'मेरे महबूब': एएमयू की तहजीब का फिल्मी पर्दे पर बखूबी चित्रण

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 17-10-2024
Understand the wonderful culture of Aligarh Muslim University through 'Mere Mehboob'
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ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

फिल्म 'मेरे मेहबूब' में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की संस्कृति का चित्रण बखूबी किया गया है. वर्ष 1963 में आई फिल्म मेरे महबूब के हिट होने में अलीगढ़ व एएमयू का अहम रोल रहा है. फिल्म में राजेंद्र कुमार और साधना का टकराना शानदार बन पड़ा था. बहुत कम लोग जानते हैं कि मायानगरी के ये दोनों धुरंधर एएमयू के स्ट्रेची हॉल की सीढि़यों पर टकराये थे. यहीं पर एक-दूसरे से किताबें बदल गई थीं.

हरमन सिंह रवैल द्वारा निर्देशित "मेरे महबूब" या माई बिलव्ड, 1963 में रिलीज़ हुई एक मुस्लिम-सामाजिक फ़िल्म थी. कहानी दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है: अनवर हुसैन अनवर, जिसका किरदार सियालकोट के 34 वर्षीय राजेंद्र कुमार ने निभाया है, और हुस्ना बानो, जिसका किरदार कराची में जन्मी 22 वर्षीय साधना शिवदासानी ने निभाया है.

मेरे महबूब फिल्म 1963 में रिलीज हुई थी और जबरदस्त सफल फिल्म साबित हुई. इसमें राजेंद्र कुमार ने अनवर नाम के युवक का किरदार निभाया है जो एएमयू का छात्र है. राजेंद्र कुमार ने इसमें एएमयू की पहचान कहे जाने वाले लिबास, शेरवानी को भी खूब पहना है.
 
एएमयू के इतिहास मामलों के जानकार डॉ. राहत अबरार कहते हैं कि फिल्म में तहजीब और नफासत दिखाने के लिए खास तौर से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को चुना गया. क्योंकि यहां के माहौल में एक अदब की फिजा है. फिल्म का एक गीत 'मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम' वीएम हाल के ऑडिटोरियम में शूट किया गया. यह भी जबरदस्त हिट साबित हुआ. 
 
 
 
फिल्म मेरे महबूब में तहजीब का रंग दिखाने के लिए एएमयू शूटिंग करने आए थे राजेंद्र कुमार
 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शानदार ऑडिटोरियम हॉल में राजेंद्र कुमार की प्रसिद्ध फिल्म मेरे महबूब की शूटिंग हुई थी. उस समय राजेंद्र कुमार भी यहां आए थे. आवासीय हॉल में रहने वाले लाइब्रेरी साइंस के शोध छात्र मोहम्मद शिकोह कहते हैं अपने बुजुर्ग सीनियर छात्रों से उन्होंने उस समय की यादों को सुना है. बहुत अच्छा लगता है यह सुनकर कि हमारा यह हॉस्टल बॉलीवुड के साथ भी जुड़ा रहा है.
 
मेरे महबूब फिल्म 1963 में रिलीज हुई थी और जबरदस्त सफल फिल्म साबित हुई। इसमें राजेंद्र कुमार ने अनवर नाम के युवक का किरदार निभाया है जो एएमयू का छात्र है. राजेंद्र कुमार ने इसमें एएमयू की पहचान कहे जाने वाले लिबास, शेरवानी को भी खूब पहना है. एएमयू के इतिहास मामलों के जानकार डॉ. राहत अबरार कहते हैं कि फिल्म में तहजीब और नफासत दिखाने के लिए खास तौर से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को चुना गया. क्योंकि यहां के माहौल में एक अदब की फिजा है. फिल्म का एक गीत 'मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम' वीएम हाल के ऑडिटोरियम में शूट किया गया. यह भी जबरदस्त हिट साबित हुआ.
 
 
कथानक
 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान, अनवर हुसैन अनवर (अनवर, एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति और कवि, और हुस्ना, एक कुलीन महिला, दोनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्र थे. विश्वविद्यालय में अपने अंतिम दिनों के दौरान, उनकी राहें एक-दूसरे से टकराईं, और वे खुद को प्यार में डूबा हुआ पाया. हालाँकि, अनवर ने हुस्ना की आँखों को सिर्फ़ देखा था, क्योंकि वह पारंपरिक बुर्के (अबाया का भारतीय संस्करण) में लिपटी हुई थी, जिससे उसका चेहरा छिप गया था. 
 
