अरिफुल इस्लाम/गुवाहाटी
समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए लघु फिल्में एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरी हैं. इन फिल्मों के जरिए समाज के अलग-अलग पहलुओं को उजागर किया जा सकता है. इस दिशा में गुवाहाटी के युवा फिल्म निर्माता अमीनुल हक ने अपने प्रयासों से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है.
अमीनुल ने पहले भी सामाजिक मुद्दों पर कई लघु फिल्में बनाकर प्रशंसा हासिल की है और अब उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और नस्लीय भेदभाव जैसे गंभीर विषय पर आधारित एक नई लघु फिल्म 'इकिगाई' बनाई है. यह फिल्म जनवरी के अंत में रिलीज होने वाली है.
आवाज द वॉयस असम के साथ साक्षात्कार में अमीनुल हक ने बताया कि उनकी नई फिल्म 'इकिगाई' एक ऐसी लड़की की कहानी पर आधारित है जो अभिनेत्री बनने का सपना देखती है. यह लड़की काले रंग की है और समाज में प्रचलित नस्लीय भेदभाव के कारण उसे अपने सपने पूरे करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है.फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे यह लड़की गोरा बनने की कोशिश में तनाव और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करती है.
अमीनुल हक ने साझा किया कि 'इकिगाई' को शूट करना उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था. उन्हें इस फिल्म की शूटिंग दो बार करनी पड़ी. पहली बार फिल्म का पूरा डेटा दुर्भाग्यवश खो गया था. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी.
फिर से शूटिंग शुरू की. उन्होंने बताया कि इस फिल्म को बनाने में लगभग 50,000 रुपये का खर्च आया. फिल्म में एक गाना भी शामिल किया गया है जो दर्शकों के दिलों को छूने का प्रयास करेगा. अमीनुल को उम्मीद है कि यह फिल्म लोगों को एक गहरा संदेश देने में सक्षम होगी.
अमीनुल हक ने समाज में व्याप्त कई समस्याओं पर लघु फिल्में और वृत्तचित्र बनाए हैं. उनकी प्रमुख कृतियों में 'द साइलेंट किलर', 'होप नॉट आउट', और ईस्ट कामरूप कॉलेज पर बनी डॉक्यूमेंट्री शामिल हैं. उन्होंने ईस्ट कामरूप कॉलेज की स्वर्ण जयंती के अवसर पर असम की पहली पूर्ण लंबाई वाली डॉक्यूमेंट्री बनाई थी.
अमीनुल अपनी फिल्मों को शुभचिंतकों की उपस्थिति में मुफ्त स्क्रीनिंग के जरिए रिलीज करते हैं. हालांकि, 'इकिगाई' के लिए उन्होंने एक नई पहल की है. इस बार स्क्रीनिंग स्थल में दर्शकों को मुफ्त प्रवेश की अनुमति दी जाएगी. अगर उन्हें फिल्म पसंद आती है तो वे स्वेच्छा से अमीनुल को न्यूनतम टिकट कीमत के रूप में सहयोग कर सकते हैं. यह तरीका युवा फिल्म निर्माताओं को प्रोत्साहित करने का एक प्रयास है.
अमीनुल हक ने बताया कि लघु फिल्म बनाने में जो खर्च होता है, उसका 5 फीसदी भी वह वापस नहीं पा सकते हैं. उनके पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है. फिर भी वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और शौक को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. अमीनुल ने 'द साइलेंट किलर' जैसी लघु फिल्में बनाई हैं, जो नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों पर केंद्रित थीं और जिन्हें सरकारी प्रशासन ने भी सराहा.
ईस्ट कामरूप कॉलेज से स्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद, अमीनुल ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय के संचार और पत्रकारिता विभाग से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही फिल्म निर्माण शुरू किया और असम के चार छापरी क्षेत्र पर अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री बनाई.
उनकी पहली लघु फिल्म 'मारीचिकर रंग' मात्र 500 रुपये में बनी थी, जबकि 'होप नॉट आउट' का बजट 30,000 रुपये था. अब 'इकिगाई' का बजट 50,000 रुपये है.अमीनुल हक समाज में व्याप्त अंधविश्वास, नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव और नस्लीय भेदभाव जैसे विषयों पर काम कर रहे हैं. उनका सपना एक सफल फिल्म निर्माता बनने का है. उनकी लघु फिल्में युवाओं को समाज की बुराइयों के खिलाफ जागरूक करने का काम करती हैं.
अमीनुल का कहना है कि सरकारी नौकरी करने की बजाय वह फिल्मों के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहते हैं. उनकी लघु फिल्में न केवल मनोरंजन का साधन हैं बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास भी करती हैं. 'इकिगाई' जैसी फिल्में सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषयों पर चर्चा को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन माध्यम हैं.