पार्ट - 2: देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ इस तरह दिखाई देते हैं होली के रंग

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 03-03-2023
कहीं अबीर तो कहीं गुलाल
कहीं अबीर तो कहीं गुलाल

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

कहीं गुलाल तो कहीं रंग, कहीं फूलों की होली तो कहीं जमकर गुलाल उड़ता है. हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन साल का आखिरी महीना होता है और इस मास के अंत में फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है होली का महापर्व. जिसका नाम आते ही लोगों के मन में एक नई उमंग और उत्साह आ जाता है.

अच्छाई पर बुराई की जीत और मन का मैल दूर करके खुशियों के रंग बिखेरने वाला यह पावन पर्व हमें कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच सकारात्मक रहने का संदेश देता है. देश में मनाए जाने वाले इस महापर्व का आपको अलग-अलग जगह पर अलग-अलग रंग देखने को मिलता है.
 
आइए देश के विभिन्न हिस्सों में खेली जाने वाली अनूठी होली के बारे में विस्तार से जानते हैं.
 
राजस्थान की होली
 
रंगीले राजस्थान में होली अपने आप में निराली होती है. राजस्थान अलग-अलग शहरों में आपको होली के अलग-अलग रंग देखने को मिल जाएंगे. जैसे कहीं पर आपको लोग रंगों के साथ-साथ फूलों से तो कहीं लट्ठमार होली का लुत्फ उठाते नजर आएंगे. जयपुर में गोविंददेव जी के मंदिर में भी होली का पावन पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. यहां ब्रज की तर्ज पर लाल पीली पंखुड़ियों से होली खेली जाती है.
 
 
अजमेर के पुष्कर में लोग गीत-संगीत की धुनों पर थिरकते हुए कपड़ाफाड़ होली खेलते हैं, तो वहीं शेखावाटी में होली का अलग ही हुडदंग होता है. यहां हर मोहल्ले में चंग पार्टी होती है. जिसमें लोग चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता पहनकर, कमर में कमरबंध और पांव में घूंघरू बांधकर चंग नृत्य करते हैं. इसमें एक व्यक्ति महिला वेष धारण करके नृत्य करता है, जिसे ‘महरी’ कहा जाता है.
 
उत्तर प्रदेश की होली
 
जब कभी भी उत्तर प्रदेश की होली की बात होती है तो सबसे पहला नाम ब्रज की होली का आता है, जहां पर रंग और उमंग के साथ आपको श्रद्धा और भक्ति का संगम नजर आता है. होली के पावन पर्व पर मथुरा, बृंदावन समेत पूरा ब्रज मंडल रंग और गुलाल के साथ भक्ति के रस में सराबोर नजर आएगा. मथुरा में लड्डू मार और लठामार होली होती है और बरसाना की तरफ भी लड्डू मार और लठामार होली को लेकर लोग उत्साहित होते हैं. 
 
 
ब्रज में होली का पावन पर्व बसंत पंचमी से प्रारंभ हो जाता है. यहां बरसाना की रंगीली गली खेले जाने वाली लट्ठमार से लेकर बांके बिहारी जी के मंदिर में खेले जाने वाली फूलों की होली का अपना अलग एक रंग होता है. उत्तर प्रदेश में होली के अवसर फाग या फिर कहें फगुआ के गाने की परंपरा चली आ रही है, जो आज भी यूपी के तमाम क्षेत्रों में सुनने-देखने को मिलती है.
 
कृष्ण नगरी के मंदिरों में एक माह से भी अधिक समय तक चलने वाले इस उत्सव में ठाकुरजी अपने भक्तों के साथ नित्य होली खेलते हैं. होली उत्सवों का शुभारंभ बसंत पंचमी के दिन ही हो जाता है और समापन धुलैड़ी के दिन होता है. 
 
बंगाल की होली
 
बंगाल में भी होली का पावन पर्व भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रंगा हुआ नजर आता है. यहां होली के पावन पर्व को डोल के अलावा वसंतोत्सव और डोल पूर्णिमा भी कहते हैं. बंगाल में यह पावन पर्व डोल या फिर कहें दोल उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
 
 
दोल के एक दिन पहले होली दहन की परंपरा निभाई जाती है. जिसे बंगाल में ”नेड़ा-पोड़ा” कहते हैं. शांति निकेतन में मनाई जाने वाली होली देश-दुनिया में मशहूर है. होली पर यहां मनाया जाने वाले रंगोत्सव का आनंद ही अलग होता है. 
 
पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन शहर में भी होली खास होती है, यह दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है. स्थानीय लोग होली और बसंत का त्योहार एकसाथ मनाते हैं. होली और बसंत के उपलक्ष्य में कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.
 
कार्यक्रम में नृत्य, गुलाल, नाटक और पारंपरिक वेशभूषा पहन कर कलाकार समां बांध देते हैं. ये बात सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में कला और संस्कृति को काफी महत्व दिया जाता है. संभवत: यही वजह है कि यहां लोग होली सांस्कृतिक और पारंपरिक अंदाज में गुलाल और अबीर से खेली जाती है. 
 
पंजाब की होली
 
पंजाब की होली में आपको खुशियों के साथ शौर्य का एक अलग ही रंग देखने को मिलता है. पंजाब के आनंदपुर साहिब में होली का पावन पर्व होला मोहल्ला के नाम से मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत कभी दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने की थी.
 
 
होला मोहल्ला में आपको यहां पर आपको तमाम तरह के प्राचीन एवं आधुनिक शस्त्रों से लैस निंहग हाथियों और घोड़ों पर सवार होकर एक-दूसरे पर रंग फेंकते हुए दिख जाएंगे. साथ ही साथ तमाम तरह के खेल जैसे घुड़सवारी, गत्तका, नेजाबाजी, शस्त्र अभ्यास आदि भी देखने को मिलेगा.
 
गुजरात की होली
 
 
देश के विभिन्न हिस्सों में मनाई जाने वाली होली से गुजरात की होली का रंग अलहदा है. यहां पर होली के दिन छाछ से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ने की परंपरा है. होली के दिन एक छाछ का बर्तन ऊपर रस्सी पर बांधा दिया जाता है, जिसे तोड़ने के लिए लोग मानव पिरामिड बनाते हैं और इस दौरान कुछ लोग पिरामिट बनाने वालों पर रंग फेंकते हैं.
 
 
ओडिशा की होली
 
ओडिशा की होली में आपको बंगाल की होली के रंग देखने को मिल जाएंगे. यहां होली के पावन पर्व को ‘डोल पूर्णिमा’ के नाम से भी मनाया जाता है. ओडिसा के दिन होली के दिन भगवान भगवान जगन्नाथ की विशेष रूप से पूजा करते हैं.
 
 
यहां के लोगों की मान्यता है कि होली के दिन भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी के संग रंग यात्रा पर निकलते हैं. होली के पावन पर्व पर महिलाएं आटे को पानी में घोल कर उससे रंगोली बनाती हैं और यहां पर एक मीठा पकवान ”पीठा”बनाया जाता है.
 
बिहार की होली
बिहार में भी होली का पावन पर्व बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है. बिहार में जिस तरह होली का उत्सव कपड़ा फाड़ होली के लिए खूब जाना जाता है, कुछ वैसे ही बगैर मालपुआ के बिहार की होली अधूरी मानी जाती है.
 
 
होली के पावन पर्व आपको हरेक घर में मालपुआ ओर दही बड़ा बनता हुआ दिख जाएगा. साथ ही साथ आपको हर तरफ होली से जुड़े लोकगीत की गूंज भी इस पर्व में मिठास घोलते हुए नजर आएंगे.
 
गोवा की होली 

 
गोवा में पुर्तगाली और क्रिश्चयन कम्युनिटी वाले लोग होली का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं. यहां होली को शिगमोत्सव के नाम से जाना जाता है. यह त्योहार यहां पर दो सप्ताह तक मनाते हैं. गांव के देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद पांच दिनों में जूलूस और झांकियां निकाली जाती हैं. रंग गुलाल खेला जाता है. जोकी फागोत्सव और होली दोनों का समावेश होता है.
 
कर्नाटक के हंपी में होली 

कर्नाटक के हंपी में 2 दिन तक होली के त्योहार का जश्न मनाया जाता है. बता दें कि हंपी कर्नाटक राज्य का वो सुंदर स्थान है, जहां का इतिहास आज भी जीवंत है. ये जगह इतनी खास है कि यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया है.
 
 
हर साल हंपी में लाखो की संख्या में देश और विदेश से सैलानी आते हैं. खासकर मार्च के महीने में ज्यादातर सैलानी यहां साइट सीइंग करने के साथ ही होली मनाने आते हैं. इस दौरान लोग नाचते, गाते और रंग से खेलते हैं. ये कर्नाटक में मनाया जाने वाला बेहद खास त्योहार है.
 
 
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)