'बॉबी', वो फिल्म जिसने राज कपूर की जिंदगी और भारतीय सिनेमा को बदल दिया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-10-2024
'Bobby', the film that changed Raj Kapoor's life and Indian cinema
'Bobby', the film that changed Raj Kapoor's life and Indian cinema

 

 यूसुफ तहमी

ज़्यादातर फ़िल्में इतिहास में खो जाती हैं,जबकि कुछ याद रखी जाती हैं.कुछ फ़िल्में ऐसी भी होती हैं जो दूसरी फ़िल्मों के लिए 'ट्रेंड सेटर' साबित होती हैं.ऐसी ही एक फिल्म आज से 51साल पहले आई थी. यह फिल्म भारतीय सिनेमा के 'शोमैन' कहे जाने वाले अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक राज कपूर ने बनाई थी और यह फिल्म कोई और नहीं बल्कि 'बॉबी' थी जो 1973 में रिलीज हुई थी.

हालाँकि यह फिल्म उस समय के प्रमुख अभिनेता और सुपरस्टार राजेश खन्ना के लिए लिखी गई थी, वित्तीय बाधाओं के कारण, राज कपूर ने फिल्म में अपने बेटे ऋषि कपूर को लिया, जिनके बारे में ऋषि कपूर ने कहा कि वे इस भूमिका के लिए उपयुक्त होंगे, उन्हें डिफ़ॉल्ट रूप से चुना गया.

यह फिल्म राज कपूर की ड्रीम फिल्म थी जिसे उन्होंने अपनी युवावस्था में अभिनेत्री नरगिस के रूप में देखा था.इसलिए ऋषि कपूर ने कई बार माना है कि यह फिल्म हीरो से ज्यादा हीरोइन पर आधारित है और इसलिए इसका नाम 'बॉबी' रखा गया है.

'मेरा नाम जोकर' की सफलता के बाद कम बजट और कर्ज के बावजूद राज कपूर ने अपना ज्यादातर पैसा और ऊर्जा हीरोइन ढूंढने में खर्च कर दी.उन्होंने बॉबी की भूमिका के लिए नीतू सिंह का स्क्रीन-टेस्ट भी किया, जो बाद में न केवल फिल्मों में मशहूर हुईं,बल्कि ऋषि कपूर की पत्नी भी बनीं.

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हालाँकि, बॉबी के लिए 15 साल की लड़की डिंपल कपाड़िया को चुना गया था, लेकिन डिंपल कपाड़िया का कहना है कि पहले स्क्रीन टेस्ट में उन्हें साफ तौर पर रिजेक्ट कर दिया गया था,क्योंकि वह हीरो से बड़ी दिखती थीं, लेकिन एक बार पैसे की कमी कपूर पर हावी हो गई थी,अपने दोस्त चानीभाई कपाड़िया की बेटी को कास्ट करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अभिनेत्री रेखा, जो उस समय अपने करियर का निर्माण कर रही थीं, को फिल्म में अरुणा ईरानी की भूमिका के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन रेखा ने यह कहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया कि यह सहायक भूमिका से बहुत अधिक है.कहा जाता है कि इससे पहले साल 1970 में राज कपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' आई थी जिसमें उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी, लेकिन यह फिल्म सफल नहीं रही, जिसके कारण उन्हें फिल्म बॉबी के लिए कर्ज लेना पड़ा.

कीमती सामान बेचना पड़ा और घर गिरवी रखना पड़ा.फिल्म 'बॉबी' में राज कपूर को अपने कई पुराने और आजमाए हुए फॉर्मूलों को छोड़ना पड़ा.यहां तक ​​कि उन्होंने शंकर जय किशन द्वारा दिए गए संगीत को 'पुराना' बताकर लक्ष्मी कांत प्यारेलाल से भी संपर्क किया.

कहा जाता है कि जब राज कपूर एक पार्टी में लक्ष्मी कांत और प्यारे लाल से मिले, तो उन्होंने कहा कि वह एक फिल्म बना रहे हैं और चाहते हैं कि लक्ष्मी कांत और प्यारे लाल फिल्म में संगीत दें,क्योंकि 'हमारा संगीत पुराना है.'इस फिल्म में हर स्तर पर नयापन है.राज कपूर ने न केवल अपना संगीत बदला, उन्होंने अपने गीतकार भी बदले.पहली बार अपनी फिल्मों के गीतों के लिए आनंद बख्शी से संपर्क किया, जबकि शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी उनके लिए गीत लिखते थे.

फिल्म में युवा ऋषि कपूर के लिए नई आवाज की तलाश में राज कपूर ने शैलेन्द्र सिंह की आवाज पेश की जो हिट हो गई.हालाँकि इस फिल्म से पहले राज कपूर और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के बीच अनबन चल रही थी, लेकिन लक्ष्मी कांत प्यारेलाल ने उनकी नाराजगी दूर कर दी.लता ने एक बार फिर राज कपूर की फिल्मों के लिए अपनी आवाज देनी शुरू कर दी.

