अभिनेता इमरान खान, जो बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान के भतीजे हैं, एक दशक से फिल्मी दुनिया से दूर हैं. उनकी आखिरी फिल्म कट्टी बट्टी 2015 में रिलीज़ हुई थी. हालांकि अब वे एक बार फिर सुर्खियों में हैं—इस बार किसी फिल्म की वजह से नहीं, बल्कि आमिर खान की सुपरहिट फिल्म राजा हिंदुस्तानी पर दिए गए बयान को लेकर.
फिल्मफेयर को दिए गए एक साक्षात्कार में इमरान खान ने 90 के दशक की फिल्मों पर खुलकर बात की और बताया कि क्यों कुछ फिल्में आज के संदर्भ में 'समस्याजनक' मानी जाती हैं.
इमरान खान ने क्या कहा?
इमरान ने कहा, "90 के दशक की कई फिल्में अब वक्त के साथ पुरानी पड़ गई हैं. जब आप उन्हें आज की सोच और सामाजिक समझदारी के नजरिए से देखते हैं, तो वे असहज महसूस होती हैं. कुछ सीन ऐसे भी हैं जिन्हें देखकर लगता है कि 'ये तो गलत है, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए.'
उन्होंने आगे कहा, “राजा हिंदुस्तानी, जो उस दौर की ब्लॉकबस्टर फिल्म थी, अब देखने में काफी असहज लगती है. यह फिल्म उस समय हिट जरूर थी, लेकिन आज के मूल्यों और सोच के अनुसार वह काफी समस्याग्रस्त नजर आती है.”
आमिर खान से प्रेरणा लेते हैं इमरान
हालांकि इमरान ने यह भी स्वीकार किया कि वे अपने मामा आमिर खान को हमेशा अपना आदर्श मानते आए हैं—चाहे वह पेशेवर हो या व्यक्तिगत जिंदगी में. उन्होंने कहा, "मैं जब भी किसी दुविधा में होता हूं तो सोचता हूं—आमिर इस स्थिति में क्या करते? हो सकता है मैं उनकी तरह चीजों को न सुलझा पाऊं क्योंकि हमारी सोच और प्रक्रिया अलग है, लेकिन उनके मूल मूल्य—ईमानदारी और प्रामाणिकता—ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है."
उन्होंने आगे कहा, "एक कलाकार या कहानीकार के रूप में आपका पहला कर्तव्य नैतिक रूप से सही होना है. इसके बाद, यह देखना जरूरी है कि हम उस कहानी को सबसे सच्चे और प्रभावी ढंग से कैसे कह सकते हैं. ये सिद्धांत मैंने आमिर से सीखे हैं और आज भी उन्हें मानता हूं."
क्या इमरान की वापसी होगी?
इमरान खान ने 2008 में फिल्म जाने तू... या जाने ना से बॉलीवुड में एंट्री की थी और एक दौर में यूथ आइकन माने जाते थे. कुछ महीने पहले उन्होंने इस बात का खुलासा किया था कि वे डिज्नी+ हॉटस्टार के लिए एक जासूसी वेब सीरीज़ पर काम कर रहे थे, लेकिन यह प्रोजेक्ट बाद में बंद हो गया.
अब जबकि वे इंडस्ट्री में वापसी की संभावनाओं को लेकर चर्चा में हैं, उनका यह बयान एक नई बहस को जन्म दे चुका है—क्या 90 के दशक की क्लासिक मानी जाने वाली फिल्मों की आलोचना आज के सामाजिक दृष्टिकोण से जायज़ है?