विश्वविद्यालय में अनवर के सबसे अच्छे दोस्त, बिंदादीन रस्तोगी (जॉनी वॉकर), जो एक संपन्न पृष्ठभूमि से आने वाला उच्च जाति का हिंदू था, ने सुझाव दिया कि वह विदाई समारोह में एक कविता सुनाए, इस उम्मीद में कि यह उसे उस लड़की से मिलवाएगी जिसे वह प्यार करता था लेकिन कभी नहीं देखा था.) को एक घूंघट वाली महिला से प्यार हो जाता है और वह उसे अपने दिमाग से निकाल नहीं पाता है. लखनऊ के रास्ते में, वे नवाब बुलंद अख्तर चंगेज़ी से मिलते हैं, और उसके कुछ दिनों बाद उनसे मिलते हैं ताकि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके अनवर के लिए एक पत्रिका में संपादक की नौकरी सुरक्षित कर सकें. नवाब फिर अनवर से अपनी बहन हुस्ना को कुछ कविताएँ सिखाने के लिए कहता है, जिस पर वह सहमत हो जाता है, और अंततः पाता है कि वह वही घूंघट वाली महिला है. 
 
दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं और नवाब इस रिश्ते को मंजूरी दे देता है, भले ही अनवर एक गरीब जीवनशैली जीता हो. औपचारिक सगाई समारोह होता है और जल्द ही शादी के लिए व्यवस्था की जाती है. भारी कर्ज में डूबा नवाब यह नहीं जानता कि जल्द ही वह अनवर को एक नीच वेश्या, नजमा की संगति में पाएगा; और उस पर हुस्ना की शादी अमीर मुन्ने राजा से करवाने का दबाव डाला जाएगा - जो हुस्ना की हवेली और सामान को नीलाम करने के लिए तैयार है. लेकिन अंत में हुस्ना की शादी अनवर हुसैन से हो जाती है और नवाब को अपना सारा सामान वापस मिल जाता है.
 
 
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का बॉलीवुड को योगदान 

जाहिर सी बात है बॉलीवुड की शख्सियतों का यहां से जुड़ाव रहा है. इसके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तमाम छात्रों ने अलग-अलग तरह से भारतीय सिनेमा में अपना योगदान दिया है.
 
वीएम हॉल : एएमयू का वकारुल मुल्क (वीएम) हॉल को कौन नहीं जानता. अपनी खूबसूरती के साथ-साथ यह कई अन्य चीजों के लिए भी जाना जाता है. फिल्म इंडस्ट्री में इसका भी नाम जुड़ा है. बॉक्स ऑफिस पर धूम बचाने वाली महबूब की मेहंदी का एएमयू से गहरा नाता है. इसके मुख्य गीत जाने क्यूं लोग मुहब्बत किया करते हैं की शूटिंग वीएम हॉल के ऑडिटोरियम में हुई थी. सबकी जुबान पर बसे इस गीत को मशहूर अभिनेत्री लीना चंद्रावर्कर पर फिल्माया गया था. ऑडिटोरियम की खूबसूरती देख डायरेक्टर खुद को रोक नहीं पाए थे.
 
नई उमर की नई फसल फिल्म की शूटिंग भी अलीगढ़ में हुई थी. बताया जाता है कि कठपुला के नीचे टावर के पास इस फिल्म के कुछ सीन शूट हुए. मशहूर अभिनेता भारत भूषण के भतीजे चंद्र प्रकाश गुप्ता ने यह फिल्म बनाई थी. इनके परिवार के कई लोग अब भी दुबे के पड़ाव के पास रहते हैं.
 
मुगले आजम: एएमयू के जनरल एजूकेशन सेंटर के को-ऑर्डिनेटर डा. एफएस शीरानी बताते हैं कि मशहूर फिल्म मुगले आजम के डायरेक्टर के. आसिफ पहले यहां आए. उन्होंने सर सैयद की मजार पर मत्था टेका, उसके बाद आगरा गए. उनके साथ पृथ्वीराज कपूर भी थे.
 
फिल्मों में सर सैयद: नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनएफडीसी) ने सर सैयद पर फिल्म बनाई थी. 1988 में बनी यह फिल्म सर सैयद के जीवन पर आधारित थी. इसकी पूरी शूटिंग एएमयू परिसर में हुई. 
 
 
एएमयू के ओल्ड ब्वॉय खान इश्तियाक ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया था. चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी ड्रामा सेक्शन के हेड मनोहर जोशी ने सर सैयद का रोल किया. जानी-मानी फिल्म मदर इंडिया के डायरेक्टर महबूब ने भी सर सैयद पर एक फिल्म बनाई थी. इसमें शेख मुख्तार ने सर सैयद की भूमिका निभाई थी.
 
जाने क्यूं लोग मोहब्बत. फिल्म की शूटिंग वीएम हॉल के ऑडिटोरियम में हुई थी. इसे तमाम लोग देखने आते हैं. यह ऑडिटोरियम बेहद आकर्षक है.
 
महबूब की मेहंदी फिल्म की शूटिंग ने वीएम हॉल के इस मैरिस हॉस्टल की इमारत को यादगार बना दिया. 1927 में बने इस हॉस्टल में कई यादगार प्रोग्राम हो चुके हैं.