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गायक शैलेंद्र सिंह

हालाँकि, बॉबी में जिस विषय को दर्शाया गया है, उस पर पहले भी फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन यह फिल्म एक मील का पत्थर साबित हुई,क्योंकि एक अमीर युवक और एक गरीब घर की लड़की के बीच के प्यार को इस तरह से पहले कभी नहीं देखा गया था उसके बाद नहीं, हालाँकि इस विषय पर दर्जनों फ़िल्में बनीं.

राज कपूर बॉबी का अंत विलियम शेक्सपियर के नाटक रोमियो एंड जूलियट की शैली में दुखद अंत करना चाहते थे, लेकिन फिल्म के वितरकों ने कहा कि अगर फिल्म के नायक-नायिका मर जाते हैं, तो हम भी मर जाएंगे.तो फिर ख्वाजा अहमद अब्बास इसे एक सुखद अंत देते हैं जिसमें ऋषि कपूर को डिंपल के पिता प्रेमनाथ बचाते हैं,जबकि डिंपल यानी बॉबी को प्राण बचाते हैं.

इस फिल्म में प्राण को उनके पारंपरिक अंदाज में दिखाया गया है, लेकिन यह फिल्म प्रेमनाथ को नई जिंदगी देती है.उन्हें फिर से फिल्मों में काम मिलना शुरू हो जाता है.इसमें प्रेम चोपड़ा भी हैं जिन्होंने खलनायक की भूमिका निभाई है.अपने नाम के साथ फिल्म में आए हैं.

उनका एक डायलॉग बहुत मशहूर हुआ और उन्होंने इसी नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी है."मेरा नाम प्रेम है, प्रेम चोपड़ा."फिल्म बॉबी ने आने वाली पीढ़ी को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से जिस हद तक प्रभावित किया, शायद कोई अन्य फिल्म यह सम्मान हासिल नहीं कर सकी. इसमें बॉबी का पोल्का-डॉटेड आउटफिट पूरे भारत में वायरल हो गया.आज भी उन्हें डिंपल कपाड़िया के नाम से जाना जाता है.

राज कपूर

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इसमें राज कपूर का डिंपल कपाड़िया का चित्रण बाद में उनकी फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम, या राम तेरी गंगा मेली हो गई में प्रतिबिंबित हुआ.उसके बाद एक दशक तक न सिर्फ लड़कियों के नाम बल्कि लड़कों के नाम भी बॉबी कहे जाने लगे.मेरे चाचा के एक दोस्त वकार अहमद फिल्म 'बॉबी' के क्रेज के बारे में बताते हैं कि कैसे उनकी एक चाची उंगली पर कपड़े बांधकर सब्जियां काटती थीं और कहती थीं कि मैं किसी बॉबी से कम नहीं हूं.

हालांकि, जब ये फिल्म 28सितंबर को रिलीज हुई तो इसने पूरे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा दी.उनका हर गाना लोगों की जुबान पर था.आज 50 साल बाद भी आपमें से कई लोगों को उनके गाने 'झूठ बोले कौआ काटे', 'हम तुम एक कमरे मेंबंद हों, उर चाबी खो जाए', 'मी शाहीर' याद हैं.' 'मुझे कुछ कहना है, मुझे कुछ कहना है, पहले तुम, पहले तुम', 'आँखों को आँखों के इर्द-गिर्द रहने दो' आदि बहुत लोकप्रिय हुए.

इस फिल्म ने न केवल एक फिल्म निर्माता और निर्देशक के रूप में राज कपूर की प्रतिष्ठा को बहाल किया,उन्हें एक नया जीवन दिया.उनके सभी कर्जों से मुक्ति दिला दी.उन्होंने नई फिल्मों के साथ नई ऊंचाइयों को छुआ.जहां तक ​​डिंपल कपाड़िया की बात है तो इस फिल्म के बाद उन्होंने सुपरस्टार राजेश खन्ना से शादी कर ली.कुछ समय के लिए उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया.ऋषि कपूर ने अपनी जीवनी 'खुल्लम खुल्ला' में लिखा है कि इस फिल्म से उन्हें सबसे ज्यादा फायदा हुआ,क्योंकि डिंपल फिल्मों से दूर चली गईं और सारा श्रेय ले गईं.

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उन्होंने खुले तौर पर यह भी लिखा है कि उन्होंने एक पुरस्कार खरीदा था जिसके बाद इस बात पर बहस हुई कि क्या यह पुरस्कार बॉबी के लिए नहीं था, जिसमें उन्होंने ज़ंजीर में अपने प्रदर्शन के लिए अमिताभ के साथ सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता था.जबकि डिंपल को सर्वश्रेष्ठ मिला था अभिनेत्री पुरस्कार. उसके बाद से ऋषि कपूर को कभी भी किसी भी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार नहीं मिला.