती है.पर प्रेम तो आखिर प्रेम है जो सिनेमा से बाहर जीवन में होता है.

 प्रभा और अनु उस धोखा खाई अधेड़ औरत के साथ मुंबई से बाहर एक समुद्री शहर में घूमने का प्रोग्राम बनाती है.अनु अपने प्रेमी को भी बुला लेती है कि उसे उसके साथ अंतरंग समय बीताने का मौका मिलेगा.एक दोपहर समुद्र किनारे एक बेहोश आदमी पड़ा मिलता है.

नियति इन औरतों के जीवन से रौशनी को लगातार दूर ले जा रही है.प्रभा अनु से कहती भी है कि मुंबई मायानगरी है, माया पर जो विश्वास नहीं करेगा वह यहां पागल हो जाएगा.इतने बड़े शहर में दो औरतें साथ साथ रौशनी की चाहत में हैं जबकि उनके चारों ओर अंधेरा बढ़ता जा रहा है.