मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
मशहूर फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा है कि उर्दू को जिंदा रखने में फिल्मों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी, अख्तरुल आजमी, अली सरदार जाफरी, जां निसार अख्तर जैसे उर्दू शायरों और लेखकों ने फिल्मों के लिए लिखकर उर्दू को जीवित रखने में योगदान दिया है.
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित मीर तक़ी मीर त्रिशताब्दी समारोह की चर्चा में नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस है कि उर्दू को मुसलमानों की भाषा माना जाता है. उन्होंने कहा कि जिन्ना साहब की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा बना दिया.
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां उर्दू का जन्म हुआ और बोली जाती है. उन्होंने कहा कि पंजाब का सबसे लोकप्रिय अखबार इक़बाल है जो उर्दू भाषा में प्रकाशित होता है. उन्होंने कहा कि आज भी फिल्म इंडस्ट्री में उर्दू डायलॉग लिखे और बोले जाते हैं और इसके बिना कोई भी फिल्म लोकप्रिय नहीं हो सकती.
एक अन्य सत्र में अख्तरुल वासे ने कहा कि भारत में मुस्लिम शासन 800 वर्षों तक रही. इस में फ़ारसी भाषा का राज़ 600 वर्षों तक चला. राजाओं की भाषा, चाहे वह तुर्की हो या कोई और,
लेकिन जो उनकी आम बोलचाल की भाषा थी, वह ऐतिहासिक, धार्मिक और आधिकारिक तौर पर मूल रूप से फारसी भाषा के अलावा कुछ भी नहीं थी, लेकिन यह बहुत दिलचस्प है कि खानकाहों की दुआएं और बाजारों का दबाव इस हद तक बढ़ गया कि उसने ज़िल-ए-इलाही को इस बात के लिए मजबूर किया कि वह किला- ए मुअल्ला में उर्दू को जगह दे.
सरकार को फारसी की तरह उर्दू भाषा के लिए भी उदारता दिखानी चाहिए
हिन्दुस्तान की आजादी और उर्दू व हिन्दी पर बात करते हुए अख्तरुल वासे ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को आजादी का सूरज उगते ही हिंदी देश की राजभाषा बन गई.
उर्दू के साथ कई विडम्बनाएं रही हैं, बंटवारे को लेकर कई विडम्बनाएं रही हैं, उनमें से एक ये है कि हमने उर्दू को पाकिस्तानियों के हवाले कर दिया. जिस प्रकार हिंदी भाषा सिखाने के लिए भारत से शिक्षक जाते हैं, उसी प्रकार उर्दू भाषा सिखाने के लिए भारत से शिक्षकों को विदेशों में जाना चाहिए.
हाल ही में विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि फ़ारसी भाषा को भारत की नौ शास्त्रीय भाषाओं में शामिल किया गया है, यह बहुत अच्छी बात है. यही उदारता उर्दू भाषा के लिए भी दिखानी चाहिए.
इस मौके पर नसीरुद्दीन शाह ने मीर और ग़ालिब की मशहूर शायरी भी पेश की.
यहां नसीरुद्दीन शाह के बयान के कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:
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फिल्मों ने उर्दू को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
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उर्दू को मुसलमानों की भाषा मानना गलत है.
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भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां उर्दू का जन्म हुआ और बोली जाती है.
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फिल्म इंडस्ट्री में आज भी उर्दू डायलॉग लिखे और बोले जाते हैं.
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नसीरुद्दीन शाह का यह बयान उर्दू भाषा के महत्व और इसे जीवित रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है,